धनबाद(DHANBAD): 1995 में जमशेदपुर के सीतारामडेरा में जहरीली शराब कांड हुई थी. वह जमाना बिहार का था. इसमें लगभग 2 दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. उसके बाद धनबाद के केंदुआडीह थाना क्षेत्र में भी जहरीली शराब कांड हुई थी और उसमें भी आधा दर्जन से अधिक लोग जान गवा बैठे थे. अभी बिहार में जहरीली शराब कांड की चर्चा तेज है. कोयलांचल से बिहार को शराब भेजने के मामले अक्सर पकड़ में आते रहते है. नया साल आने में कुछ ही दिनोंं की देरी है, ऐसे में कोयलांचल में शराब की खपत बढ़ेगी और इसके लिए धंधेबाज भी सक्रिय हो गए है.
केवल भट्ठियां ही हो पाती ध्वस्त,कारोबारी नहीं पकड़ाते
हालांकि पुलिस और आबकारी विभाग भी कार्रवाई कर रहा है लेकिन टीम सिर्फ भट्ठियां ही ध्वस्त कर पाती. धंधेबाज पकड़ में नहीं आते. मंगलवार को बलियापुर में छापेमारी हुई, बुधवार को तेतुलमारी में छापेमारी की गई. भट्ठियों को ध्वस्त किया गया. अगर धंधे बाजो के शराब बनाने के तौर तरीके को देखा जाये तो यह लोग जंगली क्षेत्र में कारखाना खोल लेते है. यह कारखाना नदी ,नाले या जोरिया के किनारे होते. नदी ,नाले और जोरिया के बगल में इसलिए लगाते हैं, कि उन्हें पानी की सुविधा मिलती रहे. तैयार शराब को जमीन के नीचे गाड़ कर रखते है. इसके लिए ड्राम आदि का प्रयोग करते है. सूत्र बताते हैं कि कोयलांचल के जंगली इलाकों में यह शराब की अवैध भट्ठियां खूब चलती है. ऐसी बात नहीं है कि उत्पाद विभाग या पुलिस को इसकी जानकारी नहीं रहती.
दिखावे के लिए होती छापेमारी
लेकिन जब ऊपर से दबाव बढ़ता है तो दिखाने के लिए कोई न कोई कार्रवाई कर दी जाती है. यह कैसे मान लिया जाये कि कोई शराब का अवैध कारखाना खोल ले और पुलिस या आवकारी विभाग को जानकारी नहीं हो. अमूमन कोयलांचल के ग्रामीण इलाकों में महुआ से देसी शराब बनाने वाले मिथाइल अल्कोहल मिलाते हैं, हालांकि मिथाइल अल्कोहल प्रतिबंधित है. गुड़ के बजाय महुआ में यूरिया ,नौसादर मिलाकर भी शराब बनाई जाती है. अवैध शराब में मिश्रण अनुमान के आधार पर मिलाया जाता है ,इसलिए इसे जहरीली होने का खतरा अधिक होता है. अवैध शराब बनाने वालो का अपना एक मजबूत नेटवर्क होता है. उनका अपना सप्लाई चैन भी होता है. कोयलांचल में निर्मित शराब केवल धनबाद में ही नहीं बिकती ,बल्कि बाहर भी जाती है. कहा जा सकता है कि काले हीरे की इस नगरी में हर काला धंधा सफेदपोश करते भी है और 'व्हाइट कॉलर' बन घूमते भी है.
रिपोर्ट: शांभवी सिंह