टीएनपी डेस्क (Tnp desk):- जमीन घोटाले के आरोप में हेमंत सोरेन के इस्तीफे से पहले और बाद महागठबंधन की सरकार आगे किसके कमान में चलेगी, काफी रस्साकाशी, माथापच्ची और गुणा-गणित-भाग किया गया . जब हेमंत जेल गये तो चंपई की सरकार बनीं, लगा कि इस साल तक चलने वाली महागठबंधन सरकार को अब कोई खतरा नहीं है.
झारखंड में फिर सियासी संकट
जो खतरा कभी सरकार गठन से पहले ऑपरेशन लोटस का मंडरा रहा था , उसकी तो कहीं परछाई भी नहीं दिखई पड़ी औऱ सारे डर फितूर साबित हुए. दरअसल, जिस चंपई सरकार को बचाने के लिए कांग्रेस-जेएमएम के विधायक निजामों के शहर हैदराबाद में महफूज रहें . वही आज भाजपा से खतरा कम अपनों के गैर बन जाने का डर ज्यादा सता रहा है. झारखंड कांग्रेस की किचकिच फ्लोर टेस्ट पास होने के बाद अब तो सरेआम हो गयी. शपथ ग्रहण से एक घंटे पहले इनका चेहरा साफ-साफ दिख गया. कांग्रेस के विधायक आपस में ही मंत्री पद के लिए लड़ने लगे. कांग्रेस कोटे से चार मंत्री बनें, जिनमे आलमगीर आलम, बन्ना गुप्ता, बादल पत्रलेख और रामेश्वर उरांव, ये सभी वही विधायक थे, जो हेमंत सोरेन की सरकार में भी मंत्री थे. बाकी कांग्रेस विधायकों की इनसे नाराजगी यही है कि नये चेहरे को क्यों मौका नहीं दिया जा रहा है.? क्यों पार्टी के अंदर रहने के दौरान भी नाइंसाफी की जा रही है ?. इसी इंसाफ मांगने के लिए झारखंड कांग्रेस के दस विधायक दिल्ली के लिए उड़ान भरी. जहां कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिका अर्जुन खड़गे से मुलाकात करेंगे और अपनी समस्याए और बात रखेंगे.
बसंत की भी बात नहीं माने नाराज कांग्रेसी विधायक
झारखंड के इस सियासी संकट से उठे तूफान से चंपई सोरेन भी घबराए हुए हैं. बसंत सोरेन ने भी दिल्ली जाने से पहले नाराज कांग्रेसी विधायकों को काफी मनाया. लेकिन, उनकी बात भी बागी विधायक अनसुनी कर दी. सवाल यहां ये उठ रहा है कि क्या चंपई सोरेन की अगुवाई में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा ? . क्या महागठबंधन को हेमंत सोरेन की तरह नहीं चला पा रहे हैं ?. क्योंकि हेमंत के वक्त अगर अंदर-अंदर बगवात थी भी तो बाहर नहीं आती थी. यहां चर्चा के बाजार इसलिए भी गर्म हैं, क्योंकि महागठबंधन में एक साथ चार सालों तक सभी साथ रहें. लेकिन, अचानाक कांग्रेस के अंदर इस तरह का विद्रोह हो जाने की आशंका किसी को भी नहीं थी.
जेल में बंद हेमंत सोरेन की आई याद
अभी जमीन घोटाले की तोहमत झेल रहे हेमंत जेल में बंद है. अपनी बेगुनाही के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे हैं. लेकिन, बेशक आज उनकी मौजूदगी नहीं है. इसके बावजूद उनकी याद आ रही है, क्योंकि उनके रहते तो इस तरह की भगदड़ कभी मची ही नहीं, और न ही किसी तरह की बगावत औऱ विवाद कभी सतह पर आया.
याद कीजिए जब हेमंत सोरेन ने ईडी की पूछताछ से पहले विधायक दल की बैठक बुलायी थी. तब सभी ने हेमंत के साथ एकजुटता का प्रदर्शन किया था. हेमंत के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए जोश भरा था . मुश्किल वक्त में साथ देने के लिए वादे किए थे. लेकिन, उनकी गिरफ्तारी के बाद तो साऱी तस्वीर ही बदल गयी. चंपई मुख्यमंत्री तो बन गये . लेकिन, जो बात हेमंत में थी औऱ नेतृत्व की क्षमता उन्होंने चार साल में दिखायी . उसके मुकाबले हेमंत से उम्र और सियासत के तजुर्बे में आगे चंपई पिछड़ गये. क्योंकि ये संकट सिर्फ कांग्रेस का नहीं, बल्कि मौजूदा चंपई सरकार का भी है. अगर बात नहीं बनीं तो इस किचकिच में सरकार गिर जायेगी. आगामी बजट सत्र भी एक इम्तहान होने वाला है, क्योंकि इस दिन ही साफ होगा कि चंपई सरकार रहेगी या फिर अपनों के शिकवे के चलते गिर जायेगी.
झारखंड की बदकिस्मती
झारखंड की सियासत के इतिहास के पन्ने पलटे तो , कई किस्से , यादे और कहानियां जुड़ी हुई है. जो यह बताती है कि यहां सियासत किसी की भी हो ये कभी सरपट नहीं दौड़ी है. लड़खड़ाहट इसका मिजाज रहा है और इसकी तासिर काभी ठंडी हुई ही नहीं है. आज झारखंड ढाई दशक पूरा होने की दहलिज पर खड़ा है. लेकिन, इसकी विडंबना और बदकिस्मती देखिए, सियासी करवट, पलटी और अगर-मगर की डगर कभी पीछा ही नहीं छोड़ती है. क्योंकि राजनीतिक अस्थरिता का आलम हमेशा चस्पा ही रहा.
अब एक नया संकट कोई और ने नहीं खड़ा किया , बल्कि चंपई सरकार में शामिल सहयोगी की ख्वाहिशे ही इसमे रोड़ा अटका रही है. देखना है कि आखिर जो सियासी तूफान उठा है, वह थमता है कि नहीं
. रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह