टीएनपी डेस्क(Tnp desk):- राजनीति में लड़ाई विचारधाराओं के रंजिश की होती है, यहां प्यादा भी राजा बन जाता है, खैर यहां लड़ाई तो सत्ता की ही होती है . लोकतंत्र की तासीर ये है कि यहां एक फकीर भी शहंशाह बन जाता है. . यहां तात्पर्य यही है कि जनतंत्र में ऐसी खूबसूरती बख्शी गई है कि कोई भी सर्वोच्च पद पर आसीन हो सकता है. क्योंकि, इसकी मालिक जनता होती है.
झारखंड के परिदृश्य और हालिया घटनाक्रम को देखे तो जमीन घोटाले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस्तीफे और गिरफ्तारी के बाद . लगा कि उनकी वाइफ कल्पना को बागडोर मिलेगी. लेकिन, यकायक एक ऐसा नाम उभरा जिसकी फकिरयत पर ही सब फिदा रहते हैं. सोरेन परिवार के साथ-साथ गठबंधन के दल भी उनके नाम पर मुख्यमंत्री की हामी बेझिझक भर दी. हम बात कर रहे हैं चंपई सोरेन की . जिसने सियासत की इस अगर-मगर की डगर में खुद को टिकाए रखा . और जतला दिया कि राजनीति की इस सांप-सीढ़ी के खेल में अव्वल हैं, क्योंकि जनता ही इस लोकतंत्र की मालिक है और वे उनके पसंदीदा नेता हैं.
सादगी ही चंपई सोरेन की पहचान
आज के नेताओं में शान-शौकत की कमी नहीं होती, शायद ही विरले कोई नेता हो, जो जिंदगी में सादगी का फलसफा लेकर अपनी सियासात की दुकान चलाता दिखाई पड़े. लेकिन, जेएमएम विधायक चंपई सोरेन की सादगी तो उनकी पहचान और गहना रहा है. जो जनता के दिलों में दशकों से रचा-बसा है. पैरों में चप्पल, साधरण सा सादा कुर्ता या ढीली शर्ट-पेंट और सिर पर बालों की चकचक सफेदी यही उनकी पहचान रही है. जुबान पर अदब और चेहरे पर मासूमियत उनकी निशानी है.
आदिवासी नेता चंपई शिबू सोरेन परिवार के काफी करीबी है, और झारखंड मुक्ति मोर्चा से शुरुआत से ही जुड़े हुए रहें हैं. अलग राज्य के गठन के आंदोलन में भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. हेमंत सोरेन मंत्रिमंडल में वे परिवहन और खाद्य आपूर्ति मंत्री रहे.
चंपई सोरेन का जन्म और बचपन
67 साल के चंपई सोरेन सरायकेला खरसांवा जिले के गम्हरिया प्रखंड के जिलिंगगोड़ा गांव में 11 नवंबर 1956 को हुआ. चंपई के पिता का नाम सेमल सोरेन और माता माधो सोरेन है. जिनकी छह संतानो में चंपई तीसरे नंबर हैं. पिता सेमल का निधन 101 साल की उम्र में 2020 में हुआ था. वही मां माधो सोरेन गृहणी थी. जेएमएम नेता चंपई सोरेन ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं है, महज दसवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है. घर-गृहस्थी में कम समय में ही आ गये थे. उनकी शादी काफी कम उम्र में ही मानको सोरेन से हुई .
चंपई सोरेन के सियासत की शुरुआत
चंपई सोरेन सरायकेला विधानसभा से सात बार विधायक रह चुके हैं. इससे अंदाजा लग सकता है कि उनकी इलाके में और आम आवाम तक कितनी पैठ और पकड़ है. साल 1991 में चंपई सरायकेला सीट के लिए हुए उपचुनाव में पहली बार जीत हासिल की थी और तत्कालीन बिहार विधानसभा के सदस्य बनें. तब वह उपचुनाव वहां के तत्कालीन विधायक कृष्णा मार्डीं के इस्तीफे के बाद हुआ था. चंपई 1995 में फिर चुनाव लड़े और जीत दर्ज की . हलांकि, 2000 में हुए चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा है. इस पराजय के बाद भी चंपई सोरेन विचलित नहीं हुए और जनता के साथ लगातार जुड़े रहें. इसका नतीजा रहा कि 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में फिर जीत हासिल की , इसके बाद तो फिर उन्होंने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और लगातार जीत का सिलसिला बनाए रखा, जो आज तक जारी है.
सरायकेला से लगातार विजय हासिल करते रहे चंपई सोरेन का नाम पहले भी मुख्यमंत्री बनने वाले लोगों की लिस्ट में शुमार रहा हैं. लेकिन, वो बन नहीं पाये ते. इस बार तो उनके नाम सबसे आगे आ गया और विधायक दल ने अपना नेता भी चुन लिया है. अब देखना है कि चंपई सोरेन जिसने राजनीति में लंबा अनुभव बटोरा और जनता के दिलों पर राज किया. अब वो झारखंड के मुख्यमंत्री बनते हैं कि नहीं. लोगों को इसका इंतजार है.