धनबाद (DHANBAD): प्रदेश के आर्थिक राजधानी धनबाद को झारखंड में रहते 22 साल हो गया. पहले झारखंड बिहार में था, लेकिन झारखंड बनने के बाद उम्मीद बढ़ी थी कि सुविधाएं मिलेंगी. धनबाद को 22 सालों में न ट्रैफिक समस्या से छुटकारा मिला, ना हर घर जल योजना सब लोगों तक पहुंच पाया. हवाई अड्डा भी नहीं बना, धनबाद को स्टेडियम भी नसीब नहीं हुआ. अगर कुछ मिला तो सिंदरी में HURL कंपनी का उत्पादन शुरू हुआ. वह भी 22 वे साल में. ISM को IIT ka टैग जरूर मिला लेकिन इसमें झारखंड की कोई भूमिका नहीं थी.
हर मोर्चे पर संघर्ष करता रहा है धनबाद
फ्लाईओवर का मामला डी पीआर , डी पीआर के खेल में अभी तक फंसा हुआ है. गया पुल अंडरपास जैसा लोकहित का मामला भी झकाझु मर खेल रहा है. हम कह सकते हैं कि धनबाद हर एक मोर्चे पर संघर्ष कर रहा है. पूजा टॉकीज से लेकर बैंक मोड़ तक फ्लाईओवर की घोषणा होती रही लेकिन डीपीआर नहीं बनी. मटकुरिया से आरा मोड़ तक फ्लाईओवर का मामला टेंडर टेंडर का खेल खेल रहा है. धनबाद में खिलाड़ियों की बहुतायत और संगठन की सक्रियता के बावजूद एक स्टेडियम नसीब नहीं हुआ. स्टेडियम को लेकर प्रशासन को कोई फिक्र नहीं है और ना यहां के जनप्रतिनिधियों को .धनबाद से छोटे-छोटे जिले अपने यहां जमीन चिन्हित कर स्टेडियम निर्माण की दिशा में आगे बढ़ गए हैं, लेकिन धनबाद के पास आर्थिक ताकत, सक्षम जनप्रतिनिधि, संवेदनशील प्रशासन होने के बावजूद जमीन नहीं मिल पा रही है. धनबाद में स्टेडियम के लिए जमीन ही बाधा है. राशि के लिए तो बीसीसीआई तैयार बैठा है. धनबाद के लोग अपनी किस्मत को दोष दें अथवा जनप्रतिनिधियों को, यह उन्हें समझ नहीं आ रहा है. असुविधायो के बीच रोज उनकी उम्र एक एक दिन घट रही है.
रिपोर्ट: शांभवी सिंह, धनबाद