धनबाद(DHANBAD): कोल पेंशनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रामानुज प्रसाद ने संसद में कोयला मंत्री के एक प्रश्न के उत्तर में दिए बयान पर कहा कि सीएमपी स्कीम' 1998 जब लागू हुआ था, तो श्रम शक्ति 8 लाख से अधिक था. अब घटकर 2 लाख 50 हजार के आस पास है. कोल इंडिया में मजदूरों की संख्या कम हो रही है. खनन का पूरा काम आउट सोर्सिंग से हो रहा है. आउट सोर्सिंग वालों का न तो सही आंकड़ा बताया जाता है और न तो उनसे सीएमपीएफ का अंशदान काटा जाता है. इसी कारण से जमा राशि और वितरित राशि में काफी अंतर है.
केंद्र सरकार जवाबदेही से मुक्त नहीं हो सकती
केंद्र सरकार ऐसा उत्तर देकर अपनी जवाबदेही से मुक्त नहीं हो सकती है. कोल माइंस प्रोविडेंट फंड एंड मिसलेनियस एक्ट 1948 के धारा 3 E और उप धारा 2b में केंद्र सरकार को शक्ति दी गई है कि पेंशन फंड में आवश्यक राशि संसद से अनुमोदित कराकर कोष की कमी को दूर किया जा सकता है. उसी अधिनियम के धारा 3E और उप धारा 2d में अधिक्कृत किया गया है कि पेंशन फंड की जरूरत पूरा करने के लिए लेवी लगाया जा सकता है. वस्तुत इन सब की कोई जरूरत नहीं है बल्कि मंत्रालय अथवा भारत सरकार चाहे तो कोल इंडिया के मुनाफा राशि से पेंशन में वृद्धि की जाती है. पुराने पेंशनर्स को प्राप्त राशि और वर्तमान पेंशनर्स में आसमान और धरती का अंतर है, इसे दूर करना जरुरी है. एक और न्यूनतम पेंशन 49 रूपए है, जबकि अधिकतम 91 हजार 200 ही. इतना अंतर देश के किसी प्रतिष्ठान में नही है.
रिपोर्ट: सत्यभूषण सिंह, धनबाद