रांची(RANCHI): लोबिन हेम्ब्रम के बाद विशनपुर से झामुमो विधायक चमरा लिंडा ने हेमंत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है, प्रभात तारा मैदान में आदिवासी अधिकार महारैली को संबोधित करते हुए विधायक चमरा लिंडा ने राज्य की हेमंत सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि तीन वर्षो में इस सरकार ने आदिवासी-मूलवासियों के लिए कुछ नहीं किया. उनके हितों के संरक्षण के लिए कोई कारगार कदम नहीं उठाया.
आदिवासी की दुर्दशा के लिए केन्द्र के समान ही हेमंत सरकार भी दोषी
हालांकि चमरा लिंडा के निशाने पर केन्द्र की भाजपा सरकार भी रही, केन्द्र और हेमंत सरकार को समान रुप से कोसते हुए चमरा लिंडा ने कहा कि दोनों ही सरकार आदिवासी को उसके संवैधानिक अधिकार से महरुम करना चाहती है, दोनों की कोशिश इस बात की रहती है कि आदिवासियों को उसके संवैधानिक अधिकारों की जानकारी नहीं हो, क्योंकि यह संविधान ही आदिवासी-मूलवासियों का सुरक्षा कवच है.
पांचवीं अनुसूची के प्रावधानों को लागू किये बगैर आदिवासियों का विकास नहीं
चमरा लिंडा ने कहा कि यदि राज्य के 13 जिलों में पांचवी अनुसूची को लागू कर दिया गया को हम आदिवासियों को किसी से भीख मांगने की जरुरत ही नहीं रहती, लेकिन एक साजिश के तहत पांचवी अनुसूची के प्रावधानों को लागू नहीं किया जा रहा है. जिन लोगों को आदिवासी समाज के काम करना चाहिए था, उनके द्वारा हमें सुअर-बकरी पालन करने की सलाह दी जा रही है.
गैर आदिवासियों को आदिवासी घोषित करने की रची जा रही है साजिश
उपर से दूसरी गैर आदिवासी जातियों को आदिवासी घोषित करने की साजिश रची जा रही है, इसको लेकर आन्दोलन चलाये जा रहे हैं. चमरा लिंडा ने यह सवाल भी खड़ा किया कि 22 हजार करोड़ का ट्राइबल सब प्लान का क्या होता है, यह राशि किसके विकास में खर्च की जा रही है, यह वही राशि है जिसको चारा घोटाले में उड़ाया गया था, इसी राशि से राज्य की रघुवर सरकार हाथी उड़ा रही थी, लेकिन अब यह राशि कहां जा रही है, सवाल बना हुआ है. सवाल यह है कि लोबिन हेम्ब्रम के बाद अब चमरा लिंडा का यह खुला बगावत किस बात का संदेश है, क्या आदिवासी विधायकों में राज्य की हेमंत सरकार के खिलाफ नाराजगी पनप रही है, या ये विधायक अपनी हेमंत सरकार में अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं.
एक बात तो साफ है कि लोबिन हेम्ब्रम की तरह की चमरा लिंडा आदिवासी समाज के हक हुकूक की बात कर आदिवासी समाज को गोलबंद करने की रणनीति में है, बहुत हद तक दोनों की पीड़ा मंत्रीपद को लेकर भी है.
आदिवासी विधायकों में बढ़ता आक्रोश हेमंत सरकार के खतरे की घंटी हो सकती है
लेकिन एक बात साफ है कि ये आदिवासी विधायक अपनी नाराजगी का इजहार कर सीएम हेमंत को एक मैसेज देने की कोशिश कर रहे हैं, यदि इन विधायकों को मंत्री पद या दूसरे स्थानों पर समायोजित नहीं किया गया तो इनमें बढ़ता आक्रोश हेमंत सरकार के लिए खतरे की घंटी हो सकती है.
रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार