दुमका(DUMKA):शारदीय नवरात्र का त्योहार चल रहा है. हर तरफ नारी शक्ति की आराधना हो रही है. आज हम एक ऐसी नारी शक्ति के बारे में बता रहे है जो धारा के विपरीत चलकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रही है.
शारदीय नवरात्र में मीनू के त्याग और बलिदान को सलाम
वैसे तो आज के समय मे हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिला कर चल रही है. इसके बाबजूद कुछ क्षेत्र ऐसे है, जिस पर पुरुषों का अधिकार समझा जाता है. उसी में से एक है यात्री वाहन का परिचालन. वैसे तो वर्षो पूर्व रांची में पिंक ऑटो की शुरआत हुई,जिसमें चालक से लेकर यात्री तक महिला को रखा गया, लेकिन आज हम बार कर रहे है रांची से सैकड़ों किलोमीटर दूर गोड्डा जिला के पहली ई रिक्शा चालक के रूप में पहचान बनाने वाली मीनू की.
पति के ठुकराने पर बेटे और मां के लिए बनी पालनहार
मीनू की दास्तां ने उसे मेहनत के बदौलत अर्थोपार्जन के लिए प्रेरित किया. गोड्डा शहर से 10 किलो मीटर दूर दलदली गांव की रहने वाली मीनू समाज की परवाह किये बगैर प्रतिदिन ई रिक्शा लेकर निकलती है, और दिन भर यात्रियों को मंजिल तक पहुंचती है. ऐसी कोई बाध्यता नहीं कि सिर्फ महिला यात्री को ही अपनी ई रिक्शा की सवारी कराती हों.
रोजी रोटी के लिए चलाया ई रिक्शा
वर्षो पूर्व पिता का साया सर से उठ गया. शादी हुई, एक बच्चे हुए तो पति ने भी तलाक लेकर दूसरी दुनिया बसा ली. मीनू के ऊपर अपनी बूढ़ी मां के साथ साथ अपने जिगर के टुकड़े की परवरिश की जिम्मेदारी आन पड़ी. कुछ दिनों तक जैसे तैसे काम चला. फिर मॉल में काम करने से लेकर कई तरह के काम किए, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारी और प्राइवेट नॉकरी के बीच तारतम्य नहीं बैठा तो ई रिक्शा चलाने की सोची. लेकिन ई रिक्शा खरीदने के लिए रुपया नहीं था. अंत में भाड़े का ई रिक्शा लेकर निकल पड़ी गोड्डा की सड़कों पर.
यात्रियों को उसके मंजिल तक पहुँचाती है मीनू
दिन भर यात्रियों को मंजिल तक पहुंचाकर कर इतना जरूर कमा लेती है कि 250 ई रिक्शा का किराया मालिक को चुकाने के बाद, इज्जत की रोटी मां और बेटे को खिला रही है. खासकर महिला यात्री इनके ई रिक्शा पर बैठने के बाद अपने आप को ज्यादा सहज महसूस करती है.सरकार से अगर ऐसी नारी शक्ति को मदद में एक ई रिक्शा मिल जाए तो निश्चितरूप से मीनू की आर्थिक उन्नति होगी और अपने बच्चे को बेहतर शिक्षा दे पाएगी. ऐसी नारी शक्ति को The News post का सलाम है.
रिपोर्ट- पंचम झा