दुमका(DUMKA): झारखंड विधानसभा चुनाव अंतिम दौर में पहुंच गया है. संथाल परगना प्रमंडल के 18 सहित कुल 38 विधानसभा सीट पर दूसरे चरण में 20 नवंबर को मतदान होगा. मतदान को लेकर तमाम प्रशासनिक तैयारियां पूरी कर ली गई हैं. मतदान सामग्री के साथ मतदान कर्मियों को बूथ पर भेजा जा चुका है.
सीएम, विधानसभा अध्यक्ष सहित कई दिग्गज की प्रतिष्ठा दांव पर
संथाल परगना प्रमंडल की बात करें तो कुल 18 सीटों में से 7 सीट अनुसूचित जनजाति जबकि एक सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं. शेष 10 सीट अनारक्षित हैं. संथाल परगना प्रमंडल को सत्ता का प्रवेश द्वार कहा जाता है. यही वजह है कि तमाम राजनीतिक दलों ने संथाल परगना प्रमंडल पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए जमकर पसीना बहाया है. प्रमंडल के सीटों पर कई दिग्गज नेताओं की किस्मत कल ईवीएम में कैद हो जाएगी. बरहेट विधानसभा सीट से सीएम हेमंत सोरेन, महेशपुर सीट से पूर्व डिप्टी सीएम स्टीफन मरांडी, नाला सीट से विधानसभा अध्यक्ष रविंद्र नाथ महतो, जामा सीट से भाजपा से बगावत कर झामुमो का दामन थामने वाली पूर्व मंत्री डॉक्टर लुईस मरांडी, वहीं झामुमो से बगावत कर सोरेन परिवार की बड़ी पुत्रवधू सीता सोरेन सहित दीपिका पांडे सिंह, प्रदीप यादव हाफिजउल हसन, डॉक्टर इरफान अंसारी की प्रतिष्ठा दांव पर है.
दुमका के 4 विधानसभा सीट पर होगा रोचक मुकाबला
दुमका जिले कि बात करें तो यहां चार विधानसभा सीट है. जिसमें जरमुंडी विधानसभा सीट अनारक्षित है जबकि शेष तीन जामा, दुमका और शिकारीपाड़ा विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. चारों विधानसभा सीट पर रोचक मुकाबला होने के आसार है.
जरमुंडी सीट पर जीत हार में पूर्व मंत्री हरिनारायण राय की भूमिका हो सकती है अहम
जरमुंडी विधानसभा कि बात करें तो यहां कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पूर्व मंत्री बादल पत्रलेख तो भाजपा प्रत्याशी के रूप में पूर्व विधायक देवेंद्र कुंवर के बीच कांटे की टक्कर बताई जा रही है. बादल पत्रलेख विगत 10 वर्षों से जरमुंडी विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. हेमंत सोरेन की सरकार में लगभग साढ़े चार वर्षो तक कृषि मंत्री का भी दायित्व संभाला है. जरमुंडी विधानसभा सीट पर इस बार कि जीत हार में पूर्व मंत्री हरि नारायण राय की भूमिका बेहद अहम मानी जा रही है. वर्ष 2019 के चुनाव में जब बादल को लगभग 3,000 हजार मतों से जीत मिली थी तो हरी नारायण राय की पत्नी निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रही थीं और उसे लगभग 18,000 हजार मत प्राप्त हुए थे. लेकिन इस बार हरि नारायण राय भाजपा के साथ हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी देवेंद्र कुंवर इस चुनाव को अपना आखिरी चुनाव मानकर मतदाताओं से वोट देने की अपील पूरे प्रचार प्रसार के दौरान करते नजर आए.
जामा है झामुमो की परंपरागत सीट, आंसुओं की धार में खिलेगा कमल या रहेगा तीर धनुष का कब्जा
जामा विधानसभा कि बात करें तो यहां भाजपा प्रत्याशी सुरेश मुर्मू और झामुमो प्रत्याशी डॉक्टर लुईस मरांडी के बीच कांटे की टक्कर है. भाजपा प्रत्याशी सुरेश मुर्मू पिछले दो चुनाव में लगभग ढाई हजार मतों से चुनाव हार गए थे. वह इस चुनाव को अपने जीवन का आखिरी चुनाव मानकर जनता के बीच अपनी पैठ बनाने में लगे हुए हैं. जनता को भावनात्मक रूप से भी प्रचार के दौरान जोड़ने का प्रयास किया जब मंच से बोलते-बोलते वह रो पड़े. वर्ष 2019 के चुनाव में इस सीट पर आजसू और जदयू के साथ झाविमो ने भी अपना प्रत्याशी खड़ा किया था जबकि इस बार सुरेश मुर्मू एनडीए प्रत्याशी के रूप में मैदान में हैं.
वैसे यह सीट झामुमो और सोरेन परिवार की परंपरागत सीट मानी जाती है. शिबू सोरेन, दुर्गा सोरेन और सीता सोरेन तीनों इस विधानसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. इस विधानसभा सीट पर अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या काफी कम है. वहीं, एक तरफ जहां अनुसूचित जनजाति मतदाताओं की संख्या ज्यादा है तो सामान्य मतदाताओं की संख्या भी कम नहीं है. खासकर रामगढ़ प्रखंड के सामान्य श्रेणी के मतदाता जीत हार में एहम भूमिका निभाते हैं. कम समय में झामुमो प्रत्याशी डॉक्टर लुईस मरांडी ने गांव-गांव घूम कर मतदाताओं से सीधा संपर्क स्थापित कर यह भरोसा दिलाया है कि जिस तरह अपने 5 वर्षों के कार्यकाल में दुमका विधानसभा का विकास हुआ है उसी अनुरूप चुनाव जीतने पर जामा विधानसभा का भी विकास किया जाएगा.
दुमका सीट पर भाजपा का प्रयोग होता है सफल या फिर तीर धनुष का रहेगा कब्जा
दुमका विधानसभा सीट पर सीएम हेमंत सोरेन के भाई बसंत सोरेन झामुमो प्रत्याशी के रूप में तो भाजपा के टिकट पर पूर्व सांसद सुनील सोरेन चुनावी दंगल में आमने-सामने हैं. इस सीट पर इस बार का मुकाबला दिलचस्प हो सकता है. दरअसल, यहां से डॉक्टर लुईस मरांडी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ना चाह रही थीं. लेकिन पार्टी ने लुईस मरांडी के बजाय पूर्व सांसद सुनील सोरेन को मैदान में उतार दिया. इस फैसले से नाराज लुईस बगावती तेवर अपनाते हुए झामुमो का दामन थाम लिया. वैसे तो दुमका शहरी क्षेत्र में भाजपा की पकड़ मानी जाती है इसके बावजूद अपने राजनीतिक जीवन में लुईस मरांडी ने शहरी क्षेत्र के मतदाताओं के बीच अच्छी पकड़ बनाई थी. लुईस के बगावत के बाद शहरी क्षेत्र में काफी संख्या में लोगों ने भाजपा छोड़ झामुमो का दामन थाम लिया. इस स्थिति में शहरी क्षेत्र में भाजपा के वोट बैंक में झामुमो सेंधमारी कर सकती है. वैसे दुमका विधानसभा सीट पर जीत हार में मसलिया प्रखंड के मतदाताओं की भूमिका काफी अहम मानी जाती है.
शिकारीपाड़ा में पिता की विरासत संभालेंगे आलोक या खिलेगा कमल
शिकारीपाड़ा विधानसभा सीट कि बात करें तो इस सीट पर पिछले 7 टर्म से विधायक बनने वाले नलिन सोरेन के बेटे आलोक सोरेन को झामुमो ने प्रत्याशी बनाया है तो वहीं भाजपा ने एक बार फिर परितोष सोरेन को मैदान में उतारा है. पुत्र को चुनाव जीताने के लिए सांसद पिता नलीन सोरेन ने इस उम्र में भी जमकर पसीना बहाया है. अब यहां यह देखना दिलचस्प होगा कि पिता की विरासत को पुत्र आलोक संभाल पाते हैं या जनता एक बार परितोष सोरेन को मौका देती है. अब जो भी हो दुमका जिला के सभी चारों विधानसभा सीट पर कांटे की टक्कर कहीं जा सकती है.
रिपोर्ट: पंचम झा