धनबाद(DHANBAD): झारखंड प्रदेश भाजपा चुनाव प्रभारी लक्ष्मीकांत वाजपेई ने लोकसभा चुनाव के बीच दावा किया है कि 4 जून के बाद झारखंड सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो जाएगी. कुर्सी की लड़ाई सामने होगी. हेमंत सोरेन अभी जेल में है. मुख्यमंत्री चंपई सोरेन अभी सत्ता संभाल रहे हैं, जबकि कल्पना सोरेन सत्ता के रास्ते में है. इस संघर्ष में चंपई सरकार गिर जाएगी और एनडीए सरकार का रास्ता प्रशस्त होगा. लक्ष्मीकांत वाजपेई के इस बयान पर झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है. लेकिन लोकसभा चुनाव के बीच इस तरह के बयान के सियासी माने -मतलब तो निकाले ही जाएंगे. क्या झारखंड के लिए फिर विधानसभा चुनाव के पहले कोई राजनीतिक "गेम प्लान" तैयार किया गया है. और अगर तैयार किया गया है तो इससे किसको कितने फायदे हो सकते है.
विधानसभा का चुनाव नवंबर या दिसंबर 2024 में हो सकता है
झारखंड विधानसभा का चुनाव नवंबर या दिसंबर 2024 में हो सकता है. विधानसभा का कार्यकाल 5 जनवरी 2025 को समाप्त होगा. पिछला चुनाव सितंबर 2019 में हुआ था. उस समय झारखंड में भाजपा की सरकार थी. लेकिन गठबंधन ने बहुमत पाया और भाजपा की सरकार अपदस्त हो गई. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 30 सीटें जीती, कांग्रेस को 16 सीटें मिली. राजद को एक मिली, भाजपा को 25 और जेबीएम को तीन सीटें मिली थी. जेवीएम का नेतृत्व बाबूलाल मरांडी कर रहे थे, जो फिलहाल भाजपा में आ गए हैं और भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष उन्हें बनाया गया है. उनके विधायक भी इधर -उधर हो लिए.
लक्ष्मीकांत वाजपेई के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया आई है
हालांकि लक्ष्मीकांत वाजपेई के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया आई है. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने दावा किया है कि लोकसभा चुनाव का परिणाम इंडिया गठबंधन के पक्ष में होगा. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का सफाया हो जाएगा और 2024 के विधानसभा चुनाव में भी गठबंधन की सरकार बनेगी. भाजपा पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का आरोप है कि संथाल परगना में समाज और परिवार को बांटने का काम किया है. लक्ष्मीकांत वाजपेई के बयान पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने कहा है कि लोकसभा चुनाव के पहले ही भाजपा ने कई शिगूफे छोडे , पर कोई काम नहीं आया. हेमंत सोरेन की अनुपस्थिति में चंपई सोरेन को गठबंधन का नेता चुना गया. वह अच्छी तरह सरकार चला रहे है. उन्होंने कहा कि भाजपा हताशा और निराशा की राजनीति कर रही है.एक उच्च पदस्थ सूत्र के अनुसार अगर 4 जून को लोकसभा का चुनाव परिणाम आने के बाद अगर कोई "गेम प्लान" तैयार है, तो इस इस पर गठबंधन के नेताओं की नजर बनी रहेगी. वैसे झारखंड में लोकसभा चुनाव विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर भी लड़ा गया है.
भाजपा ने दुमका को केंद्र में रखकर राजनीति की है
भाजपा ने दुमका को केंद्र में रखकर राजनीति की है. शिबू सोरेन की जमीन पर उनकी बड़ी बहू को उम्मीदवार बनाकर एक प्रयोग किया है. भाजपा यह जानती है कि संथाल में झारखंड मुक्ति मोर्चा को कमजोर किए बिना प्रदेश में सरकार वह नहीं बना सकती है. इसलिए भी विधानसभा को ध्यान में रखकर लोकसभा का चुनाव लड़ा गया है. तो झारखंड मुक्ति मोर्चा भी इसमें पीछे नहीं है. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अपने विधायकों पर अधिक भरोसा किया है और यह बताने की कोशिश की है कि वह आयातित उम्मीदवारों पर भरोसा के बजाय पार्टी के कार्यकर्ता पर ज्यादा भरोसा करता है. ऐसा कर वह एक सियासी संदेश देने की भी कोशिश की है. आज पूरे देश के साथ झारखंड में भी अंतिम चरण का चुनाव हो रहा है. 4 जून को परिणाम घोषित होंगे, तो क्या उसके बाद झारखंड में एक नए ढंग की राजनीति शुरू होगी?
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो