रांची(RANCHI): कांग्रेस की ओर से रामगढ़ उपचुनाव को लेकर स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी गयी है. प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे, प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर, मंत्री आलमगीर आलम, डॉ रामेश्वर उरांव, बन्ना गुप्ता, बादल पत्रलेख, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा, पूर्व सांसद फुरकान अंसारी, चंद्रशेखर दुबे, मन्नान मलिक सांसद धीरज साहू, सांसद गीता कोड़ा, विधायक प्रदीप यादव, दीपिका पांडे सिंह, अंबा प्रसाद, भूषण बाड़ा, शिल्पी नेहा तिर्की के कंधों पर यूपीए खेमा का जीत का कारवां को जारी रखने की जिम्मेवारी सौंपी गयी है.
अब तक के सभी उपचुनावों में एनडीए खेमे को करना पड़ा है हार का सामना
यहां बता दें कि इसके पहले हुए सभी उपचुनावों में यूपीए खेमा ने एनडीए को एकतरफा शिकस्त दिया है. मांडर, दुमका, बेरमो और मधुपुर में मिली पराजय के बाद एनडीए के सामने अपनी साख बचाने का सवाल है, यदि एनडीए खेमा को रामगढ़ में भी पराजय का सामना करना पड़ता है तब यह माना जायेगा कि हेमंत के तीर के आगे भाजपा का कमल दम तोड़ रहा है.
Mamata Mahto verses Chandraprakash choudhari
यहां बता दें कि आगामी 27 फरवरी को रामगढ़ की जनता प्रत्याशियों के किस्मत का फैसला करेगी, एक तरफ जहां कांग्रेस की ओर से पूर्व विधायक ममता देवी के पति बजरंग महतो को उम्मीदवार बनाया गया है, वहीं एनडीए की ओर से आजसू के बैनर तले पूर्व मंत्री चन्द्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी मैदान में है.
गोला गोलीकांड में गयी थी ममता की विधायकी
यहां बता दें कि रामगढ़ के गोला में 29 अगस्त 2016 को नागरिक चेतना मंच के बैनर तले करीबन 200 से उपर ग्रामीणों के द्वारा आइपीएल कंपनी के खिलाफ प्रर्दशन किया जा रहा था, भीड़ का नेतृत्व तत्कालीन विधायक ममता महतो के द्वारा किया जा रहा था, इस बीच भीड़ अचानक से उग्र हो गयी. और पुलिस को आत्मरक्षार्थ गोली चलानी पड़ी, इसमें दो ग्रामीणों की मौत हो गयी, इसको लेकर रजरप्पा और गोला थाना कांड में चार अलग-अलग प्राथमिकी दर्ज करायी गयी थी. इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट के द्वारा ममता महतो को पांच वर्ष की सजा हुई और उनकी विधायकी चली गयी. विधायक ममता महतो अपन दुधमुंहे बच्चे को छोड़ कर जेल का सफर तय करना पड़ा.
कांग्रेस के “बजरंग” को मिल सकता है सहानुभूति वोट
कानूनी स्थिति चाहे जो हो लेकिन रामगढ़ विधान सभा क्षेत्र में ममता देवी को संघर्षशील नेता माना जाता है, आम धारणा यह है कि वह जनमुद्दे को लेकर काफी सक्रिय रहती है, अब वह जेल में हैं, इस प्रकार यूपीए को उनके नाम पर सहानुभूती वोट मिल सकता है.
इधर चन्द्रप्रकाश चौधऱी का जमीनी पकड़ को नहीं किया जा सकता दरकिनार
लेकिन एनडीए उम्मीदवार सुनीता चौधरी पूर्व मंत्री और सांसद चन्द्रप्रकाश चौधरी की पत्नी है, खुद चन्द्रप्रकाश चौधरी भी रामगढ़ विधान सभा क्षेत्र से विधायक रह चुके हैं, उनकी भी जमीनी पकड़ काफी अच्छी मानी जाती है, और एक बात यह भी कि सुनीता चौधरी भाजपा कोटे से नहीं होकर आजसू के बैनर तले चुनाव लड़ रही है, ममता महतो और सुनीता चौधरी दोनों की महतो समुदाय से हैं, कुर्मी महतो मतदाताओं के बीच आजसू की पकड़ अच्छी मानी जाती है, इस प्रकार साफ है कि यहां यूपीए के लिए आदिवासी मूलवासी का नारा उछाल मतदाताओं का धुर्वीकरण करना इतना आसान नहीं रहने वाला है. क्योंकि आजसू की पूरी राजनीति ही इस मुद्दे के इर्द गिर्द घूमती रही है,
पिछड़ा आरक्षण में विस्तार को मुद्दा बना सकती है यूपीए
लेकिन इसके साथ ही यूपीए के खेमा पिछड़ों आरक्षण में विस्तार को मुद्द् बना सकती है, क्योंकि आजसू के सरकार में रहते ही पिछड़ों के आरक्षण को 27 फीसदी से कम 14 फीसदी किया गया था. पिछड़ों के आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी करने को यूपीए चुनावी मुद्दा बना सकती है.
कांग्रेस की खेमेवाजी से हो सकता है नुकसान
एक बात और है कि कांग्रेस संगठन में सब कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है, उसके अन्दर की खेमेवाजी साफ देखी जा रही है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर नाराजगी आम है, माना जाता है कि इसी खेमेवाजी के कारण विधायक इरफान अंसारी सहित तीन विधायकों को लेकर कैश कांड की कहानी सामने आयी थी, कांग्रेस के आदिवासी मूलवासी नेताओं के द्वारा कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए दावेदारी की जा रही है, वैसे प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे के द्वारा इस समेटने की कोशिश जारी है, लेकिन उनके द्वारा ज्योंही एक खेमे का मनाया जाता है दूसरा खेमा नाराज हो जाता है.
मुख्यमंत्री हेमंत को थामनी पड़ सकती है कमान
साफ है कि यदि यूपीए को अपनी जीत का सिलसिला को आगे बढ़ाना है तो इस का नेतृत्व सीधे सीधे राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को करना पड़ेगा, आदिवासी मूलवासी, 1932 का खतियान, पिछड़ों का आरक्षण में विस्तार के मुददे के साथ वह एनडीए खेमे को एक और शिकस्त दे सकते हैं.
क्या मांडर विधान सभा चुनाव से सबक लेगी एनडीए
यहां यह भी बता दें कि मांडर उपचुनाव में हार के बाद भाजपा के अन्दर भी खेमेवाजी देखी गयी थी, अन्दरखाने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पर इस हार का सेहरा फोड़ा गया था, तब दबे स्वर में यह बात सामने आयी थी कि प्रदेश अध्यक्ष के द्वारा चुनावी संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया गया, दिल्ली से चली राशि राजधानी रांची में ही सिमट गयी और उधर कार्यकर्ता मांडर में चुनावी युद्ध करते रहें.