टीएनपी डेस्क(Tnp desk):- झारखंड आंदोलन के अगुवा शिबू सोरेन ही थे, उनका संघर्ष काफी लंबे समय तक चला और रंग भी लाया. आदिवासियों के हक-हकूक के लिए महाजनों, साहूकारों के साथ बचपन से ही जूझते-लड़ते-भिड़ते रहे. उन्होंने उस गुरबत को भी देखा और उस संघर्ष को भी सहा. झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक सदस्यों में से एक शिबू सोरेन को दिशोम गुरु ऐसे ही नहीं बोला जाता है.
पिता-पुत्र का सपना रह गया अधूरा
शिबू सोरेन के ही मंझले बेटे हेमंत सोरेन हैं. जिन्हें ईडी ने जमीन घोटाले में गिरफ्तार किया . जिसके बाद हेमंत को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा . वो झारखंड के दो बार मुख्मंत्री बनें. लेकिन, कभी भी पांच साल टिक नहीं सके, इस बार भ्रष्टाचार की कालिख उन पर लगी और उन्हें गद्दी से उतरना पड़ा. बेटे की तरह ही गुरुजी यानि शिबू सोरेन भी राज्य के तीन-तीन बार सीएम बनें. लेकिन, कभी भी छह महीने से ज्यादा वक्त तक राज्य के मुख्यमंत्री नहीं रह सके. यानि पिता और पुत्र कभी भी निश्चितं होकर पांच साल तक राज्य नहीं चला सके . कुछ न कुछ परेशानियां, बाधाएं या अड़चने आई, जो उनकी राह में अड़ंगा डालत रहा .
हेमंत के पिता शिबू सोरेन की तो इतनी फजीहत हुई कि मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए विधानसभा उपचुनाव हार गये . जो इतिहास ही बन गया. आईए दिशोम गुरु का सपना कैसे सपना ही रह गया और मुख्यमंत्री बनने के बावजूद कैसे छह महीने से भी कम वक्त में कुर्सी से तीन-तीन बार उतरना पड़ा. आपको इसकी कहानी तफ्सील से बताते हैं.
2005 में पहली बार सीएम बनें शिबू सोरेन
झारखंड का गठन 15 नवंबर 2000 को हुआ था. इसके बाद पहली बार विधानसभा चुनाव 2005 को हुआ. 81 सदस्यीय विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला था. 30 सीट जीतकर बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनीं थी. उस वक्त जेडीयू की भी 6 सीट जीती थी. लिहाजा, एनडीए के पास कुल 36 सीट मौजूद थी. उस दौरान शिबू सोरेन की पार्टी झामुमो को 17 सीट मिली थी, और उसकी सहयोगी पार्टी कांग्रेस को 9 सीट मिली थी. इस तरह यूपीए को 26 सीट मिली थी, एनडीए से दस सीट कम होने के बावजूद तात्कालीन राज्यपाल सिब्ते रजी ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था. उस शिबू सोरेन केन्द्र में मंत्री भी थे और 42 विधायकों के समर्थन का दावा भी किया था. जबकि, असली हकदार सरकार बनाने की एनडीए की थी. लेकिन, राज्यपाल सिब्ते रजी ने इसे दरकिनार कर दिया था. शिबू सोरेन 2 मार्च 2005 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन संख्या बल कम होने के चलते बहुमत साबित नहीं कर सकी और सरकार दस दिन में ही गिर गई.
इसके बाद अर्जुन मुंडा की अगुवाी में बीजेपी की सरकार बनी, जिसका समर्थन मधु कोड़ा समेत तीन विधायकों न किया. लेकिन, यही तीनों निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया, जिसके चलते सरकार गिर गई. इस दौरान नाटकीय तरीके से 18 सितंबर 2006 को बेहद नाटकीय तरीके से मधु कोड़ा झारखंड के मुख्यमंत्री बनें. झामुमो, राजद , एनसीपी और फॉरवर्ड ब्लाक ने समर्थन किया था, जबकि कांग्रेस ने बाहर से सरकार के साथ थी. कोयला घोटाले में नाम आने के बाद मधु कोड़ा को कुर्सी छोड़नी पड़ी.
तमाड़ा से उपचुनाव हार गये थे शिबू सोरेन
कोड़ा के हटने के बाद 28 अगस्त 2008 को शिबू सोरेन दूसरी बार राज्य की कमान संभाली . उस वक्त दुमका से वे सांसद भी थे. लेकिन, मुख्यमंत्री बनें रहने के लिए 28 फरवरी 2009 तक झारखंड विधानसभा सदस्य भी बनना जरुरी था. इसके लिए चुनाव जीतना भी जरुरी थी, तो तमाड़ सीट पर उपचुनाव हुआ, शिबू ने जीत के लिए पूरी जद्दोजहद की . लेकिन , बदकिस्मती से राजा पीटर के हाथों हार गये. यानि एकबार फिर सपना चकनाचूर हो गया औऱ बीच में ही सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी. इसके बाद ही राज्य में पहली बार राष्ट्रपति शासन लागू हुआ .
इसके बाद शिबू ने सीएम बनने का सपना नहीं छोड़ा. एकबार फिर उन्हें मिला और इस बार सोरेन ने 153 दिन तक झारखंड की बागडोर संभाली. उन्होंने 30 दिसंबर 2009 से एक जून 2010 तक राज्य के सीएम बनें रहें. इसमे बीजेपी, आजसू औऱ जदयू ने समर्थन दिया था. लेकिन, यहां पचड़ा ये फंसा था कि शिबू ने केन्द्र में यूपीए सरकार को समर्थन दिया था. इससे एनडीए ने समर्थन वापस ले लिया. जिसके चलते लगातार तीसरी बार शिबू सोरेन को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी.
फिर ढलती उम्र और गिरते स्वास्थ्य के चलते उनकी ख्वाहिशे दम तोड़ती गई, जिसके चलते फिर मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब नहीं बुना. उनके बाद मंझले बेटे हेमंत सोरेन ने उनकी राजनीतिक विरासत को संभाला औऱ दो बार राज्य के मुखिया बनें. लेकिन, पिता की ही तरह कभी भी पांच साल तक राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बन सके. पहली बार हेमंत ने 13 जुलाई 2013 से 23 दिसंबर 2014 तक सीएम बनें. इसके बाद दूसरी बार 29 दिसंबर 2019 को मुख्यमंत्री बनें और फिर 31 जनवरी 2024 को जमीन घोटाले में आरोप लगने और गिरफ्तार होने के बाद इस्तीफा देना पड़ा.
पिता और पुत्र ने पांच बार मुख्यमंत्री बनें, लेकिन कही न कही एक सपना और एक हसरते हमेशा दिल में दबी की दबी ही रह गई. कभी भी पांच साल तक खुलकर शासन नहीं चला सके.