रांची(RANCHI): शब ए बारात का पर्व इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग मानते है.शब ए बारात को इबादत और मगफिरत वाला पर्व कहा जाता है.ऐसी मान्यता है कि जो भी दुआ इस दिन मांगी जाती है वह कुबूल होती है.साथ ही गुनाहों की माफी भी इस रात को कुबूल होती है.इसी वजह से इसे बरकत और मगफिरत वाली रात भी कहा जाता है.शब ए बारात का हिंदी में मतलब समझे तो शब का अर्थ रात और बारात का मतलब बरी होना होता है.
इस रात सभी काम को छोड़ मुस्लिम समाज के लोग इबादत करते है.घरों को सजाते है मस्जिद में विशेष नमाज अदा करने जाते है.साथ ही अपने पूर्वजो की कब्र पर रोशनी(मोमबत्ती, अगरबत्ती,फूल की चादर) चढ़ा कर अपने पूर्वजों की मगफिरत की दुआ अल्लाह ताला से मांगते है.ऐसी परंपरा है कि शब ए बारात की रात इबादत करने के बाद पूर्वजों की कब्र पर जाना जरूरी होता है.यही वजह है कि शब ए बारात कि रात मस्जिद के साथ साथ कब्रिस्तान पर भी लाइट और अन्य व्यवस्था की जाती है.
शब ए बारात की रात जितनी भी इबादत कीजिये वह कम है.कुरआन की तिलावत से लेकर तसबी और नफिल नमाज अदा की जाती है. एशा की नमाज के बाद ही मुस्लिम समाज के लोग अपने घर से निकल कर मस्जिद चले जाते है.रात नौ बजे से नफिल नमाज पढ़ने का शिलशिला शुरू होता है जो सुबह तक जारी रहता है.बताया जाता है कि नफिल नमाज कमसे कम 20 रकाअत अदा किया जाता है.साथ में क़ुरआन की तिलावत भी जरूरी है.इसके बाद सुबह फज्र की नामज पढ़ने के बाद रोजा रखने की परंपरा है.
हदीस में रिवायत है कि शब ए बारात में इबादत करने के बाद दूसरे दिन रोजा रखना बेहतर होता है.अल्लाह ताला अपने बंदों को इसके बदले इनाम देता है.नौकरी,कारोबार और सेहत देता है.साथ ही गुनाहों से छुटकारा मिलता है.यह रोजा को कई मायनों में अहम बताया जाता है.यही कारण है कि मुस्लिम समाज के लोग रात भर इबादत के बाद दूसरे दिन रोजा रखते है.