रांची (TNP Desk) : चुनाव में बड़ी पार्टियों के साथ-साथ छोटे दलों का भी रोल अहम होता है. कभी-कभी ऐसा होता है कि छोटे दल के नेता बड़ी पार्टियों को मात देकर बाजी मार लेते हैं. अक्सर देखा गया है कि छोटी पार्टियों के प्रत्याशियों के उतरने से उस क्षेत्र का समीकरण ही बिगड़ जाता है. ऐसा ही झारखंड में भी होता रहा है. पिछले कई चुनाव में स्थानीय नेताओं को बड़ी पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर छोटे दलों में शामिल हो जाते हैं. जो क्षेत्रीय दलों की टिकट पर चुनाव लड़कर जीत-हार में समीकरण ही बिगाड़ देते हैं. इस बार भी ऐसे ही छोटे दल का अहम रोल हो सकता है.
इस बार के लोकसभा चुनाव में झारखंड में दो ऐसी पार्टियां मैदान में उतरी है जो बड़ा खेला कर सकती है. एक है छात्र नेता जयराम महतो की पार्टी झारखंडी भाषा खतियान संघर्ष समिति और दूसरा पूर्व मंत्री एनोस एक्का की झारखंड पार्टी. इन दोनों पार्टियों ने कई लोकसभा क्षेत्रों से उम्मीदवार की घोषणा कर दी है. जयराम महतो खुद गिरिडीह से चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं उनकी पार्टी जेबीकेएसएस रांची, दुमका, हजारीबाग, धनबाद सहित अन्यी सीटों से प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है. एनोस एक्का की झारखंड पार्टी ने भी खूंटी सहित कई सीटों से उम्मीदवारों की घोषणा की है. वहीं चमड़ा लिंडा और लोबिन हेंब्रम को लोहरदगा और राजमहल में चुनाव मैदान में उतरने की स्थिति में समर्थन देने की बात कही है. अगर ऐसा हो गया तो बड़ी पार्टियों के लिए मुश्किलें खड़ी हो जायेगी.
ये रहा आंकड़ा
2019 चुनाव में खूंटी सीट बीजेपी अर्जुन मुंडा कड़े मुकाबले में जीत दर्ज कर की थी. उन्होंने कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को हराया था. उस समय अर्जुन मुंडा को 45.97 प्रतिशत मत मिले. वहीं कालीचरण मुंडा को 45.80 प्रतिशत, आईएनडी के मीनाक्षी मुंडा को 1.32 प्रतिशत, झारखंड पार्टी के अजय टोपनो को 1.06 प्रतिशत, बसमा प्रत्याशी इंदुमती मुंडू को 0.92 प्रतिशत वोट मिले थे. 2014 के चुनाव में भाजपा के करिया मुंडा को 36.49 प्रतिशत, झारखंडी पार्टी के प्रमुख एनोस एक्का को 23.99 प्रतिशत, कांग्रेस के कालीचरण मुंडा को 19.93 प्रतिशत, आजसू के नील तिर्की को 3.68 प्रतिशत, जेवीएम के बसंत कुमार लोंगो को 3.32 मत मिले. 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के करिया मुंडा को 41.19 प्रतिशत, कांग्रेस के नील तिर्की को 25.48 प्रतिशत, झारखंड पार्टी के निशिकांत होरो को 16.46 प्रतिशत वोट मिला था.
वहीं लोहरदगा लोकसभा सीट की बात करें तो यहां भी 2019 के चुनाव में छोटे दलों ने बड़ी पार्टी का खेल बिगाड़ दिया था. कांग्रेस उम्मीदवार सुखदेव भगत बहुत कम वोटों से हार गए थे. बीजेपी के सुदर्शन भगत ने करीब दस हजार वोटों से सुखदेव भगत को हराया था. अगर झारखंड पार्टी देवकुमार धान को मैदान में नहीं उतारती तो कांग्रेस उम्मीदवार जीत जाती. इस चुनाव में भाजपा के सुदर्शन भगत को 45.45 प्रतिशत, कांग्रेस के सुखदेव भगत को 44.18 प्रतिशत, झारखंड पार्टी के देवकुमार धान को 2.39 प्रतिशत, निर्दलीय उम्मीदवार संजय उरांव को 1.3 प्रतिशत और एआईटीसी के दिनेश उरांव को 1.18 वोट मिले थे. 2014 में बीजेपी के सुदर्शन भगत को 34.79 प्रतिशत, कांग्रेस के रामेश्वर उरांव को 33.80 प्रतिशत, एआईटीसी के चमरा लिंडा ने 18.17 वोट पाकर कांग्रेस के रामेश्वर उरांव का खेल बिगाड़ दिया था. 2009 के चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार चमरा लिंडा ने 136,345 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे. उन्होंने कांग्रेस के रामेश्वर उरांव का खेल बिगाड़ दिया था. उस चुनाव में भाजपा के सुदर्शन भगत को 27.58 प्रतिशत, चमरा लिंडा को 26 प्रतिशत और कांग्रेस के रामेश्वर उरांव को 24.72 प्रतिशत मत मिला था.
इस चुनाव में भी कुछ ऐसा ही होने वाला है. क्योंकि दो क्षेत्रीय पार्टियों ने कुछ लोकसभा सीटों पर अपने-अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी है. अब देखना होगा कि इस चुनाव में छोटे दल कितना प्रभाव डालती है. दरअसल जब भी छोटे दलों ने अपने प्रत्याशी को मैदान में उतारा है तब-तब बड़ी पार्टियों को काफी नुकसान हुआ है.