धनबाद(DHANBAD): धनबाद लोकसभा के मतदाताओं का अपना एक वसूल होता है. उस वसूल से वह समझौता नहीं करते. इसके उदाहरण भी है. वसूल के खिलाफ काम करने वाले पूर्व सांसदों को भी मतदाता धूल चटा देते है. यह अलग बात है कि चुनाव का माहौल शुरू हो गया है, धीरे-धीरे चुनाव की तपिश बढ़ रही है. सभी अपने-अपने ढंग से मतदाताओं को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे है. दल बदल का सिलसिला भी तेज है. यह दल बदल राष्ट्रीय स्तर पर भी हो रहा है और प्रदेश के स्तर पर भी. झारखंड में भी दल बदल करने के कई उदाहरण सामने है. दल बदल करने वालों को राष्ट्रीय पार्टियां टिकट भी दे रही है. इंडिया गठबंधन ने हजारीबाग से जे पी पटेल को उम्मीदवार बनाया है तो भाजपा ने सीता सोरेन को दुमका से और गीता कोड़ा को सिंघभूम से उम्मीदवार बनाया है.
दल ,बदल से नहीं प्रभावित होते हैं मतदात
गीता कोड़ा कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आई है. तो सीता सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा छोड़कर भाजपा में गई है. जेपी भाई पटेल भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा है. इन दल- बदलने वालों में कौन जीतेगा ,कौन हारेगा लेकिन धनबाद का इतिहास कुछ अलग है. 2019 के चुनाव की बात की जाए तो बिहार के मधुबनी से भाजपा के सांसद रहते हुए कृति आज़ाद पाला बदलकर कांग्रेस का पहले दामन थामा, फिर धनबाद से कांग्रेस के प्रत्याशी बने. लेकिन धनबाद में आकर उनको कड़ी हार का सामना करना पड़ा. भाजपा प्रत्याशी पशुपतिनाथ सिंह ने कीर्ति आजाद को 4,86,000 से भी अधिक मतों से हरा दिया. झारखंड में सबसे अधिक वोट से जीतने वाले सांसद बनकर पशुपतिनाथ सिंह दिल्ली गए.
2024 में पशुपति नाथ सिंह नहीं है उम्मीदवार
यह अलग बात है कि 2024 के चुनाव में पशुपति नाथ सिंह का टिकट काट दिया गया है. बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो भाजपा के प्रत्याशी है. एक और उदाहरण सामने है, जो धनबाद लोकसभा के वोटरों के मिजाज को बताता है. 2004 में धनबाद ददई दुबे पहली बार सांसद बने लेकिन 2009 में जब कांग्रेस पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो तृणमूल कांग्रेस में चले गए और धनबाद लोकसभा से चुनाव लड़े। लेकिन उन्हें बुरी तरह पराजय का सामना करना पड़ा. उन्हें मात्र 29937 वोट मिले और उनकी जमानत तक जब्त हो गई. जिस धनबाद के वोटरों ने 2004 में उन्हें सांसद बनाया था, उसी धनबाद में उनकी जमानत तक जब्त हो गई. इधर, भाजपा ने चार बार की सांसद रही रीता वर्मा का टिकट काटकर 2009 में पशुपतिनाथ सिंह को टिकट दिया और वह चुनाव में विजई रहे. आंकड़े तो यही बताते हैं कि धनबाद के मतदाताओं का अपना एक अलग मिजाज होता है. उससे वह समझौता नहीं करते है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो