दुमका(DUMKA): राजनीति में ना तो कोई किसी का स्थायी दोस्त होता है और ना ही स्थायी दुश्मन. झारखंड की राजनीति में यह कहावत एक बार फिर चरितार्थ हुई.आखिरकार वही हुआ जिसका अंदेशा था.भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष के साथ-साथ पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से पूर्व मंत्री डॉक्टर लुईस मरांडी ने त्यागपत्र दे दिया.इसके साथ ही भाजपा द्वारा प्रत्याशियों की पहली सूची जारी होने के बाद जो कयास लगाए जा रहे थे कि लुईस मरांडी झामुमो का दामन थाम सकती है वह सत्य साबित हुआ. प्रदेश अध्यक्ष के नाम प्रेषित त्यागपत्र में पूर्व मंत्री डॉ लुईस मरांडी का दर्द छलका है.साथ ही दुमका में भाजपा के अंतर्कलह की बात भी उजागर हो गई.
त्यागपत्र के बहाने डॉ लुईस ने किया भावुक पोस्ट
अपने त्यागपत्र में लुईस मरांडी ने लिखा है कि भाजपा से राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. 24 वर्षों में कई उतार-चढ़ाव देखे. पार्टी की सेवा का सुखद परिणाम भी मिला. 2014 के विधानसभा चुनाव में पहली बार दुमका सीट पर मुख्यमंत्री रहते हेमंत सोरेन को पराजित कर भाजपा की ऐतिहासिक जीत हुई. पार्टी द्वारा राज्य मंत्रिमंडल में समाज कल्याण मंत्री का दायित्व सौपा गया. मंत्री पद पर रहते राज्य की जनता की सेवा की.
त्यागपत्र ने दुमका भाजपा में गुटबाजी को किया उजागर
अपने त्यागपत्र में डॉक्टर लुईस मरांडी ने लिखा कि समय के साथ राजनीतिक परिस्थितियों व हालत बदलती गई.वर्तमान दौर में महसूस हो रहा है कि पार्टी के निष्ठावान व समर्पित कार्यकर्ताओं को दरकिनार करने की साजिश लगातार तेज हुई है. अन्य दलों से आए लोग हावी होते गए। पार्टी के अंदर गुटबाजी चरम पर पहुंच गई.इसी का नतीजा है कि दुमका जैसे प्रतिष्ठित सीट पर भाजपा को एक बार जीत मिलने के बाद लगातार हार का सामना कर रही है. पार्टी संगठन में अनुशासन की धज्जियां उड़ाई जा रही है. समर्पित कार्यकर्ताओं के आस्था व निष्ठा पर शक किया जा रहा है. 2024 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा प्रत्याशी सीता सोरेन ने जिस तरीके से पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर सच्चे कार्यकर्ताओं पर छल प्रपंच व विश्वासघात करने का आरोप लगाया है वह पार्टी के अंदर तेजी से फैल रही अराजकता को दर्शाता है.
दुमका विधानसभा से चुनाव लड़ने का भरोशा देकर टिकट किसी और को दे दिया गया
आगे उन्होंने लिखा कि ऐसा लग रहा था कि पार्टी आलाकमान समय रहते सब कुछ डैमेज कंट्रोल कर लेगा लेकिन परिस्थितियों में सुधार के बजाय दिनों दिन अराजकता, अनुशासनहीनता और गुटबाजी बढ़ता ही जा रहा है. कुछ लोग पार्टी के अंदर आंतरिक प्रजातंत्र का गला घोटने पर आमदा है. पार्टी के अंदर चल रही ऐसी षड्यंत्रकारी गतिविधियों से मन काफी उद्वेलित और आहत है. 2024 के विधानसभा चुनाव की तैयारी दुमका से करने व चुनाव लड़ने का हर संभव भरोसा दिया गया.जिसे ध्यान में रखकर न सिर्फ चुनावी तैयारी में दिन-रात जुटी रही बल्कि पार्टी स्तर पर दिए गए तमाम दायित्व का निर्वहन पूरी निष्ठा से करती रही. संगठन की मजबूती में लगी रही. लोकसभा चुनाव में दुमका विधानसभा सीट से भाजपा को बढ़त मिलने की वजह भी यही रही. प्रजातंत्र में जनता सब का मालिक है. दुमका के जनमानस की अपेक्षा थी कि दुमका विधानसभा से चुनाव लड़ूं. महिलाओं को मान सम्मान देने वाली भाजपा का शीर्ष नेतृत्व आखिर किस वजह से एक महिला को टिकट से वंचित कर रही है यह समझ से परे है.
