धनबाद(DHANBAD): धनबाद लोकसभा क्षेत्र किसको दिल्ली भेजेगा, इसका तो पता 4 जून को चलेगा. लेकिन उसके पहले ही धनबाद की सिंदरी उम्मीदवारों की कड़ी "परीक्षा" ले रही है. उनकी भविष्य की संभावित सक्रियता को जाँच रही है. सिंदरी की "माटी" प्रत्याशियों को खोज रही है, पूछ रही है कि पानी -बिजली तो धनबाद में चुनाव खत्म होने के बाद से ही लगभग लापता हो गए है. सिंदरी की हालत यह हो गई है कि लोग पानी -बिजली संकट के कारण अपने-अपने रिश्तेदारों के यहां शिफ्ट कर रहे है. कुछ लोग धनबाद के होटल में भी आकर ठहर गए है. मतलब साफ है कि सिंदरी का स्वर्णिम काल अब खत्म हो गया है. दोबारा लौटकर यह आएगा कि नहीं, इसमें संदेह ही है.
दामोदर नदी गुजरती है, लेकिन बूंद- बूंद पानी का संकट
सिंदरी के बगल से दामोदर नदी गुजरती है, लेकिन सिंदरी के लोग बूंद- बूंद पानी को तरस रहे है. सिंदरी में अभी लगभग 8,000 क्वार्टर हैं, एक अनुमान के अनुसार 50,000 से लेकर 80,000 की आबादी सिंदरी में बसती है. लेकिन सिंदरी को अनाथ छोड़ दिया गया है. 25 मई को धनबाद में चुनाव खत्म होने के बाद 26 मई से सिंदरी में बिजली संकट शुरू हुआ , जो 31 मई तक जारी है. फिलहाल तात्कालिक रूप से दो-दो घंटे के अंतराल पर बिजली आपूर्ति की जा रही है, लेकिन इससे बहुत लाभ किसी को नहीं मिल रहा है. सारे घरों के इनवर्टर बैठ गए है. ना रात में कोई सो पा रहा है, ना दिन में. 30 मई की रात 9 बजे के पहले तापमान भी चरम पर था. बढ़ा हुआ तापमान लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा था. कहा तो यह भी जा रहा है कि सिंदरी में कार्यालय में संख्या कम हो गई है. लोगों की तबीयत बिगड़ने लगी है. ऐसी बात नहीं है कि बिजली विभाग या अन्य अधिकारियों को इसकी खबर नहीं है. खबर के बावजूद यह स्थिति बनी हुई है.
23 मई तक बड़े-बड़े वादे करने वाले आज कहां चले गए
बिजली नहीं रहने से जलापूर्ति भी बाधित है. पानी के लिए लोग परेशान है, सिंदरी के लोग प्रत्याशियों को ढूंढ रहे है. पूछ रहे हैं कि 23 मई तक बड़े-बड़े वादे करने वाले आज कहां चले गए. चुनाव जीतने के पहले यह हाल है, तो जीतने के बाद क्या होगा. वैसे , सूचना है कि बीजेपी और कांग्रेस की ओर से निजी खर्चे पर टैंकर से जलापूर्ति कराई जा रही है. लेकिन यह ऊंट के मुंह में जीरा के समान है. hurl भी तीन-चार टैंकर किराए पर लिया है और पानी बांटने का काम शुरू किया है, लेकिन इससे भी कोई समाधान निकलता दिख नहीं रहा है. धनबाद की सिंदरी एक समय "सुंदरी" कही जाती थी. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सिंदरी खाद कारखाने को अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताया था. कारखाना शुरू हुआ ,चला भी, सुर्खियां भी बटोरा , लेकिन यह कारखाना बंद हो गया. बंद होने के काफी बाद कई लोक क्षेत्रीय प्रतिष्ठानों को मिलाकर हर्ल कंपनी ने उत्पादन शुरू किया है. लेकिन यह कंपनी क्या सिंदरी की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस करा पाएगी, यह एक बड़ा सवाल बनकर सामने खड़ा हुआ है.
"स्वप्न सुंदरी" सिंदरी अब हो गई है कुरूप
देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की "स्वप्न सुंदरी" सिंदरी 1951 में शुरू होने के बाद किस्तों में मरती चली गई या किस्तों में मार दी गई. दोनों बातें सच है क्योंकि जिस तामझाम और जरूरत को पूरा करने के लिए सिंदरी खाद कारखाने का उद्घाटन पंडित नेहरू ने 1951 में किया था, उसे आगे के दिनों में मेंटेन नहीं किया गया और धीरे-धीरे अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही ,नेतागिरी की भेंट चढ गया देश का प्रतिष्ठित सिंदरी खाद कारखाना. यूं तो इसकी हालत एक दशक से भी अधिक समय से बिगड़ रही थी लेकिन अंततः दिसंबर 2002 में इस कारखाने को स्थाई रूप से बंद घोषित कर दिया गया. यह कारखाना अपने आप में अद्भुत था, इस कारखाने के पास अपनी रेल लाइन, अपना पोस्ट ऑफिस, अपना एयरपोर्ट सब कुछ था और देश के अन्य उद्योगों के लिए एक उदाहरण भी था लेकिन समय के साथ सरकार की निगाहें टेढ़ी होती गई और यह कारखाना हमेशा -हमेशा के लिए बंद हो गया. जिस समय यह कारखाना बंद हुआ ,उस समय यहां कार्यरत कर्मचारियों की संख्या लगभग दो हजार से भी अधिक थी.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो