धनबाद(DHANBAD):मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा है कि हमारी सरकार खनिज संपदाओं से अलग हटकर विकास की अन्य संभावनाओं को तलाश रही है. यहां के खनिज का लाभ लोगों को पूर्ण रूप से नहीं मिल पाया. खनिज संपदाओं का लाभ दूसरे प्रदेश के लोगों ने उठाया. हमारी सरकार अब राज्य में सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक विकास के रास्ते को ढूंढते हुए कई महत्वपूर्ण और कल्याणकारी कार्य कर रही है. यह बात उन्होंने बुधवार को टीबी सेनेटोरियम मैदान, इटकी में अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी, मेडिकल कॉलेज और स्कूल निर्माण के शुभारंभ कार्यक्रम में कही. यह बात तो सही है कि झारखंड में कोयले की प्रचुर मात्रा होते हुए भी कोयला आधारित उद्योगों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. अगर धनबाद कोयलांचल की बात की जाए तो कोयला उद्योग प्रारंभ से ही धनबाद के निर्माण का स्तंभ रहा है.
धीरे-धीरे उद्योगों की हालत बिगड़ी और उद्योग मलिक कोयले की कमी से परेशान होते रहे
आपको बताये कि कोयला उद्योग से ही धनबाद चमका था. धनबाद में केंद्रीय अनुसंधान संस्थान की स्थापना भी इसी उद्देश्य की गई थी. शुरुआती दिनों में कई शोध भी हुए और निष्कर्ष भी निकले.लोकल उद्योगों को तकनीक का भी लाभ मिला.लेकिन कोयला उद्योग के राष्ट्रीयकरण के बाद तो इस इलाके से कई बड़े उद्योगपति बाहर की ओर रुख किए. दूसरे प्रदेशों में जाकर उद्योग बैठा लिए. लेकिन जो यहां रह गए, उनमें से अधिकतर कारोबारी कोयले की खदानें छिन जाने के बाद हार्ड कोक उद्योग बैठाया. यह उद्योग चमका भी बहुत तेजी से और एक समय में तो यहां 125 से अधिक ऐसे उद्योग काम करने लगे थे. लेकिन धीरे-धीरे उद्योगों की हालत बिगड़ती गई और उद्योग मलिक कोयले की कमी से परेशान होते रहे. नतीजा हुआ कि अधिकतर उद्योग बंद हो गए. इसके अलावे भी नए उद्योग खड़ा करने की बहुत ईमानदारी पूर्वक कोशिश नहीं की गई.
धनबाद, गिरिडीह और बोकारो जिले में उद्योगों की अपार संभावनाएं हैं
अब मुख्यमंत्री ने कहा है कि खनिज संपदाओं से अलग हटकर विकास की अन्य संभावनाओं को तलाश रहे हैं.इसे एक अच्छी पहल कही जा सकती है. यह बात भी सही है कि कम से कम धनबाद, गिरिडीह और बोकारो झारखंड के ऐसे तीन जिले हैं, जहां उद्योगों की अपार संभावनाएं हैं . उम्मीदें तो अन्य जिलों में भी हैं.लेकिन इसके लिए सिंगल विंडो सिस्टम सिर्फ नारा नहीं बल्कि हकीकत होना चाहिए. उद्योगों और उनके मालिकों के प्रति "छी मानुष"की प्रवृत्ति को परित्याग करना होगा. बिजली के लिए सरकारी नहीं तो निजी स्तर पर एक बड़ा पावर प्लांट की स्थापना होनी चाहिए.जिससे डीबीसी पर निर्भरता नहीं रहे. आज इलाके के उद्योग बिजली के लिए परेशान हैं.आज जो भी उद्योगपति इस इलाके में उद्योग चला रहे हैं, वह महसूस कर रहे हैं कि बिजली के लिए झारखंड बिजली वितरण निगम लिमिटेड या दामोदर घाटी निगम पर निर्भर रहना सही नहीं है.
धनबाद और इसके निकटवर्ती इलाकों से रिफ्रैक्टिज उद्योग क्यों खत्म हो गए
निजी क्षेत्र में ही सही, एक विद्युत ताप घर की स्थापना होनी चाहिए. जिसकी बिजली से धनबाद के अलावे बोकारो और गिरिडीह जिलों को भी बिजली जरूरत के हिसाब से दी जा सके.इस ताप घर की क्षमता इतनी अधिक होनी चाहिए कि औद्योगिक एवं गैर औद्योगिक क्षेत्र की आवश्यकताएं पूरी की जा सके.बिजली वितरण का जिम्मा भी ताप घर लगाने वाली कंपनी को ही मिले. इस तरह से बिजली के उत्पादन और वितरण में सरकारी क्षेत्र की कहीं भी दखलंदाजी की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए. लेकिन यह काम किसी छोटी कंपनी को नहीं बल्कि किसी बड़ी और प्रतिष्ठित कंपनी को दिया जाना चाहिए. उद्योग को शांतिपूर्ण संचालित करने के लिए मजदूर संघों पर भी नियंत्रण होना चाहिए.धनबाद और इसके निकटवर्ती इलाकों से रिफ्रैक्टिज उद्योग क्यों खत्म हो गए, इसका भी आकलन होना चाहिए.इलाके के जो उद्योग बंद है,उनका भी सर्वे होना चाहिए.यह पता लगाना चाहिए कि ऐसे कितने उद्योग हैं, जिनमें थोड़ी पूंजी निवेश और तकनीक में बदलाव कर उन्हें पटरी पर लाया जा सकता है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो