रांची (TNP Desk) : चतरा जिला का इतिहास काफी पुराना है. इसे उत्तरी छोटानागपुर का प्रवेश द्वार कहा जाता है. यह जिला जंगलों से घिरा और हरियाली से भरपूर है. चतरा में खनिज के साथ कोयला भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इस जिले की स्थापना 29 मई 1991 ई. में हुई थी. लेकिन इस हरी-भरी जिला को नजर लग गई. अब ये वर्तमान में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शामिल हो गया है. यहां उग्रवादी संगठन काफी सक्रिय हैं. बीच-बीच में पुलिस को चुनौतियां देने में नक्सली नहीं चुकते हैं. इससे पहले यह जिला हजारीबाग का उपभाग हुआ करता था.
चतरा छोड़ सभी सीटें आरक्षित
इस लोकसभा क्षेत्र में चतरा, लातेहर जिले का पूरा हिस्सा और पलामू जिले का कुछ हिस्सा आता है. इस लोकसभा सीट के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें आती हैं. इसमें पांकी, लातेहर, सिमरिया, मनिका और चतरा शामिल है. चतरा को छोड़कर सभी सीटें आरक्षित है. वर्तमान में सिमरिया और पांकी सीट पर भाजपा का कब्जा है, वहीं चतरा पर राजद, मनिका पर कांग्रेस और लातेहर से झामुमो के विधायक हैं.
आदिवासी और खोटा समुदाय के लोग ज्यादा
चतरा लोकसभा सीट पर अनुसूचित जाति और जनजाति का दबदबा है. इसके अलावा यहां पिछड़ी जातियां भी हैं. चतरा लोकसभा क्षेत्र में आदिवासी और खोटा समुदाय के लोगों की संख्या ज्यादा है. चतरा लोकसभा सीट एक ऐसा संसदीय क्षेत्र है, जहां से अब तक कोई भी स्थानीय नेता संसद नहीं पहुंचा है. यहां के लोगों ने हमेशा ही बाहरी नेता पर अपना भरोसा जताया है.
1957 में पहली बार हुआ चुनाव
1957 के लोकसभा चुनाव के समय यह सीट अस्तित्व में आई. इस सीट पर 1957 में पहली बार आम चुनाव हुआ और रामगढ़ की महारानी विजया रानी ने जनता पार्टी की टिकट पर पहली बार जीत हासिल कर संसद पहुंची थी. इसके बाद उन्होंने 1962 और 1967 में निर्दलीय चुनाव जीतकर सांसद बनी थीं. चतरा से कांग्रेस का खाता पहली बार 1971 में खुला. कांग्रेस नेता शंकर दयाल सिंह को जीत मिली. वहीं आपातकाल के बाद 1977 में जनता पार्टी से सुखदेव प्रसाद वर्मा जीते. 1980 में फिर से कांग्रेस ने वापसी की और रणजीत सिंह विजयी हुए. 1984 में भी कांग्रेस के उम्मीदवार योगेश्वर प्रसाद योगेश जीते. वहीं 1989 और 1991 में जनता दल के उपेंद्र नाथ वर्मा को जीत मिली थी.
1996 में पहली बार भाजपा ने दर्ज की जीत
1996 में पहली बार भाजपा का चतरा से खाता खुला. बीजेपी की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे धीरेंद्र अग्रवाल ने जीत दर्ज कर पार्टी का खाता खोला. इसके बाद 1999 में भाजपा से ही नागमणि कुशवाहा जीते. 2004 के चुनाव में धीरेंद्र अग्रवाल बीजेपी से नाराज होकर राजद में शामिल हो गए और जीत दर्ज की. वहीं 2009 में इंदर सिंह नामधारी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़े और फतह हासिल की. 2014 और 2019 में लगातार सुनील कुमार सिंह यहां से सांसद चुने गए. हालांकि सुनील सिंह की जीत मोदी लहर हुआ. क्योंकि उनका अपना कोई जनाधार इस क्षेत्र में नहीं है. अब देखना होगा कि इस सीट से बीजेपी जीत की हैट्रिक लगा पता है कि नहीं. क्योंकि चतरा संसदीय सीट हमेशा प्रतिष्ठा की रही है.