टीएनपी डेस्क(Tnp desk):- झारखंड में आगामी बजट को लेकर हलचले तेज हो गई है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोमवार को मंत्रालय के अफसरों के साथ बैठक की. जिसमे उनका निर्देश खेत-खलिहान,कृषि, किसान औऱ नौजवान पर विशेष फोकस करने को लेकर था. इस मौके पर वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव भी मौजूद रहे. उम्मीद जताई जा रही है कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर 2024-25 का बजट लोकलुभावन होगा. सीएम सोरेन खुद भी बोल चुके है कि उनकी प्राथमिकताओं में इस बार का बजट जनकल्याण और सर्वागीण विकास पर जोर होगा. गांव की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की प्राथमिकता होगी.
किसानों और नौजवानों को उम्मीदें
जिस तरह से मुख्यमंत्री ने समीक्षा के दौरान किसान और नौजवान पर फोकस रखने की बात कही. इससे अन्नदाताओं और युवा पीढ़ी में एक आस जगी है. क्योकि अगर देखे तो ये दो वर्ग ही अभी सबसे ज्यादा मुश्किलों से गुजर रहे हैं. झारखंड में किसानों के सामने परेशानियां ये है कि इस बार मानसून की आंख मिचौली से उनकी पैदवार मन माफिक नहीं हुई. साथ ही पिछले दो साल से सूखाड़ जैसे हालात राज्य में पैदा हो गये हैं. इस सख्त वक्त में किसानों को राज्य सरकार के आगामी बजट पर टिकी होगी. नौजवान के सामने आज प्रदेश में रोजगार की बड़ी समस्या, इसके चलते राज्य के वजूद में आने के बाद से ही पलायन लगातार हो रहा है. आखिर कैसे रोजगार के जरिए इनके सामने बाहर जाने की मजबूरी पैदा न हो. इस पर भी सबसे ज्यादा निगाहें युवाओं की रहेगी.
झारखंड कई क्षेत्रों में तेज गति से आगे बढ़ रहा है. इससे इंकार नहीं किय जा सकता. कई जनकल्याणकारी योजनाएं भी चल रही है . लेकिन, गरीबी और पलायन राज्य में एक बड़ी समस्या बनीं ही हुई हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस बार के बजट में स्वरोजागर पर जोर देने का इशारा किया है. अगर ऐसा होता है औऱ जमीनी स्तर पर इस पर काम किय जाता है. तो दूसरे प्रदेशों में रोजी-रोटी के लिए जाने वाले युवाओं की जिंदगी में बदलाव होगा.
दलित और आदिवासी करते हैं पलायन
जल, जंगल और जमीन का प्रदेश झारखंड, जहां भरपूर मात्रा में खनिज संपदा मौजूद है. इस आदिवासी बहुल प्रदेश में देखे तो राज्य में दलित और आदिवासी आबादी का 35 प्रतिशत जनसंख्या पलायन को मजबूर है. जिसमे 55 फीसदी महिलाएं, 30 फीसदी पुरुष और 15 फीसदी बच्चे शामिल हैं. चौकाने वाली बात ये है कि इसमे सबसे ज्यादा दिहाड़ी मजदूरों की संख्या है. साल 2016 के बाद झारखंड में बेरोजगारी दर काफी तेजी से इजाफा देखने को मिला है. जो 2022 तक 17.13 फीसदी पर पहुंच गया . हालांकि, इसके पीछे के कारणों को जाने तो राज्य में 2016 के बाद बार-बार नियोजन नीति का रद्द होना और समय पर रोजगार के लिए वैकेंसी नहीं निकलना भी बेरोजगारी की वजह बनता रहा है. झारखंड से पलायन कर दूसरे जगह में काम करने वाले लोग विभन्न राज्यों जैसे हरियाणा, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक जाते हैं. इसके साथ ही मुंबई, दिल्ली, कोलकाता में भी बेरोजगार युवाओं औऱ मजदूरों का पलायन होता है.
राज्य की हेमंत सोरेन सरकार ने बजट 2024-25 में गांव की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना प्राथमिकता बताया है . अगर सच में लघु और कुटीर उद्योग को लचीला बनाकर सरकार काम करती है. तो इससे बड़ा फर्क देखने को मिलेगा. क्योंकि ये सच्चाई है कि सभी को सरकारी नौकरी मिलना मुश्किल है. लिहाजा, स्वरोजगार ही एक ऐसा जरिया बन सकता है. जिससे पलायन और गरीबी जैसी समस्या बहुत हद तक लगाम लगायी जा सकती है. समीक्षा बैठक में हेमंत ने मजदूरों को मनरेगा के सुचारु रुप से चलने पर भी जोर दिया, ये भी एक शानदार पहल साबित होगी, क्योंकि बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर को अपने गांव में ही काम मिलेगा. इससे भी इनका पलायन रुकेगा.
मुख्यमंत्री ने बजट की समीक्षा बैठक में गरीब कल्याण को भी अपनी सरकार की प्राथमिकता में जोड़ा. जिसमे उन्होंने बताया कि राज्य सरकार की योजनाओं का लाभ अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को भी मिले. जाहिर है कि अगर इन सबी चिजों पर जमीन स्तर पर अमल किया गया, तो राज्य की तस्वीर बदलेगी.