रांची (RANCHI): वैसे तो हिन्दू कैलेंडर में साल के बारहों महीने कोई न कोई व्रत त्योहार आता ही रहता है पर हर महीने में दो बार पड़ने वाले एकादशी व्रत सदा ही महत्वपूर्ण मानी जाती है. हर एकादशी की कोई न कोई कथा कोई न कोई माहात्म्य होता है. जिससे भक्तों को पुण्यफल की प्राप्ति होती है. आज हम बात करेंगे 4 नवंबर को पड़नेवाली मोक्षदा एकादशी के बारे में.
मोक्षदा एकादशी व्रत का माहात्म्य
मोक्षदा एकादशी व्रत से मिलता है बैकुंठ में स्थान. मोक्षदा एकादशी के दिन व्यक्ति को कुछ चीजों का ध्यान रखना बहुत जरुरी होता है और कुछ विशेष नियमों का भी पालन करना पड़ता है. हर साल मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी का व्रत रखा जाता है, जो कि इस बार तीन व चार दिसंबर के दिन पड़ रही है. मान्यताओं के अनुसार इस दिन व्रत रखने से विष्णु पूजन करने से समस्त दुखों का नाश होता है और पापों से छुटकारा मिल सकता है. साथ ही विष्णु भक्त के रुप में वैकुंठ में जगह भी प्राप्त होती है. लेकिन आपको बता दें कि मोक्षदा एकादशी के दिन व्यक्ति को कुछ चीजों का ध्यान रखना बहुत जरुरी होता है और कुछ विशेष नियमों का भी पालन करना पड़ता है.
इन बातों का रखें ध्यान
आइए जानते हैं इस दिन क्या करें और क्या ना करें. जिससे आपको व्रत का पूरा फल भी मिल सके और भगवान विष्णु का आशीर्वाद भी प्राप्त हो सके. मोक्षदा एकादशी के दिन उन चीजों को खाने की मनाही है, जिनसे जीव-जंतु की हत्या की गई है. अर्थात इस दिन मांसाहार वर्जित है. इसके अलावा आप इस दिन कंद वाली चीजें जैसे फल खा सकते हैं. लेकिन इस दिन प्याज, लहसुन, मसूर की दाल, चावल और बैंगन सहित तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए.
कैसे करें उपासना
पद्मपुराण में भगवान श्रीकृष्ण धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं कि इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप आदि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए. मोक्षदा एकादशी बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली है. इस दिन उपवास रखकर श्री हरि के नाम का संकीर्तन, भक्तिगीत, नृत्य करते हुए रात्रि में जागरण करें. मोक्षदा एकादशी के दिन व्रत रखना चाहिए और बुराइयों से बचना है. भगवान विष्णु की पूजा करें. भगवान विष्णु की छवि को याद करते हुए उनके मंत्रों का जाप करें और कथा सुनें. मोक्षदा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें. इसके बाद भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें और उन्हें तुलसी दल व फूल अर्पित करें. अगर संभव हो तो इस दिन व्रत रखें और भगवान की आरती करें. इसके बाद भगवान को भोग लगाएं, लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का ही भोग लगाएं. इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें.
क्या है मोक्षदा एकादशी की कथा
भगवान श्री कृष्ण जी ने स्वयं युधिष्ठिर को इस व्रत कथा के बारे में बताया था. बताई गई कथा के अनुसार प्राचीन काल में वैखानक नाम का एक राजा गोकुल नाम के नगर पर राज करता था. यह राजा अपनी प्रजा का पुत्र की भी भांति ध्यान रखता था. राजा के राज्य में रहने वाले कई ब्राह्मणों को चारों वेदों का ज्ञान था. राजा को रात्रि में ऐसा स्वप्न आया जिससे कि वह चित्त भयभीत हो उठा. उसने अपने उस स्वप्न में अपने पूर्वजों को नरक में दुख भोगते हुए पाया. कष्टों को सहन करते समय राजा के पूर्वज उसे नरक से मुक्त कराने की विनती कर रहे थे. ऐसा दृश्य देखकर राजा बहुत दुखी हुए. राजा ने एक प्रसिद्ध विद्वान के पास जाकर अपना स्वप्न विस्तार से बताया और इसके उपाय के बारे में पूछा. राजा ने कहा वह अपने पितरों की शांति के लिए कोई भी तप, दान, पूजा और व्रत आदि कर सकते हैं. कृपा करके इसका जो भी उपाय हो उसे मुझे बताएं. तब ब्राह्मणों ने राजा को पर्वत ऋषि के आश्रम में जाने का सुझाव देते हुए कहा कि वह भूत और भविष्य के ज्ञाता है वह अवश्य की आपकी समस्या का समाधान कर देंगे. ऐसा सुनकर राजा शीघ्र की उस आश्रम के लिए निकल गया. तब उस मुनि ने राजा को बताया कि तुम्हारे भूतकाल में किए गए पाप के कारण तुम्हारे पूर्वज नरक में दुख भोग रहे हैं. यदि तुम अपने परिवार सहित मार्गशीर्ष में आने वाले एकादशी के व्रत को करोगे तो उससे प्राप्त पुण्य से तुम्हारे पितर नरक से मुक्त हो जाएंगे. राजा ने ऋषि को दंडवत प्रणाम किया और उनके द्वारा बताए गए मोक्षदा एकादशी के व्रत को किया. वायपेय यज्ञ के समान फल देने वाले इस व्रत को करने से राजा के पूर्वजों को स्वर्ग प्राप्त हुआ. इस व्रत को करने से सभी कष्टों का नाश हो जाता है. मोक्ष की प्राप्ति के लिए इस व्रत को सबसे उत्तम माना गया है.
मोक्षदा एकादशी को ही अर्जुन को श्री कृष्ण ने दिया था गीता ज्ञान
मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के दिन ही कुरुक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया था. अत: यह तिथि गीता जयंती के नाम से विख्यात हो गई. इस दिन से गीता-पाठ का अनुष्ठान प्रारंभ करें तथा प्रतिदिन थोड़ी देर गीता अवश्य पढें. गीतारूपी सूर्य के प्रकाश से अज्ञान रूपी अंधकार नष्ट हो जाएगा.
मोह का नाश करती है मोक्षदा एकादशी
शास्त्रों में एकादशी के दिन को बहुत पवित्र बताया गया है. मोक्षदा एकादशी को मोह का नाश करने वाला उत्सव माना जाता है. जिस प्रकार अन्य एकादशियों के दिन भगवान श्री विष्णु का पूजन किया जाता है, उसी प्रकार मोक्षदा एकादशी भी श्री हरि को समर्पित होती है. माना जाता है इस दिन रखे गए व्रत से मनुष्य समस्त पापों से मुक्त हो जाता है. मोक्ष को प्राप्त करने के लिए इस व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है. इस व्रत को करने से अनंत गुना फल मिलता है. इसलिए इसे पूरे विधि विधान से करना चाहिए और पूरे अनुष्ठानों का पालन करना चाहिए. भारत के कुछ राज्यों में इस एकादशी से संबंधित परंपराएं कुछ अलग होती हैं. इस दिन भगवान श्री विष्णु के साथ साथ उनके आठवें अवतार श्री कृष्ण जी की अलग से पूजा की जाती है.
मोक्षदा एकादशी कब है
03 दिसंबर शनिवार की प्रातः 05 बजकर 40 मिनट पर एकादशी की तिथि का शुभारंभ हो जाएगा और रविवार 04 दिसंबर को प्रातः 05 बजकर 34 मिनट पर इस एकादशी तिथि का समापन हो जाएगा. मोक्षदा एकादशी का पारण मुहूर्त 04 दिसंबर रविवार की सुबह 01:15 बजे से 03:20 बजे तक रहेगा.