धनबाद(DHANBAD): स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावकों का संकट कम नहीं हो रहा. एक तो स्कूलों के नखरे सहते सहते अभिभावक परेशान हैं, दूसरी ओर स्कूल प्रबंधन और स्कूल ड्रेस की दुकानों के बीच कथित सांठगांठ का भी खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है. फिलहाल स्थिति यह है कि पेट काटकर भी बच्चों की जरूरत को पूरा करने में लगे हुए हैं. कोरोना में स्कूल बंद होने के बाद जब स्कूल खुले तो बच्चों के स्कूल ड्रेस छोटे पड़ गए, उसके लिए उन्हें खरीदारी करनी पड़ी. कई अभिभावकों का यह भी रोना है कि कपड़े की क्वालिटी खराब होती है लेकिन दाम किसी ब्रांडेड से कम नहीं लिए जाते.
गर्म कपड़ों ने बढ़ाई अभिभावकों की और मुसीबत
खैर, अभी स्कूल ड्रेस की समस्या खत्म हुई ही थी कि जाड़े के सीजन के लिए अब गर्म कपड़े की जरूरत पड़ गई है. पहले के गर्म कपड़े छोटे हो गए हैं. अब नए कपड़े खरीदने पड़ रहे हैं. डिमांड इतना अधिक है कि गर्म कपड़े स्कूल ड्रेस के मुताबिक मिल भी नहीं रहे हैं. दुकानदार समय मांग रहे हैं. कह रहे हैं कि इंतजार करिए, माल तैयार होगा तो मिल जाएगा. कई स्कूलों के स्वेटर और ब्लेजर आउट ऑफ स्टॉक हैं. कई स्कूलों ने तो सीनियर क्लास के बच्चों का ब्लेजर भी बदल दिया है. कीमत भी मनमाने ढंग से ली जा रही है. पहले की तुलना में मूल्य बढ़ा दिया गया है. दुकानदार भी जानते हैं कि अभिभावक झक मार कर ड्रेस खरीदेंगे, इसलिए वह मनमानी करते हैं. मनमानी तो स्कूल के किताब और कॉपियों में भी की जाती है. चिन्हित दुकानों में ही स्कूलों के किताब, कॉपी और ड्रेस मिलते हैं. सवाल उठता है कि आखिर क्यों चिन्हित दुकानों में ही बच्चों से जुड़ी सामाग्री मिलती है. ड्रेस बदलने की स्कूलों में तो एक परिपाटी चल गई है. कोर्स भी बदल दिए जाते हैं. नतीजा होता है कि घर में अगर दो तीन बच्चे हैं तो एक के किताब कॉपी दूसरे के काम नहीं आते.
रिपोर्ट: सत्यभूषण सिंह, धनबाद