रांची(RANCHI): वैसे झारखंड में नगर निकाय चुनाव टलता नजर आ रहा है. इस पर महाधिवक्ता की राय अंतिम रूप से ली जाएगी. टीएसी की बैठक और विभिन्न आदिवासी संगठनों के विरोध के कारण सरकार को राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा फार्मूले पर निर्धारित आरक्षण रोस्टर पर पुनर्विचार करने को मजबूर होना पड़ा है.
सबसे पहले भाजपा की नेत्री और रांची नगर निगम की मेयर आशा लकड़ा ने इस आरक्षण रोस्टर पर सवाल खड़ा किया था. लेकिन धीरे-धीरे उनके सुर में सुर मिलाने के लिए कई आदिवासी संगठन आ गए.अब तो हालत यह है कि पांचवीं अनुसूची का हवाला देकर झारखंड मुक्ति मोर्चा भी इस विचार का हो गया है कि रांची नगर निगम के मेयर का पद एकल पद होने की वजह से आदिवासी समाज के लिए आरक्षित होना चाहिए.
रांची नगर निगम के मेयर का पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित होना चाहिए
पार्टी के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने 3 दिन पूर्व कहा था कि सभी वर्ग को प्रतिनिधित्व मिले, इसलिए आरक्षण का रोस्टर होता है और इसका अपना एक तार्किक फार्मूला है. इसलिए इस पर कोई विवाद खड़ा नहीं होना चाहिए. लेकिन अब मामला गंभीर होता देख झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी पलटी मार दी है. सुप्रीम भट्टाचार्य कहते हैं कि वैसे तो सरकार को निर्णय लेना है लेकिन रांची नगर निगम के मेयर का पद अनुसूचित जनजाति के लिए ही पहले की तरह आरक्षित होना चाहिए, क्योंकि यह पांचवी अनुसूची क्षेत्र का मामला है.
राजनीतिक समीक्षक मानते हैं कि राजनीतिक दल इसी तरह से अपना रंग बदलते हैं. जब दांव उल्टा पड़ता है तो पलटी मारने में विलंब नहीं करते हैं. वैसे हम बता दें कि भाजपा की ओर से भी बाबूलाल मरांडी ने कहा कि इस संवैधानिक संस्था ने जिस फार्मूले के आधार पर यह तय किया है, उस पर भी सवाल खड़ा नहीं कर सकते हैं.