धनबाद(DHANBAD) : रेलवे की नजर में धनबाद रेल मंडल प्रक्षेत्र में कोई भी आदमी गरीब नहीं है. सबकी क्रय क्षमता राष्ट्रीय अनुपात से अधिक नहीं तो बराबर जरूर है. रेलवे अगर यह बात नहीं सोचती तो रेल यात्रियों पर एक के बाद एक आर्थिक बोझ क्यों लादती , पिछले 5 महीने मे 5 ट्रेनों से 15 स्लीपर और 10 जनरल बोगी हटा ली गई है. तो यहाँ सवाल तो उठता है कि क्या शीतताप नियंत्रित कक्ष में बैठकर सुविधाओं पर कैंची चलाने वाले अधिकारियों को धनबाद की वास्तविक आर्थिक स्थिति की जानकारी है भी या नहीं.
सबसे अधिक राजस्वा देता है धनबाद
यह बात अलग है कि धनबाद रेल मंडल पूरे देश में सबसे अधिक रेलवे को राजस्व देने वाला डिवीजन है. ढुलाई में नंबर वन है तो क्या इसी का खामियाजा धनबाद के आर्थिक रूप से कमजोर रेल यात्री भुगत रहे है. ढुलाई में देश में सबसे अधिक राजस्व देने का यह मतलब थोड़े ही होना चाहिए कि धनबाद के सभी लोग रेल यात्रा में कुछ भी खर्च कर सकते है. यह सवाल बड़ा गंभीर है और जनप्रतिनिधियों को भी को भी झकझोर देने वाला है लेकिन धनबाद के जनप्रतिनिधि सोए से जगे तब ना, नॉन एसी बोगियों को हटाकर रेलवे एसी बोगी बढ़ा रहा है ताकि यात्री ट्रेनों से आमदनी बढ़ाई जा सके. लेकिन यह इंतजाम इलाके की आर्थिक क्षमता के मुताबिक होनी चाहिए. एक के बाद एक लगभग प्रत्येक ट्रेन की साधारण और दूसरे दर्जे की स्लीपर बोगियों को कम कर थर्ड और सेकंड एसी की बोगियां बढ़ाई जा रही है.
लाइफ लाइन मौर्या एक्सप्रेस भी प्रभावित
9 जून को मौर्य एक्सप्रेस एलएचबी रैक में तब्दील हो गई, हालांकि यह ट्रेन पूर्व मध्य रेलवे की नहीं है. लेकिन धनबाद से बिहार जाने वालों के लिए लाइफ लाइन तो है ही. एलेप्पी एक्सप्रेस भी पहली सितंबर से एलएचपी बो गियों के साथ चल रही है. पहले से एलएचबी रैक के साथ चल रही गंगा सतलज एक्सप्रेस से भी 25 नवंबर से एक झटके में पांच स्लीपर बोगी हटा लेने की घोषणा की गई है. गंगा दामोदर में 8 नवंबर से 3-3 स्लीपर और जनरल बोगियों को कम कर दिया गया है. पहली दिसंबर से धनबाद पटना एक्सप्रेस में भी एक स्लीपर बोगी कम करने की घोषणा की गई है. आर्थिक रूप से कमजोर लोग परेशान हो रहे हैं लेकिन रेलवे को इस से कोई मतलब नहीं है, वह तो सिर्फ आमदनी बढ़ाने के तरीके ढूंढ रही है.
रिपोर्ट: शांभवी, धनबाद