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मई दिवस के बहाने : झारखंड की राजनीति को चमकाने वाले कोयला मजदूर रोयें कि माथा पीटे, उनकी कौन सुनेगा !

मई दिवस के बहाने : झारखंड की राजनीति को चमकाने वाले कोयला मजदूर रोयें कि माथा पीटे, उनकी कौन सुनेगा !

धनबाद (DHANBAD) : झारखंड की राजनीति में धनबाद की मजबूत पकड़ है और धनबाद की राजनीति कोयला मजदूर और मजदूर संगठनों के इर्द-गिर्द घूमती है. मजदूर संगठनों के भरोसे ही धनबाद कोयलांचल की राजनीति चमकती है. कोयलांचल का हर नेता किसी न किसी रूप से मजदूर संगठनों से जुड़ा होता है. यह वही मजदूर हैं, जिनकी मेहनत की बदौलत कोयलांचल अभी भी सबका ध्यान अपनी ओर खींचता है. अगर कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद को याद किया जाए, तो परिस्थितिया काफी बदली है. मजदूर संगठन भी बने और बिगड़े है. उनकी ताकत कम हुई है. कांग्रेस से जुड़े इंटक की ताकत भी कम हुई है तो भाजपा से जुड़े भारतीय मजदूर संघ की भी ताकत घटी है. बम पार्टियों  की यूनियन भी ताकतवर नहीं रह गई है. 

कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद मजदूरों की संख्या बेतहाशा घटी 
 
कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद मजदूरों की संख्या बेतहाशा घटी है. अगर भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की बात कर ली जाए, तो रेगुलर मजदूरों की संख्या लगातार घट रही है. दूसरी ओर ठेका और असंगठित मजदूरों की फौज खड़ी हो रही है. कोयला खनन में निजी कंपनियों की ताबड़तोड़ बढ़ती हिस्सेदारी से हर दिन ठेका मजदूरों की संख्या बढ़ रही है. यह आंकड़ा आपको चौंका सकता है कि 12वें कोयला वेतन समझौता तक कोल इंडिया और अनुषंगी  कंपनियों में  विभागीय कर्मियों की संख्या घटकर 2 लाख से भी कम हो जाएगी. वहीं ठेका मजदूरों की संख्या में भारी बढ़ोतरी होगी. ठेका मजदूरों के लिए कोई वेतन समझौता नहीं होता. यह आउटसोर्सिंग कंपनियों पर निर्भर करता है.  फिलहाल कोल इंडिया और उसकी अनुषंगी  पनियों में 2,20,000 रेगुलर  मजदूर है.  

ठेका मजदूरों की संख्या तीन लाख से भी अधिक है 

वहीं अनाधिकृत आंकड़े के अनुसार ठेका मजदूरों की संख्या 3 लाख से भी अधिक है.  इनमें से कितने सामाजिक सुरक्षा के दायरे में हैं, इसका आंकड़ा तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन उनकी  माली हालत बहुत कमजोर है. कोयला कंपनियों में आउटसोर्सिंग कंपनियों की एंट्री 2004 से शुरू हुई. इसके बाद से तो ठेका मजदूर  रखे जाने लगे. अब तो कमर्शियल खनन के भी नए-नए तरीके दिख रहे हैं, जिससे  ठेका मजदूरों की संख्या और बढ़ेगी. चौंकाने वाली बात यह भी है कि आउटसोर्सिंग कंपनियों में आधे से अधिक ठेका मजदूर ऑफ रोल है. कोयला वेतन समझौता में अभी तक ठेका मजदूरों को शामिल नहीं किया गया है. अब तो यह कहा जाने लगा है कि कोयला उद्योग का भविष्य ठेका मजदूर है. लगभग 80% कोयले का उत्पादन फिलहाल ठेका मजदूरों के भरोसे हो रहा है.

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो  

Published at:01 May 2025 08:39 AM (IST)
Tags:DhanbadMay DayKoyalaMajdurHalat
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