दुमका (DUMKA) : दुमका के राजकीय पुस्तकालय में संथाली लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन किया गया. जिला प्रशासन ने संथाली साहित्य के जनक कहे जाने वाले पी ओ बॉडिंग की जयंती पर कार्यक्रम का आयोजन किया. संथाली साहित्य के विकास में पी ओ बॉडिंग के योगदान को याद करते हुए संथाली लिटरेचर फेस्टिवल का आयोजन किया. इसमें देश ही नहीं विदेशों से भी वक्ता ऑनलाइन जुड़े.
पीओ बॉडिंग का इतिहास
पी ओ बॉडिंग का जन्म 2 नवंबर 1865 को नॉर्वे में हुआ था. 1889 में पीओ बॉडिंग पादरी बनकर भारत पहुंचे, जहां 44 वर्षों तक अपनी सेवा दी. उनका कार्यक्षेत्र बिहार, बंगाल, झारखंड और असम रहा. दुमका जिला के बेनागड़िया मिसन में रहकर उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और संथाली साहित्य के विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. इस दौरान उन्होंने 1914 में बाइबिल का संथाली भाषा में अनुवाद किया. 1922 में संथाली भाषा में व्याकरण की रचना की. संथाल समाज में प्रचलित लोक कथाओं को लिपिबद्ध किया.
5 सत्रों में कार्यक्रम का आयोजित
संथाली लिटरेचर फेस्टिवल में देश-विदेश से वक्ता ऑनलाइन जुड़े रहे. यह कार्यक्रम 5 सत्रों में आयोजित किया गया. पहले 3 सत्र में मंच से डॉक्टर धूनी सोरेन, रमेशचंद्र किस्कू, प्रमोदिनी हांसदा, मैरियनस टूटू, डुगरु सोरेन, जॉय टूडू, विजय कुमार मरांडी, जॉन जंतु सोरेन, सलगे हांसदा एंडरेस टुडू, डेनियल हांसदा, गैबरियल सोरेन, डॉ विश्वनाथ हांसदा, बाबलू टूडु, बोरो बास्की, सुंदर मनोज हेम्ब्रम मौजूद रहे, जिन्होंने कार्यक्रम को संबोधित किया. वहीं 2 सत्र ऑनलाइन हुआ जिसमें प्रो मरीन कैरिन, प्रो राश्वेत श्रृंखल, प्रो टोन ब्लेईए जैसे नामचीन विदेशी वक्ता ने कार्यक्रम को संबोधित किया.
रिपोर्ट: पंचम झा, दुमका