धनबाद(DHANBAD): जिले में 3000 रजिस्टर्ड खिलाड़ी है. इसके अलावा बिना रजिस्टर्ड खिलाड़ियों की संख्या हजारों में है. बावजूद इनको धनबाद में खेलने की कोई जगह नहीं है. इतना ही नहीं, धनबाद रेल मंडल पूरे देश में राजस्व के मामले में नंबर एक है, इस राजस्व में धनबाद की बड़ी भूमिका है. लेकिन उसके रेलवे स्टेडियम में अब खिलाड़ियों को खेलने और धनबाद क्रिकेट एसोसिएशन को मैच कराने की अनुमति नहीं है. रेलवे ने प्रतिदिन ₹5000 का किराया निर्धारित किया है. ऐसे में धनबाद क्रिकेट एसोसिएशन इस खर्च को वहन करने में असमर्थ है.
बिरसा मुंडा पार्क का हाल भी बेहाल
वैसे धनबाद में एक बिरसा मुंडा पार्क अधूरा बना है. अभी बहुत कुछ काम बाकी है. उसका उद्घाटन भी नहीं हुआ है लेकिन जरूरत के हिसाब से उसका उपयोग किया जाता है. जमीन नहीं मिलने के कारण यहां राष्ट्रीय स्तर का कोई स्टेडियम भी नहीं है. क्रिकेट एसोसिएशन राशि खर्च करने को तैयार है लेकिन जमीन तो राज्य सरकार को ही देनी होगी. झारखण्ड क्रिकेट एसोसिएशन के धनबाद प्रतिनिधि विनय कुमार सिंह कहते है कि लगातार प्रयास के बाद भी क्रिकेट एसोसिएशन को जमीन नहीं मिलती. नतीजा है कि धनबाद बिना स्टेडियम के ही संतोष कर रहा है. अमूमन छोटे ग्राउंड की बात करें तो कोहिनूर ग्राउंड, गोल्फ ग्राउंड, जिला परिषद मैदान है, जहां शाम या सुबह बच्चे आउटडोर गेम खेलते हैं, लेकिन इन मैदानों को कारोबार का केंद्र बना दिया गया है.
छोटे मैदानों में होते रहते है कोई न कोई आयोजन
अक्सर यहां कोई न कोई आयोजन होते रहते हैं. कोहिनूर ग्राउंड को तो घेर लिया गया है, जिला परिषद मैदान का भी वही हाल है, अभी वहां गर्म कपड़ों का बाजार लगा हुआ है, फिर अगर गोल्फ मैदान की बात करें तो यहां अभी अंतरराष्ट्रीय ट्रेड फेयर चल रहा है. ऐसे में धनबाद के बच्चे खेले तो खेले कहां. ऐसी बात नहीं है कि धनबाद में प्रतिभाओं की कमी है, लेकिन उन्हें अवसर नहीं मिलता है. खेल के महत्व को यहां के जनप्रतिनिधि नहीं समझते, इतना राजस्व देने वाला धनबाद सिर्फ विजन के अभाव में परेशानी झेलता है. खेल संघ अपनी हैसियत के हिसाब से दबाव भी बनाता है लेकिन उनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित होती है. नतीजा है कि छोटे-छोटे बच्चों को खेलने के लिए भी धनबाद में कोई मैदान नहीं छोड़ा जा रहा है.
रिपोर्ट : शाम्भवी सिंह/संतोष, धनबाद
