रांची(RANCHI): सरना धर्म कोड की मांग करने के लिए में झारखंड, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, बंगाल, आसाम के साथ-साथ भूटान, नेपाल और बंग्लादेश से राजधानी रांची में जुटे लाखों सरनाधर्मियों ने कुड़मी को आदिवासी घोषित करने के किसी भी प्रयास का विरोध करने का निर्णय लिया है.
कुड़मियों का रहन-सहन हमसे भिन्न, वह हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करते हैं
कुड़मी जाति को आदिवासी घोषित करने की मांग का विरोध करते हुए सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा ने कहा है कि कुड़मियों की भाषा, रहन-सहन, धार्मिक कर्मकांड कुछ भी हमसे मेल नहीं खाता. हम सरना धर्मी है, प्रकृति पूजक है, जबकि वे अपने आप को हिन्दू मानते हैं, हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करते हैं. उनका मरणी जीनी, शादी-विवाह और दूसरे सभी रश्म हिन्दूओं के समान है, फिर वे आदिवासी कैसे हुए? आदिवासी घोषित करने की मांग सिर्फ आदिवासियों की हकमारी की साजिश है.
आदिवासी घोषित करने की मांग कर रहे हैं कुड़मी
यहां बता दें कि झारखंड का कुड़मी समुदाय वर्षों से अपने को आदिवासी घोषित करने की मांग करता रहा है. उनका दावा है कि अंग्रेजों के शासन काल में उनकी गिनती आदिवासियों में की जाती थी, लेकिन आजादी के बाद उन्हे गैर आदिवासी घोषित कर दिया गया.
अंग्रेज सरकार ने कुड़मी को आदिवासी घोषित किया था
दावा किया जाता है कि 1865 में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की शर्तों के तहत कुड़मी को ब्रिटिश सरकार के द्वारा जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था. क्योंकि कुड़मियों के पास उत्तराधिकार के प्रथागत नियम हैं, बाद में 1913 इन्हे आदिम जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था.
महर्षि कूर्म की संतान हैं कुड़मी
लेकिन दूसरी दलील यह भी है कि कुड़मियों का वर्ण क्षत्रिय है और ये लोग महर्षि कूर्म की संतान है. हिंदू धर्म के अनुसार, कुर्मी-कुड़मी हिंदुओं की एक जाति है. यह भारत की एक प्राचीन जाति है, कृषि इनका मुख्य पेशा है. सिंगरौर, उमराव, चंद्राकर, गंगवार, कम्मा, कान्बी, कापू, कटियार, कुलंबी, कुलवाड़ी, कुनबी, कुटुम्बी, नायडू, पटेल, रेड्डी, सचान, वर्मा और वोक्कालिगा सभी कुर्मी जाति के ही हैं, ये लोग अपने आप को शिवाजी का वंशज भी मानते हैं.