रांची(RANCHI): लोकसभा चुनाव के परिणाम के साथ ही झारखंड के कई नेताओं के कैरियर पर ही दाव पर लग गया है. पार्टी से बगावत कर चुनावी मैदान में उतरना महंगा साबित हुआ है. पहले पार्टी ने निष्काषित कर दिया अब जनता ने भी किनारा लगा दिया है. लोकसभा चुनाव में पचास हजार का भी आकड़ा पार नहीं कर सके है.चाहे राजमहल सीट पर लोबिन की बात करें या फिर लोहरदगा के रण में चमरा लिंडा की दोनों को करारी हार मिली है. जनता ने साफ कर दिया कि वोट पार्टी के चिन्ह पर देते है ना की उन्हे.
अगर बात राजमहल सीट की करें तो यहाँ बोरियों विधायक लोबिन पार्टी के आदेश को दरकिनार करते हुए राजमहल से निर्दलीय पर्चा भर दिया. इस दौरान अपनी ही पार्टी के खिलाफ चुनाव प्रचार शुरू कर अपने पक्ष में वोट की मांग करने लगे. लोबिन की सभा में भी खूब भीड़ होती थी. लेकिन यह भीड़ वोट में तब्दील नहीं हुई. जल जंगल जमीन की बात करने वाले विधायक लोबिन को बस 42 हजार वोट पर सतुष्ट होना पड़ा.लोकसभा चुनाव में तो जनता ने साथ नहीं दिया बल्कि पार्टी ने भी बाहर का रास्ता दिखा दिया. अब इनके आगे कैरियर पर भी संशय लग गया.
लोबिन के अलावा बिशुनपुर विधायक चमरा लिंडा भी लोकसभा चुनाव लड़ने की चाहत रखते थे. लेकिन यह सीट गठबंधन को चली गई.जिसके बाद चमरा लिंडा ने गठबंधन के खिलाफ निर्दलीय ही नामांकन भर दिया. पार्टी की ओर से कई बार नाम वापसी करने को कहा गया लेकिन पार्टी के लीग से हट कर काम करने शुरू कर दिया. बाद में चमरा लिंडा को भी झामुमो ने निष्काषित कर दिया. अब जब चुनाव परिणाम आया तो लोहरदगा के रण में कांग्रेस के सुखदेव भगत ने जीत का परचम लहराया है.चमरा लिंडा को महज 45 हजार वोट मिले है.
इससे साफ है कि झारखंड में स्थानीय पार्टी झामुमो जिसे उम्मीदवार बनाती है. जनता भी उसके साथ रहती है. झारखंड में जनता किसी व्यक्ति नहीं बल्कि तीर धनुष और गुरुजी के नाम पर वोट करती है.अब जिन विधायकों ने निर्दलीय मैदान में उतर कर किस्मत आजमा रहे थे. उन्हे एक बड़ा झटका लगा है. साथ ही विधानसभा चुनाव को लेकर भी पेच फस गया है.अगर बात बोरियों की करें तो यह इलाका झामुमो का गढ़ है. यहाँ के लोग तीर धनुष जानते है इसका खामियाजा लोबिन को विधानसभा चुनाव में भी भुगनता पड़ सकता है.