दुमका(DUMKA): झारखंड की उपराजधानी दुमका में चार दिवसीय लोक आस्था का महापर्व छठ की छटा काफी निराली होती है. जिला मुख्यालय से लेकर सुदूरवर्ती गांव तक लोग आस्था और विश्वास के साथ छठ महापर्व मना रहे हैं. इन सबके बीच कुछ छठ घाट ऐसे भी हैं जहां काफी संख्या में व्रती और श्रद्धालु पहुंचते हैं. अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देना हो या उदीयमान सूर्य को, समय से पहले व्रती और श्रद्धालु सूप डाला लेकर छठ घाट पहुंचते हैं. घाट किनारे सूप डाला को रखा जाता है. सुप डाला रखते समय अफरा-तफरी ना हो इसके लिए लोग एक-दो दिन पूर्व ही घाट पहुंचकर अपना-अपना स्थान आरक्षित करते हैं.
कपड़ा बिछाकर स्थान आरक्षित कर रहें लोग
जिले का बासुकीनाथ एक ऐसा धार्मिक स्थल है जहां शिव गंगा तट पर ना केवल स्थानीय लोग बल्कि निकटवर्ती बिहार से भी लोग आते हैं. दो-तीन दिन पूर्व ही लोग अपनी-अपनी सुविधा अनुसार निर्धारित स्थल पर कपड़ा बिछाकर स्थान आरक्षित कर लेते हैं, ताकि बाद में आने वाले लोग यह समझ सके कि यह स्थल किसी के द्वारा सुरक्षित रखा गया है और बगैर अफरा-तफरी के लोग अपने निर्धारित स्थल पर सूप डाला रखकर छठ पर्व संपन्न करते हैं.
पूजा समिति द्वारा स्थान आरक्षित करने पर रोक
दुमका शहर के बड़ा बांध तालाब किनारे लोग घाट पर अपना नाम पता लिखकर सुरक्षित कर देते हैं. यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है. वहीं, कुछ छठ घाट ऐसे भी हैं जहां पूजा समिति द्वारा स्थान आरक्षित करने से रोक दिया जाता है. कमेटी का मानना है कि पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर छठ पर्व संपन्न होनी चाहिए.
अफरा-तफरी का माहौल हो जाता है
जिस तरह संविधान प्रदत्त आरक्षण के मुद्दे पर बहस होती है उस तरह छठ घाटों का आरक्षण कोई बहस का मुद्दा नहीं लेकिन इतना सत्य है कि पहले से घाट सुरक्षित रखने के कारण घाट पर अफरा-तफरी का माहौल नहीं बनता है और लोग भक्ति पूर्ण माहौल में छठ महापर्व संपन्न करते है.
रिपोर्ट: पंचम झा दुमका