रांची(RANCHI)- झारखंड के राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन काफी सक्रिय हैं. पूरे प्रदेश का वे दौरा कर रहे हैं. जगह-जगह जाकर सरकार की योजनाओं का मूल्यांकन कर रहे हैं. इसके अलावा आम लोगों से भी मिल रहे हैं.
जेएमएम को क्यों हो रही आपत्ति
राज्यपाल किसी भी राज्य में संवैधानिक प्रमुख होते हैं. उनके नाम पर ही सरकार चलती है.यह अलग बात है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनी हुई सरकार के मुखिया ही शासन के प्रमुख होते हैं. पर, संघीय शासन प्रणाली में राज्यपाल की भूमिका भी महत्वपूर्ण है. राज्यपाल किसी राज्य में केंद्र का प्रतिनिधि होता है. बस मामला यहीं फंस गया है. राज्यपाल पूरे प्रदेश में घूम रहे हैं. यह बात सत्तापक्ष को अच्छी नहीं लग रही है.
झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल खड़ा करते हुए कहा था कि राजभवन की भूमिका विधायक आज ऐसी हो रही है. इधर शनिवार को भी मामला और ज्यादा गरम हो गया. दरअसल पाकुड़ में राज्यपाल सी पी राधाकृष्णन ने कहा कि राज्यपाल और राज्य सरकार के कार्य क्षेत्र निर्धारित है.सभी की अपनी-अपनी लक्ष्मण रेखा खींची हुई है. इसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए. आदिवासी, अनुसूचित जनजाति या फिर ओबीसी के नाम पर दादागिरी से किसी तरह से उनके अधिकार का हनन नहीं किया जा सकता है. जमीन के जो मालिक हैं. फोन का हक नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा राज्यपाल ने यह भी कहा कि संथाल पन्ना क्षेत्र में खनिज संसाधन की तस्करी हो रही है.इसे रोकने की जरूरत है. यह स्थानीय लोगों की मिल्कियत है.
सत्ता पक्ष का क्या कहना है, जरा जानिए
राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन के काम करने के तौर-तरीके पर सत्तापक्ष को आपत्ति है. झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि राजभवन की अपनी मर्यादा है. गैर भाजपा शासित राज्यों में राज्यपाल विशेष रूप से सक्रिय देखे जा रहे हैं. झारखंड में राजभवन की मर्यादा पूर्व राज्यपाल और वर्तमान में देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के कार्यकाल तक बनी रही. कांग्रेस के प्रवक्ता राकेश सिन्हा भी राज्यपाल की सक्रियता को पसंद नहीं करते हैं उनका कहना है कि यह सब सोची-समझी रणनीति के तहत किया जा रहा है. बहरहाल, तनातनी की स्थिति अच्छी नहीं है. राज्यपाल की सक्रियता से सरकार को ही फायदा है. कोई भी हो, जनता के लिए काम करने की जरूरत है. अगर जनता को इससे लाभ मिलता है तो किसी को आपत्ति नहीं होना चाहिए. ऐसा बुद्धिजीवियों का कहना है. पर इतना जरूर है कि यह मामला धीरे-धीरे गरमा रहा है.