रांची(RANCHI) - झारखंड में नेता प्रतिपक्ष विरोधी दल के बड़े नेता को अभी तक मान्यता नहीं मिल पाई है. इस संबंध में स्पीकर कोर्ट में दल बदल कानून के तहत मामला चल रहा है. विधानसभा के साढ़े तीन साल का कार्यकाल अब पूरा होने पर है. लेकिन नेता प्रतिपक्ष का मामला अभी भी लंबित है.
क्या है मामला
नेता प्रतिपक्ष उसी दल का होता है जो विधानसभा में सबसे बड़ा विरोधी दल होता है. मालूम हो कि 2019 के विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा ने तीन सीटों पर जीत हासिल की थी. फरवरी, 2020 में बाबूलाल मरांडी ने अपनी पार्टी झारखंड विकास मोर्चा का भाजपा में विलय कर दिया था. विलय से पहले बाबूलाल मरांडी की अध्यक्षता वाली झारखंड विकास पार्टी ने कंघी छाप पर जीते प्रदीप यादव और बंधु तिर्की को पार्टी से निष्कासित कर दिया था. भाजपा में विलय के बाद बाबूलाल मरांडी को भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में चुना गया. इस आधार पर भाजपा की विधानसभा अध्यक्ष से बड़ौदा मंडी को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने का आग्रह किया. उसके बाद यह मामला दल बदल कानून के तहत आ गया. इस पर विधानसभा न्यायाधिकरण का फैसला अभी तक लंबित है. सुनवाई दर सुनवाई हो रही है. अभी तक कोई फैसला नहीं आया है. नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़े विरोधी दल के नेता के मामले का निष्पादन नहीं होने की वजह से सूचना आयोग सभ्यता बोर्ड निगम और आयोग में नियुक्तियां नहीं हो पाई. इससे संवैधानिक और वैधानिक निकायों के कामकाज प्रभावित हो रहे हैं. इससे जनता का बड़ा नुकसान हो रहा है.
अगले सप्ताह फिर होगी सुनवाई
बुधवार को झारखंड हाई कोर्ट ने एडवोकेट एसोसिएशन की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए विधानसभा के सचिव को निर्देश दिया है. मुख्य न्यायाधीश जस्टिस संजय कुमार मिश्र की खंडपीठ ने विधानसभा सचिव को कहा है कि एक सप्ताह के अंदर विरोधी दलों के नेता के मामले का निष्पादन किया जाए.अगर ऐसा नहीं होता है तो विधानसभा सचिव को अगली सुनवाई के दौरान कोर्ट में सशरीर हाजिर होना होगा. एडवोकेट एसोसिएशन की ओर से वकील अभय मिश्रा और नवीन कुमार ने पक्ष रखा इधर सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन ने बहस में हिस्सा लिया. इस मामले पर अगले सप्ताह फिर सुनवाई होगी.