धनबाद(DHANBAD): कोयलांचल और शिल्पांचाल में अपनी लेखनी की जादू बिखेरने वाले मशहूर कथाकार संजीव को उनके उपन्यास 'मुझे पहचानो' के लिए इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया जाएगा. विजेता के नाम की घोषणा साहित्य अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने नई दिल्ली के मंडी हाउस स्थित रवींद्र भवन में साहित्य अकादेमी मुख्यालय में की है. अपनी लेखनी से धूम मचाने वाले इस साहित्यकार का जन्म 6 जुलाई, 1947 को सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) के बाँगरकलाँ गाँव में हुआ.
38 वर्षों तक धनबाद से सटे कुल्टी में नौकरी की
कार्यक्षेत्र के रूप में 38 वर्षों तक धनबाद से सटे कुल्टी में रासायनिक प्रयोगशाला में कार्य करने के बाद स्वतंत्र लेखन करते रहे. उसके बाद 7 वर्षों तक 'हंस' समेत अन्य पत्रिकाओं के संपादन एवं स्तंभलेखन का कार्य किया. संजीव का धनबाद से भी विशेष लगाव है . धनबाद से प्रकाशित दैनिक आवाज में नियमित स्तंभकार थे. उनकी कहानी और उनकी यात्रा संस्मरणों का विवरण आवाज के पाठक बेसब्री से किया करते थे. धनबाद स्थित विभिन्न केंद्रीय प्रतिष्ठानों में हिंदी दिवस पर वह मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुआ करते थे. आवाज के संपादक रहे ब्रह्मदेव सिंह शर्मा का उन पर विशेष स्नेह था और वह भी गाहे बेगाहे किसी न किसी बहाने संजीव को धनबाद बुला लिया करते थे.
संजीव की प्रमुख कृतियां
उनकी प्रमुख कृतियों में तीस साल का सफरनामा, आप यहाँ हैं, भूमिका और अन्य कहानियाँ, दुनिया की सबसे हसीन औरत, प्रेतमुक्ति, प्रेरणास्रोत और अन्य कहानियाँ, ब्लैक होल, खोज, दस कहानियाँ, गति का पहला सिद्धांत, गुफा का आदमी, आरोहण (कहानी संग्रह); किशनगढ़ के अहेरी, सर्कस, सावधान ! नीचे आग है, धार, पाँव तले की दूब, जंगल जहाँ शुरू होता है, सूत्रधार, आकाश चम्पा, अहेर, फाँस, प्रत्यंचा (उपन्यास), रानी की सराय (किशोर उपन्यास), डायन और अन्य कहानियाँ (बाल-साहित्य) शामिल है.
9 कविता संग्रह, 6 उपन्यास, 5 कहानी संग्रह का किया गया है चयन
इस साल 24 भारतीय भाषाओं में 9 कविता संग्रह, 6 उपन्यास, 5 कहानी संग्रह, तीन निबंध और एक आलोचना की पुस्तक को पुरस्कार के लिए चुना गया है. अंग्रेजी भाषा में नीलम शरण गौर के उपन्यास रेक्युम इन रागा जानकी, संस्कृत में अरुण रंजन मिश्र के कविता संग्रह शून्ये मेघगानम्, उर्दू भाषा के लिए सादिक नवाब सहर के उपन्यास राजदेव की अमराई को पुरस्कार के लिए चुना गया है. कुल्टी वर्क के 2003 में बंद होने के बाद भी साहित्य साधना की उनकी राह कभी बंद नहीं हुई. साहित्य साधना की राह पर वह बिना थके चलते रहे. इनका वास्तविक नाम राम सजीवन सिंह है लेकिन लेखन की दुनिया में यह संजीव के नाम से मशहूर हुए.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो