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बिहार के बाहुबलियों के "गुरु" कहे जाने वाले काली पांडेय का निधन, पढ़िए-बाहुबली के साथ-साथ रॉबिनहुड की भी क्यों बनी थी छवि !

बिहार के बाहुबलियों के "गुरु" कहे जाने वाले काली पांडेय का निधन, पढ़िए-बाहुबली के साथ-साथ रॉबिनहुड की भी क्यों बनी थी छवि !

धनबाद (DHANBAD) : बिहार की राजनीति में 2005 का साल महत्वपूर्ण रहा. लालू प्रसाद के हाथ से सत्ता खिसक गई और यह सत्ता नीतीश कुमार के हाथों में आ गई. उस समय बिहार में बाहुबलियों की समानांतर व्यवस्था चल रही थी.  नीतीश कुमार आए और उस पर नियंत्रण पाने का हर संभव प्रयास किया. कुछ सफलता भी मिली, वैसे बिहार में बाहुबलियों की "सत्ता" 80 के दशक के बाद से ही शुरू हुईऔर शुरू करने का श्रेय गया गोपालगंज के बाहुबली नेता काली पांडे के खाते में. वह बाहुबलियों के "गुरु" भी कहे जाते रहे. यह अलग बात है कि इलाके के लोग काली पांडे में रॉबिन हुड की छवि भी देखते थे. लेकिन कहा यही जाता है कि बाहुबलियों के काली पांडे गुरु थे और उन्हें की छत्रछाया में कई बाहुबलियों का उदय हुआ. 

दिल्ली के अस्पताल हो गया है निधन 
 
काली पांडे अब इस दुनिया में नहीं रहे. शुक्रवार को दिल्ली के अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली. बिहार के बाहुबलियों की एक लंबी फेहरिश्त है. 2005 में जब नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री बने तो बाहुबलियों को कंट्रोल करना उनके लिए एक बड़ी चुनती थी. लेकिन उन्होंने इस पर बहुत हद तक काबू पा लिया था. हालांकि बाद के दिनों में अपराध पर कंट्रोल नहीं करने के आरोप नीतीश कुमार पर लगते रहे. अभी भी लग रहे है.  बिहार के बाहुबली रहे काली पांडे अब इस दुनिया में नहीं रहे. यह भी बताया जाता है कि 80 के दशक में समूचे बिहार में इनका जबरदस्त दबदबा था. नेता काली पांडे के आशीर्वाद लेने को परेशान रहते थे. काली पांडे पर कई मामले दर्ज हुए. 

बिहार की लगभग सभी पार्टियों में रहे काली पांडेय 
 
हालांकि आरोप उन पर साबित नहीं हो पाए. वैसे काली पांडे राजनीति में भी आगे बढ़ते रहे. बगैर किसी पार्टी के खुद की बदौलत राजनीति की शुरुआत की. कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए, लालू प्रसाद की पार्टी में भी रहे, लोजपा में भी कुछ दिन रहे, फिर कांग्रेस में लौट आये. काली पांडे बिहार के गोपालगंज के रहने वाले थे. काली पांडे गोपालगंजसे लोकसभा का निर्दलीय चुनाव भी जीता था.  कहा तो यह भी  जाता है कि गोपालगंज सहित कई इलाकों में उनकी तूती बोलती थी. चुनाव जीतने के लिए उन्हें किसी पार्टी की दरकार नहीं होती थी. पुराने लोग बताते हैं कि गंडक नदी के तटीय इलाकों में पनप रही "जंगल पार्टी" के अपराधों के खिलाफ उन्होंने मोर्चा खोल दिया था. युवाओं को संगठित कर क्राइम कंट्रोल का प्रयास किया.  जिसे लोग आज भी याद करते है.  काली  पांडे की सियासी सफर 1980 के आस पास  शुरू हुआ. 

पहली बार में ही बन गए थे विधायक 
 
पहली बार गोपालगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और पहले ही बार में जीत दर्ज कर विधायक बन गए. उनके बारे में  कहा जाता है कि जिस समय कांग्रेस की लहर थी, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब पूरे देश में सहानुभूति की लहर थी, बावजूद 1984 में जेल में रहते हुए लोकसभा चुनाव निर्दलीय जीता था. कांग्रेस प्रत्याशी नगीना राय को उन्होंने पराजित कर दिया था.  चुनाव जीतने के बाद उनका प्रभाव बढ़ता गया, फिर वह कांग्रेस में आ गए.  पुराने लोग बताते हैं कि काली पांडे पर अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी नगीना राय की हत्या का आरोप लगा. तब वह विधायक थे. इस हत्या के मामले में उन्हें जेल भी हुई थी. हालांकि आरोप साबित नहीं हुए. इसके बाद उनके ऊपर बाहुबली नेता और अपराधी  का आरोप लगने शुरू हुए और उनकी छवि एक बाहुबली नेता की हो गई. 

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो   

Published at:23 Aug 2025 08:19 AM (IST)
Tags:DhanbadBiharKali PandeyNidhanDelhi
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