Tnp Desk: सियासत में विचारधाराओं की लड़ाई के उफान में कब कौन किधर करवट ले ले और पलटी मार ले कोई नहीं जानता . वक्त ही सबकुछ तय करता है. कल तक जो चेहरे ओझल थे, अगली सुबह चमकने लगते हैं. राजनीति का यही मिजाज और इसके गलियारों में उठा पटक इसकी शगल रही है.
राम की पार्टी में शामिल हुई सीता
अभी सबसे ताजा मामला , जिसने झारखंड की राजनीति की तपीश को इस गर्मी की दस्तक से पहले और गर्म कर दिया. वो सियासी पारे को बढ़ाने वाली खबर जेएमएम की विधायक और शिबू सोरेन की बड़ी पुत्र वधु सीता सोरेन का पार्टी से इस्तीफे के बाद भारतीय जनता पार्टी से जुड़ना रहा . इस खबर के सामने आने के बाद सियासी गलियारों में चर्चा का तूफान तो उमड़ा ही. इसके साथ ही जेएमएम के गढ़ संताल परगना की फिजाओं में भी हलचल बढ़ा दी. सवाल सभी के मन में यही घुमड़ रहा है कि आखिर दिशोम गुरु की बड़ी पुत्र-वधु ने ऐसा कदम क्यों उठाया ?. आखिर ऐसी क्या बात हो गयी कि परिवार से ही दूर चली गई. सोरेन परिवार को मुश्किल वक्त में बीच मझदार में ही छोड़ दिया ?. सोरेन परिवार में हो रही उपेक्षा को सीता ने पार्टी से हटने के लिए जिम्मेदार माना है और एक गहरी साजिशा का ठीकरा फोड़ा . भाजपा से जुड़ने के बाद भी सीता ने सार्वजनिक बयान दिया कि 14 साल तक पार्टी की सेवा करने के बाद भी, कोई तरजीह नहीं दी गई . और न ही कभी उनकी बातों को गौर फरमाया गया. इसी दर्द के चलते ही अपनी राहे अलग कर ली
संताल की सियासत पर क्या होगा असर ?
सवाल है कि भाजपा ने एक बड़ी सेंधमारी तो कि, लेकिन क्या सीता सोरेन के जाने के बाद संताल की सियासत में कोई बड़ा असर होगा. इससे कमल फूल को एक बड़ा सहारा मिल जाएगा या फिर उतना असर नहीं पड़न वाला है. कई प्रश्न उठ रहे हैं और चर्चाओं के बाजार मे भी जितनी मुंह, उतनी बात निकल रही है. अगर जमीनी हकीकत पर गौर फरमाएं, तो लगातार तीन बार जामा विधानसभा से जीत की हैट्रिक लगाने वाली सीता सोरेन अपने दिवंगत पति दुर्गा सोरेन के निधन के बाद यकायक राजनीति मे आई. अगर उनके पीछे झारखंड मुक्ति मोर्चा और सोरेन परिवार का तमगा नहीं लगा रहता, तो शायद ही सियासत में उनका इतना सिक्का चलता . एक बात तो तय है कि सीता के पीछे झारखंड का सबसे कद्दावार राजनीतिक परिवार के सदस्य होना ही उनकी राजनीति को आसान बनाया. अब भाजपा में उनके आने से जेएमएम का एक बड़ा वोट बैंक संताल परगना से खिसकेगा, ऐसा तो नहीं लगता है. हां कही न कही भाजपा यहां मजबूत जरुर होगी , जहां सीता का सहारा उसे मिलेगा. क्योंकि झारखंड में झारखंड मुक्ति मोर्चा एक मजबूत पार्टी तो है ही औऱ भाजपा को भी टक्कर देती रही है. अभी राज्य में महगठबंधन की सरकार में जेएमएम सबसे बड़ा दल है औऱ उन्ही की पार्टी से चंपाई सोरेन मुख्यमंत्री हैं.
भाजपा में सीता का भविष्य कितना सुरक्षित ?
सीता सोरेन का राम की पार्टी में शामिल होने से सवाल ये है कि उनका भविष्य यहां कितना सुरक्षित है. क्योकि, ये तो तय है कि जेएमएम वाली बात भारतीय जनता पार्टी में नहीं होगी. लोकसभा चुनाव में आखिर सीता को क्या भूमिका मिलेगी, ये भी देखने वाली बात होगी. देखना ये भी मजेदार होगा कि उनकी दोनों बेटियां राज श्री औऱ जय श्री को सियासत में सेट कर पाती है यह नही .
जेएमएम की तुलना में भाजपा एक बड़ी पार्टी है. यहां कोई भी निर्णय बड़ी सोच विचार करने के साथ-साथ कई दौर की चर्चा औऱ फीडबैक के बाद ही लिया जाता है. ऐसे में सीता सोरेन यहां खुद को कितना सेट कर पाती है और सोरेन परिवार से अलग होकर अकेले खुद को कितना स्थापित कर पाती है. आने वाले वक्त में ये भी देखने वाली बात होगी.
सीता पर लगे हैं भ्रष्टाचार के आरोप
याद रखने की बात ये भी है कि गोड्डा से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने सीता सोरेन पर हमलावार रुख अपनाया था. उन्होंने हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाते हुए कोर्ट में सीता सोरेन के खिलाफ मामला दायर किया था. सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में दूसरे जन प्रतिनिधियों के साथ ही सीता सोरेन के खिलाफ भी जांच का रास्ता साफ कर दिया. इतना ही नहीं सीता सोरेन पर आय से अधिक संपत्ति का आरोप है, और उनके खिलाफ लोकपाल का मामला भी है. ऐसी सूरत में ये भी प्रश्न उठ रहा है कि क्या सीता सोरेन इन सबों से बचने के लिए भाजपा का दामन थाम लिया. या इसके पीछे वाकई सोरेन परिवार में उनकी उपेक्षा और अनदेखी वजह थी. अब मुद्दा ये है कि भ्रष्टाचार की तोहमते सीता पर लगाकर गरजने वाली बीजेपी अब कुछ बोलेगी या फिर सारे आरोप अब हवा में ओझल हो जाएंगे ?
संताल में भाजपा की राह आसान नहीं !
झारखंड में कोल्हान और संताल ये दोनों क्षेत्र में भाजपा कमजोर कड़ी साबित होती रही है. कोल्हान का किला तो उसने गीता कोड़ा को अपने पाले में लाकर बहुत हद तक हासिल कर लिया. लेकिन, संताल में सीता सोरेन को लाकर भाजपा सोच रही है कि बड़ी जीत साबित हुई है, तो अभी यह कहना जल्दबाजी होगी. 18 विधानसभा सीट वाले संताल परगना में भाजपा के पास महज यहां 4 ही विधायक है, जबकि जेएमएम के 9 और कांग्रेस के 5 विधायक है. ऐसी सूरत में सीता सोरेन कितनी कामयाबी भाजपा को दिलवाती है औऱ खुद भी कितना कामयाब हो पाती है. आने वाला वक्त इसकी तस्दीक कर देगा.
रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह