रांची(RANCHI): सुबह के साढ़े नौ बजे शहर का व्यस्ततम इलाका “सहजानंद चौक” जिसके पूर्व की ओर सीधा हाई कोर्ट और पश्चिम की ओर विधानसभा जाने का रास्ता उत्तर की ओर मुख्यमंत्री आवास, रातू रोड, मोरहाबादी जाने का रास्ता और दक्षिण की ओर सटा हुआ सघन आबादी वाला पौष एरिया. सड़क पर रोज की तरह ही बच्चे स्कूल जा रहे थे ऑफिस वालों को कार्यालय पहुँचने की जल्दी थी और ऑटो वाले अपने सवारियों को बैठा रहे थे. ये वो वीआईपी रास्ता है जिससे झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी अपने विधानसभा जाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. ऐसे ही सड़क पर अचानक यकायक चलती है गोली, वो भी एक नहीं तीन तीन. कोई समझ पाता कि हुआ क्या है इसके पहले ही मच जाती है सड़क पर भगदड़. और गिर जाती है एक महिला जो अपनी गवाही के लिए अपने बॉडीगार्ड के साथ कोर्ट जा रही थी. जी हां हम बात कर रहे पिछले दिनों राजधानी रांची में सुषमा बड़ाइक पर हुए जानलेवा हमले की. इस घटना ने जहां सबको सुषमा की दर्दनाक कहानी याद दिला दी वहीं लोगों की जुबान पर अनगिनत सवाल भी छोड़ दिया. इस घटना ने लोगों को सुषमा की जिंदगी के उन पहलुओं को पुनः ताजा कर दिया जिसके लिए वो चर्चा में आई थी. लेकिन कुछ ज्वलंत सवाल अपने जवाब की प्रतीक्षा में अब भी उसी जगह स्थिर है जहां सुषमा को गोली मारी गई थी.
आखिर कैसे ट्रैफिक पुलिस की पकड़ से बच गए एक बाइक पर तीन सवार
आम तौर पर यदि आपने हेलमेट नहीं पहना है तो हर चौक पर पुलिस आपको रोकेगी और चालान काटेगी चलो ये भी जरूरी है. लेकिन गलती से अगर अपने मजबूरीवश तीन लोगों को अपने दुपहिया वाहन में बैठा लिया तो पुलिस सिर्फ रोकती ही नहीं है बल्कि एक आदमी को उतार कर खड़ा कर लेगी और फिर गाड़ी जब्त. ऐसे में एक व्यस्त वीआईपी रोड में जहां हर चौक पर पुलिस और CCTV की तैनाती है उसी रोड पर इन सब सरकारी इंतजाम को पार कर बेझिझक एक बाइक पर तीन लोग सवार हो कर आते है और सामने से आ रही बाइक पर पीछे बैठी महिला को तुरंत पहचान कर तीन गोली दाग कर बेधड़क निकल जाते हैं. क्या ये अपने आप में एक बड़ा सवाल खड़ा नहीं करता. जिस सड़क से राज्य का मुख्यमंत्री अपने विधानसभा जाता है. जिस चौक तक पहुँचने से पहले किसी भी दिशा से कम से कम तीन ट्रैफिक पोस्ट को पार करना होता है उस सहजनन्द चौक पर सरे सुबह एक बाइक पर तीन लोग सवार होकर आते है और अपने शोषण का केस लड़ रही सुषमा बड़ाइक को तीन गोली मार कर आराम से निकाल जाते है. क्या राज्य की ट्रैफिक व्यवस्था सुबह साढ़े नौ बजे के बाद जागती है? या ट्रैफिक सिर्फ हेलमेंट न पहनने वालों के लिए ही काम करती है. ऐसे में ये सवाल रांची वासियों के मन में धधक रहा है कि आखिर कैसे बिना चेकिंग के ये तीन अपराधी एक बाइक पर सवार होकर सुबह साढ़े नौ बजे चेकिंग को चकमा दिए या फिर इनकी चेकिंग हुई ही नहीं . वजह चाहे जो भी हो ये तो स्पष्ट है कि ये घटना सुबह साढ़े नौ बजे घटी और अपराधी सड़क पर ही बाइक से आए वो भी ट्रिपल लोड न तो इनको ट्राफिक ने रोक न पुलिस ने देखा. आए और तीन राउंड गोली चलाई और चले गए. जरा सोचिए यदि निशाना चूकता और गोली किसी और को भी लगती तो? ऐसे में प्रशासन से आखिर क्यों न सवाल पूछा जाए. आखिर कैसे इतनी चाक चौबंद व्यवस्था का दावा करने वाली रांची ट्रैफिक पुलिस से इतनी बड़ी चूक हो गई. वजह कोई भी हो जवाब तो रांची की उन महिलाओं को चाहिए जो अपने हक या अधिकार की लड़ाई लड़ रही है. वो महिलायें जो रोज ऑटो या बाइक से अपने कार्यालय आना जाना करती है वो भी पूछना चाहती है कि हमारी सुरक्षा के लिए रांची पुलिस प्रशासन और सरकार क्या उपाय कर रही. वो महिलायें दो देर शाम अपनी शिफ्ट में काम कर घर वापस जाती है वो भी आज अपने होंठों पर सवाल लिए रांची के प्रशासन को निहार रही हैं वो भी पूछना चाहती है कि हमारी सुरक्षा कैसे हो.
आगे बैठा था बॉडी गार्ड लेकिन गोली लगी सिर्फ सुषमा को
दूसरा सवाल जो सबके दिल दिमाग में उठ रहा की सुषमा को रांची पुलिस की तरफ से बॉडी गार्ड दिया गया था. और जिस वक्त ये घटना हुई उनका बॉडीगार्ड ही बाइक राइड कर रहा था. इस पूरे वारदात में पुलिस के बॉडीगार्ड को एक खरोंच तक नहीं आई ये आश्चर्य का विषय है, और अपराधियों ने हेलमेट पहनी सुषमा को बीच सड़क पर चिन्हित कर या पहचान कर ताबड़तोड़ तीन फायरिंग की और सीना तान कर निकल गए. बाइक पर पीछे की सीट पर बैठी सुषमा गंभीर रूप से घायल हो गई वहीं उनके अंगरक्षक बचे रहे यदि आम तौर पर कोई अपराधी का उद्देश्य यदि किसी को मारना ही होता है तो सबसे पहले टारगेट को अंधाधुंध फायरिंग करता है जिसमें गोली के निशाने पर पहले उसके बॉडीगार्ड आते लेकिन इस मामले मे जरा ट्विस्ट है कि गोली लगी सिर्फ पीछे बैठी सुषमा को. शायद ये मामला इतना भी सीधा नहीं जितना नजर आ रहा है.
वारदात के समय सीसीटीवी का बंद होना इत्तेफाक या कुव्यवस्था
मुस्कुराइए आप सीसीटीवी की जद में है, ऐसे स्लोगन से भरा पड़ा है रांची का चौक चौराहा. लेकिन ऐसे ही CCTV से लैस होने का दावा करने वाले सहजानन्द चौक के बीच चौराहे पर cctv को नजरअंदाज कर अपने केस में गवाही देने जा रही सुषमा बड़ाइक को अपराधी गोली मार कर फरार हो जाते हैं. ये सवाल भी अपने उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा की यदि सीसीटीवी लगे हैं तो उसमें अपराधियों के फुटेज क्यों नही आयें इसका सीधा सा उत्तर है कि इस वारदात से पहले ही सीसीटीवी खराब हो गया था यदि खराब ही था तो इसको सही करने की जिम्मेदारी किसके हिस्से आती है. क्या सीसी टीवी केवल स्लोगन सजाने के लिए लगाए गए हैं. या इसका कोई इस्तेमाल भी कभी किया जाएगा. वैसे तो रेड लाइट क्रॉस करने पर ट्रैफिक पुलिस CCTV फुटेज की कॉपी घर पर भेज कर चालान वसूलती है तो क्या सहजनन्द चौक पर CCTV खराब होने से लोग मनमानी कर रहे. या फिर अपराधियों को इसकी जानकारी थी की सुषमा बड़ाइक इसी रास्ते से आ रही और CCTV खराब इसी जगह की है और शूटर इस स्थान पर पहुंचते ही सुषमा पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. क्या ऐसा संभव हो सकता है की अपराधियों को पहले से जानकारी थी की इस इलाके की CCTV बंद है. सवाल बेहद सामान्य है लेकिन इसके जवाब चौंकाने वाले हो सकते हैं.
क्या अपराधियों को पुलिस का कोई डर नहीं रहा
इस पूरे मामले में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल खड़े हो रहे जिस जगह पर गोली मारी गई उससे महज कुछ दूरी पर पुलिस की चेकपोस्ट है. ये इलाका बेहद संवेदनशील है. रांची के बाहर से आने जाने वालों को ये सड़क ही जोड़ती है. ऐसे में किसी भी पुलिस की उपस्थिति का न होना सवाल करने पर मजबूर कर रहा. रात की गश्ती दल के बाद सुबह की पुलिस साढ़े नौ बजे कहां थी. सड़क पर एक महिला को गोली मार दी गई और एक सघन आबादी वाले इलाके में पुलिस का कोई आता पता नहीं है . क्या अपराधी जानते थे कि पुलिस नहीं है इस समय. या यूं समझा जाए कि अपराधियों ने सारी जानकारी हासिल कर रखी थी कि सहजनन्द चौक पर ट्रैफिक पुलिस रास्ता नहीं रोकेगी CCTV बंद है. पुलिस नदारत है और बॉडीगार्ड के साथ किस बाइक पर सुषमा है ये सारी जानकारी लेकर ही अपराधी आए थे इससे तो यही साबित होता है.
जानिए सुषमा बड़ाइक का पूरा मामला क्या है
बहरहाल बता दें की सुषमा बड़ाइक 2005 में हुए बहुचर्चित हाई प्रोफ़ाइल रेप कांड की पीड़िता हैं. जिन्होंने उस वक्त के तत्कालीन इंस्पेक्टर जनरल PS नटराजन पर यौन शोषण का आरोप लगाया था. इस घटना के बाद राज्य में तूफान आ गया था. इस पूरे मामले में मीडिया की अहम भूमिका रही. एक निजी चैनल के स्टिंग में हुए खुलासे को “साक्ष्य” के तौर पर कोर्ट ने भी स्वीकार किया था. सुषमा और नटराजन के बीच हुए अनैतिक कार्यों के उन फुटेज और रिकॉर्डिंग्स का कोर्ट ने भी इस्तेमाल किया था. बता दें इस हाई प्रोफ़ाइल स्टिंग के लिए सुषमा ने ही वीडियो रिकॉर्डिंग की थी. मालूम हो की पीएस नटराजन आदिवासी समुदाय से आनेवाली महिला सुषमा के साथ कई वर्षों से शारीरिक शोषण कर रहे थे. रोज रोज के इस नरक से तंग आकर सुषमा ने मीडिया का सहारा लिया और एक दिन कैमरे के सामने नटराजन की करतूतों का कर दिया पर्दाफाश. इस स्टिंग के बाद जहां राजनीतिक हलचल तेज हुई थी वहीं पूरा पुलिस मकहमा भी कटघरे में खड़ा हो गया था. इस आदिवासी महिला सुषमा ने एक नहीं लगभग 50 से अधिक पुलिस वालों और लोगों पर अपने यौन शोषण का आरोप लगाया था. इस दौरान सुषमा एक पुत्री की माँ भी बनी थी. बता दें कि बहुचर्चित मामला जिसमें आइपीएस पीएस नटराजन पर यौन शोषण केस कर सुषमा बड़ाइक चर्चा में आयी थी. वो झारखंड पुलिस विभाग में इंस्पेक्टर जनरल के पद पर आसीन एक पुलिस अधिकारी थे. आइपीएस पीएस नटराजन का स्टिंग ऑपरेशन करने के बाद पीड़िता ने यौन शोषण का केस दर्ज कराया था. प्रकरण सामने आने के बाद आइपीएस नटराजन को वर्ष 2012 में नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था. उनके खिलाफ यह कार्रवाई वर्ष 2005 में सनसनीखेज स्टिंग ऑपरेशन के सामने आने के बाद की गई थी. 2 अगस्त 2005 को उनके खिलाफ लोअर बाजार थाना में प्राथमिकी दर्ज की गई थी. यह मुकदमा 12 साल तक चला था. इसके बाद कोर्ट ने वर्ष 2017 में नटराजन को रिहा कर दिया था. इस रिहाई के बाद पीड़िता ने कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए अपील याचिका दायर की थी. इसके अलावा सुषमा ने 50 से ज्यादा लोगों पर दुष्कर्म, दुष्कर्म का प्रयास और यौन शोषण का आरोप लगाकर केस की है. अगस्त 2005 में यह मामला उजागर हुआ था. यौन शोषण का वीडियो रिकार्डिंग भी जारी हुई थी. लगातार 12 साल चले सुनवाई में 71 गवाह कोर्ट में पेश किये गये. आईजी नटराजन पर एससी-एसटी एक्ट के तहत 2005 में मामला दर्ज किया गया था. आईपीएस पीएस नटराजन को झारखंड सरकार ने लंबे समय तक निलंबित रखा था .