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जंजीरों में कैद जिंदगी! आखिर क्यों एक मां ने अपने ही बेटे को 6 साल से रखा है घर में बंद, पढ़ें विस्तार से  

जंजीरों में कैद जिंदगी! आखिर क्यों एक मां ने अपने ही बेटे को 6 साल से रखा है घर में बंद, पढ़ें विस्तार से   

दुमका(DUMKA):आजादी हम सबों को बड़ी प्यारी लगती है. सोने के पिंजड़े में बंद पक्षी भी आजादी के लिए फड़फड़ाता है. अमूमन हम अपने पालतू पशु को भी जंजीरों में जकड़ कर नहीं रखते. इसके बाबजूद अगर एक मां अपनी संतान को जंजीरों में जकड़ कर रखी हुई है, तो क्या हम इसे मां - बेटा की नियति मान लें?कदापि ऐसा नहीं है. हालात कुछ ऐसे हैं कि जो माता-पिता बुढ़ापे का सहारा अपने पुत्र को मानते हैं, वहीं वृद्ध मां जंजीरों में जकड़ कर अपने बेटे की परवरिश कर रही है. मामला झारखंड की उपराजधानी दुमका के हंसडीहा का है. मानसिक रूप से बीमार हंसडीहा निवासी छोटू 6 वर्षों से अमानवीय जीवन व्यतीत कर रहा है. उसकी किस्मत जंजीरों में जकड़ी हुई है. छोटू को जंजीरों में जकड़ने वाले कोई और नहीं अपने ही हैं.

जंजीरों में कैद जिंदगी!  

जानकारी के अनुसार 6 साल पहले छोटू की दिमागी हालत अचानक खराब हो गई. परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं रहने की वजह से परिजनों ने झोला छाप डॉक्टर से इलाज के साथ साथ झाड़-फूंक के सहारे उसका ईलाज करवाया, लेकिन समय के साथ-साथ मर्ज बढ़ता ही गया. छोटू की बूढ़ी मां कलशी देवी ने बताया कि दो पुत्रों में छोटू उनका छोटा लड़का है . 6 साल पहले अचानक छोटू अजीबो-गरीब हरकत करने लगा. परिवारिक तंगी की वजह से घरवाले ईलाज के लिए उसे बाहर नहीं ले जा पाएं. स्थानीय स्तर पर इलाज के साथ-साथ झाड़ फूंक कराया गया लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ.

आखिर क्यों एक मां ने अपने ही बेटे को 6 साल से रखा है घर में बंद

छोटू की हालात पर ग्रामीणों को जब तरस आया, तो ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर छोटू को ईलाज के लिए रांची स्थित कांके अस्पताल भेजा. वहां कुछ दिन ईलाज चलने के बाद पैसे और जानकारी के अभाव में परिजन उसे लेकर वापस अपने घर लौट गए. छोटू की बूढ़ी मां दूसरों के घरों में काम कर अपने विक्षिप्त बेटे के लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाती है. हालांकि जनवितरण प्रणाली की दुकान से छोटू के घरवालों को हर महीने अनाज उपलब्ध करा दिया जाता है. जिससे बहुत हद तक राहत मिल रही है. वहीं इस परिवार को प्रधानमंत्री आयुष्मान योजना का कार्ड भी बना हुआ है. इसके बाबजूद छोटू की जिंदगी जंजीरों में कैद है.

जानें मामले पर सिविल सर्जन डॉ बीपी सिंह ने क्या कहा

इस मामले पर पूछे जाने पर सिविल सर्जन डॉ बीपी सिंह ने कहा कि आज के समय में मानसिक रोग लाइलाज नहीं है, लेकिन इलाज के लिए परिजनों को आगे आना होगा. जंजीरों में जकड़ कर रखना अमानवीय है. उन्होंने कहा कि दुमका के फूलो-झानो मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भी मनोरोग विशेषज्ञ हैं. जंजीरों में जकड़ कर रखने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता. इलाज के लिए परिजनों को पहले स्थानीय थाना से संपर्क करना चाहिए, क्योंकि मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति को पुलिस बल के साथ ही कहीं भेजा जा सकता है. एम्बुलेंस विभाग की ओर से उपलब्ध कराया जाएगा.दुमका में जांच के बाद अगर जरूरत पड़ी तो मरीज को कांके भेज कर समुचित इलाज कराया जाएगा. उन्होंने कहा कि छोटू का इलाज पहले कांके में हुआ है, इसलिए वहां दोबारा भेजने पर कोई परेशानी नहीं होगी, साथ ही इलाज में कोई आर्थिक समस्या भी नहीं होगी क्योंकि  परिवार का आयुष्मान कार्ड बना हुआ है.

आखिर कहां है दुमका के समाजसेवी ?

अब सवाल उठता है कि आखिर छोटू को नव जीवन कैसे मिलेगी. परिवार वाले गरीब और अशिक्षित है. बूढ़ी मां के सहारे इलाज संभव नहीं है, तो फिर ऐसी स्थिति में जिले के तथाकथित समाजसेवी कहां हैं? क्या ऐसे लोगों की मदद करना समाज सेवा की श्रेणी में नहीं आता? तरस आता है वैसे समाज सेवियों पर जब मरीजों के बीच एक केला या सेव का वितरण करते दर्जनों समाज सेवी कैमरे की फ्रेम में आ जाते है. एक पौधा लगाने के लिए कई लोग सामूहिक रूप से तस्वीर खिंचवाते हैं, और सोशल मीडिया पर अपलोड कर वाहवाही लूटते हैं,  तो फिर छोटू जैसे जरूरतमंदों की सेवा के लिए कोई सामने क्यों नहीं आता.जरूरत है एक ऐसे मसीहा की जो छोटू की किस्मत को जंजीरों से आजाद करा सके, उसे एक नया जीवन देने में मदद कर सके, क्योंकि मानसिक बीमारी लाइलाज नहीं है. स्वास्थ्य विभाग को भी पहल करनी चाहिए.

रिपोर्ट-पंचम झा

Published at:05 Sep 2023 04:27 PM (IST)
Tags:Life captured in chains! After all why has a mother kept her own son locked in the house for 6 years read in detailLife captured chain mother kept her own son locked in the housedumkakankeranchi
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