धनबाद(DHANBAD): धनबाद में नगर पालिका थी तो आवारा पशुओं के लिए कांजी हाउस था. लेकिन जब 2010 में नगर निगम बना तो काजी हाउस में ताला लटक गया. यह हम नहीं कहते, सड़क पर जान जोखिम में डालकर चलने वाले बुजुर्गो का सवाल है. 2010 में धनबाद की पहली मेयर बनी इंदु सिंह, उसके बाद 2015 में मेयर बने शेखर अग्रवाला. फिलहाल नगर निगम चुनाव लंबित है और अधिकारियों की देखरेख में निगम चल रहा है.
धनबाद में आवारा पशुओं का आतंक
इधर ,शहर हो या रिमोट इलाके, आवारा पशुओं का आतंक सिर चढ़कर बोल रहा है. आवारा पशुओं के कारण लगातार दुर्घटनाएं हो रही हैं ,शहर के प्रमुख रणधीर वर्मा चौक पर तो आवारा पशुओं का कब्जा होता है. वाहनों को कंट्रोल करने के लिए ट्रैफिक पुलिस के जवान तो होते हैं लेकिन वह आवारा पशुओं के कारण कभी-कभी लाचार और विवश दिखने लगते हैं. रात के अंधेरे में वाहन वाले इन पशुओं से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त होते हैं. इतना ही नहीं, यह आवारा पशु लोगों को पटक पटक कर जान भी लेते हैं. ऐसे मामले भी सामने आते रहे हैं. हाल के दिनों में नगर निगम ने आवारा पशुओं को पकड़ने के लिए एक एजेंसी को हायर किया था.यह काम पलामू की एजेंसी को दी गई थी. एजेंसी ने जैसे तैसे एक महीने काम किया लेकिन फिर धनबाद से चली गई. उसके बाद से आवारा पशुओं को पकड़ने और उन्हें सुरक्षित कहीं रखने की कोई व्यवस्था नहीं है.
एक आवारा पशु को पकड़कर गौशाला पहुंचाने के बदले ₹3500 शुल्क निर्धारित
इधर, जानकारी मिली है कि धनबाद नगर निगम ने एक आवारा पशु को पकड़कर गौशाला पहुंचाने के बदले ₹3500 शुल्क निर्धारित किया था. लेकिन बाद में इस राशि को लेकर किच किच हुई और एजेंसी काम छोड़ कर चली गई .उसके बाद से सड़क पर आवारा पशुओं का राज है. यह आवारा पशु लोगों की जानें ले रहे हैं. दुर्घटना करा रहे हैं. संपत्ति का नुकसान कर रहे हैं. बीच सड़क पर खड़े होकर सड़क जाम कर दे रहे हैं. फिर भी यह सब निगम के अधिकारियों को नहीं दिखता है .आवारा पशुओं की सड़क पर चहलकदमी धनबाद में धीरे-धीरे गैंगस्टरो की करतूत की तरह बड़ी समस्या बनती जा रही है. यह आवारा पशु कब किसकी जान लेंगे, कब किसे अस्पताल पहुंचा देंगे ,यह कोई नहीं कह सकता. इतना ही नहीं बीच सड़क पर बैठ जाते हैं और फिर उसके बाद किसी की नहीं सुनते.
रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो
