Tnp desk:-शरदीय नवरात्र की शुरुआत रविवार को हो रही है, देश भर में पूजा बेहद ही धूमधाम से मनाई जाएगी. हिंदु धर्म में नवरात्र का बेहद ही महत्व बताया गया है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन ही माता अम्बे कैलाश पर्वत से धरती पर अपने मायके आती है. इसके बाद विजयदशमी को वापस कैलाश लौट जाती है.
नवरात्रा में बन रहें शुभ योग
इस साल मात रानी का आगमन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि पर 15 अक्टूबर और विदाई दशमी तिथि 24 अक्टूबर को होगी. आचार्यों के अनुसार इस बार नवरात्रि में बेहद दुर्लभ संयोग बन रहा है. इस बार नवरात्र में सर्वार्थसिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग एकसाथ बन रहा हैं ,लिहाजा ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक इस सर्वसिद्धि योग को बेहद शुभ माना जा रहा है . बताया जा रहा है कि इस बार माता के भक्तों को मां की उपासना करने के लिए पूरे नौ दिनों का समय मिलेगा, जिसमे दो दिन सोमवार पड़ेगा, जो की एक बेहद ही शुभ माना जा रहा है. ऐसा मान जाता है कि सोमवार के दिन माता दुर्गा की उपासना करने से साधक को उसके द्वारा की गई पूजा का कई गुना अधिक फल प्राप्त होता है.
माता छिन्नमस्ता के दर पर जुटेंगे साधक
रामगढ़ के रजरप्पा के पास स्थित मां छिन्नमस्ता के दरबार में भी माता के भक्त बिहार, बंगाल, ओडिशा , छत्तीसगढ़ सहित देश के कौने-कौने से पहुंचेंगे . मां के दर पर साधकों, उपासकों औऱ भक्तों की टोली जुटना शुरु हो गई है. नवरात्र के दौरान सिद्ध पीठ छिन्नमस्तिका मंदिर की अपनी अलग ही महिमा देखने को मिलती है. दूर दराज से इस देवी के दरबार मे लोग शीश झुकाकर मां से आशीर्वाद मांगते हैं. अपनी मन्नतों को पूरा होने पर माता की आराधना करते हैं. नवरात्र के मौके पर तो पूरा मंदिर परिसर ही रंग-बिरंगे और खुशबूदार खूबसूरत फूलों से सजा नजर आता है. इसबार भी विशेष तैयारी यहां पर की गई है. कोलकाता से आए कारीगर मां के दरबार को सजाने में जुटे हुए हैं, रंग-बिरंगे लाइट यहां लगाए गये ताकि रात में रौशनी से मां के मंदिर और प्रांगन जगमग हो उठेगा. यहां साधना के लिए पहुंचने वाले साधकों के लिए भी विशेष इंतजाम मंदिर न्यास समिति के द्वारा किया गया है. साधकों के लिए धर्मशाला और साधना के लिए हवनकुंड तैयार किया गया है. साधना और हवन के लिए लिए झारखंड सहित बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ सहित देश के कई कोनों से साधु संत और साधक यहां पहुंचकर नौ दिनों तक पूजा-पाठ करते है.
सिद्ध पीठ है मां छिनमस्ता का मंदिर
मां छिनमस्ता के दरबार में तो सालों पर देश के कोने-कोने से भक्तों की भीड़ जुटती है. लेकिन, नवरात्र में खासकर आष्टमी और नवमी में तो काफी भीड़ देखने को मिलती है. ऐसी मान्यता है कि नवरात्र के समय मां के दर्शन मात्र से ही सारी मानोकमानाएं पूरी हो जाती है. इस ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर की कई कथाएं है. जिसमे एक की माने तो इस मंदिर का निर्माण स्वंय भगवान के हाथों हुआ है. कुछ पुरातात्विक विशेषज्ञों की मानना है मां का ये मंदिर का निर्माण 6000 साल पहले हुआ था. कुछ लोगों का कहना है कि मां छिन्नमस्ता का ये मंदिर महाभारत युग का है.
मंदिर को लेकर पौराणिक कथा
मंदिर के निर्माण को लेकर एक पौराणिक कथा है कि एक रात में भगवान विश्वकर्मा के द्वारा इस मंदिर का निर्माण किया जाना था. लेकिन, सुबह होने तक मंदिर का निर्माण आधा ही हो पाया . कई हजार साल बाद राजा को स्वप्न में मां ने इसे पूरा करने का आदेश दिया . जिसके बाद मंदिर का निर्माण काम पूरा हुआ.
रामगढ़ जिले के रजरप्पा स्थित दामोदर औऱ भेरवी के तट पर मां छिनमस्ता का मंदिर बना हुआ है. यहां सालों पर भक्तों का तांता लगा रहता है. लेकिन, नवरात्र में तो यहां भीड़ देखते ही बनती है. नवरात्र में नौ दिन मां के अलग-अलग स्वरुप की यहां पूजा होती है. इसके साथ ही विशेष भोग भी लगाया जाता है. देश में सबसे पहला सिद्धपीठ आसम के कामरू में स्थित कामाख्या मंदिर को माना जाता है. वही दूसरे स्थान पर राजरप्पा का छिन्नमस्ता मंदिर का आता है. लिहाजा, इसकी महत्ता काफी बढ़ जाती है.