24 वर्षो तक साथ देने वाले कार्यकर्ताओं के प्रति जताया आभार
इन 24 वर्षों के राजनीतिक जीवन में सहयोग प्रदान करने वाले सभी वरिष्ठ व कनिष्ठ कार्यकर्ताओं के प्रति हृदय से आभार व्यक्त करते हुए खेद पूर्वक प्रदेश की सवा तीन करोड़ जनता और दुमका वासियों पर अपनी भविष्य की राजनीति तय करने व उनके आशीर्वाद की आकांक्षा लिए भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष पद समेत पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता है.
समय के साथ बढ़ता गया दुमका भाजपा में गुटबाजी
डॉ लुईस मरांडी का यह पोस्ट भावुक के साथ-साथ पार्टी की अंतर्कलह को भी उजागर करता है. कई वर्षों से दुमका भाजपा में गुटबाजी समाचार पत्रों की सुर्खियां बनती रही. पद पर रहते लुईस मरांडी ने भले ही कभी गुटबाजी को स्वीकार नहीं किया हो लेकिन अपने त्यागपत्र में जिस राज को उजागर किया है उससे लगता है कि पार्टी आलाकमान कभी भी गुटबाजी समाप्त करने के लिए ईमानदारी पूर्वक प्रयास ही नहीं किया.वर्षों से दुमका भाजपा सुनील सोरेन और लुईस मरांडी गट में बंटी रही.वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद जब बाबूलाल मरांडी की घर वापसी हुई और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया तो ऐसा लगा कि अपने कर्मस्थली दुमका में बाबूलाल मरांडी तमाम भाजपाईयों को एकता के सूत्र में बांधने में कामयाब हो जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.दो गुट के बाद एक तीसरा गुट बन गया. जिसमें वैसे लोग सक्रिय हो गए जो बाबूलाल मरांडी के साथ भाजपा छोड़ झाविमो में गए थे और देर सबेर फिर भाजपा में वापसी की. राजनीति के जानकार बताते हैं कि बाबूलाल मरांडी ने प्रदेश अध्यक्ष रहते तीसरे गुट को तवज्जो दी। बात यहीं समाप्त नहीं हुई. लोकसभा चुनाव के पूर्व जब सीता सोरेन ने झमुमो छोड़ भाजपा का दामन थामा तो दुमका जिला में भाजपा का एक नया गुट तैयार हुआ.
डॉ लुईस मरांडी के त्यागपत्र का दुमका भाजपा पर क्या होगा असर!
नई गुट की सक्रियता भले ही कम रही हो लेकिन चुनाव हारने के बाद सीता सोरेन ने जिस प्रकार हार का ठेकरा प्रखंड से लेकर प्रदेश स्तर तक के नेता और कार्यकर्ताओं पर फोड़ा इसके बावजूद पार्टी आलाकमान द्वारा गुटबाजी को नजर अंदाज करने का नतीजा है कि संताल परगना में भाजपा की मजबूत नेत्री के रूप में जाने जाने वाली लुईस मरांडी को आखिरकार भाजपा को टाटा बाय बाय करना पड़ा. अब लुईस मरांडी की नई राजनीतिक पारी क्या गुल खिलाएगी? लुइस के त्यागपत्र का दुमका भाजपा पर क्या असर पड़ेगा? क्या लुईस के समर्थक भाजपा छोड़ झमोमो का दामन थामेंगे या फिर सीता सोरेन की भांति अकेले ही दल बदल कर अपनी नई राजनीतिक पारी खेलेंगी? इन तमाम सवालों के जवाब भी समय के साथ-साथ मिल जाएगा.