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Jharkhand Politisc: झारखंड के इन नेताओं को रास नहीं आया बीजेपी का साथ, पढ़ें कैसे एक फैसले ने इनको कुर्सी से कर दिया दूर

Jharkhand Politisc: झारखंड के इन नेताओं को रास नहीं आया बीजेपी का साथ, पढ़ें कैसे एक फैसले ने इनको कुर्सी से कर दिया दूर

टीएनपी डेस्क(TNP DESK): केंद्र में बीजेपी की तीसरी बार सरकार चल रही है, लेकिन कुछ राज्य ऐसे है जो बीजेपी की पकड़ से बाहर है, इन्हीं राज्यों में झारखंड भी शामिल है. झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 के नतीजों ने साफ कर दिया है कि झारखंड में जेएमएम को ही स्वीकार किया जायेगा. चुनाव के नतीजा आये एक महीना बीत चुका है. सूबे में हेमंत सोरेन की सरकार सफल रूप से चल रही है, लेकिन झारखंड के कुछ नेता जिन्होंने चुनाव से पहले जेएमएम को नकार कर बीजेपी को स्वीकारा था अपने फैसले विचार कर रहे है.

झारखंड में नहीं चल पाया बीजेपी का जादू

विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड में बीजेपी की ओर से जिस तरीके से माहौल बनाया जा रहा था और पीएम नरेंद्र मोदी गृहमंत्री के साथ बड़े बड़े नेता यहां का फेरा लगा रहे थे, और डेरा जमाए हुए थे, उसको देखकर लोगों को यह लग रहा था कि झारखंड में बीजेपी सरकार बनाने वाली है, जिसको देखते हुए कई जेएमएम के नेताओं ने बीजेपी का दामन थामा, लेकिन उनका ये फैसला उनके लिए गलत साबित हुआ, क्योंकि जेएमएम के आगे बीजेपी के कई प्रत्य़ाशी ढ़ेर हो गये.

सीता सोरेन को महंगा पड़ा बीजेपी का साथ

आज हम आपको झारखंड में कुछ ऐसे ही नेता और विधायकों के बारे में बताने वाले हैं, जिनको बीजेपी का साथ रास नहीं आया और वो जीत और कुर्सी दोनों से वंचित रह गए. इन नेताओं में सबसे पहला नाम स्वर्गीय दुर्गा सोरेन की पत्नी और सीएम हेमंत सोरेन  की भाभी यानी सीता सोरेन का आता है, इन्होने उस समय अपने परिवार और पार्टी का साथ छोड़ा जब पार्टी और परिवार को इनकी सबसे ज्यादा जरुरत थी.इन्होने जेएमएम से बगावत करते हुए बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली, लेकिन जनता ने इन्हे स्वीकार नहीं किया. सीता सोरेन ने लोकसभा चुनाव 2024 के पहले बीजेपी का दामन थामा और जेएमएम के साथ जेल में बंद अपने देवर हेमंत सोरेन के खिलाफ बयानबाजी करने लगीं, उन्होने पार्टी पर आरोप लगाया कि उनको पार्टी में वो सम्मान और हक नहीं दिया जा रहा है जिसकी वो हकदार है.

संताल परगना की जनता ने सीता सोरेन को कर दिया अस्वीकार

सीता सोरेन का स्वागत बीजेपी की ओर से पुरजोर रुप से किया गया, और जेएमएम का गढ़ माने जानेवाला दुमका के पारंपरिक सीट से सीता सोरेन को प्रत्याशी बनाकर खड़ा कर दिया, जहां से नलीन सोरेन को गठबंधन की ओर से प्रत्याशी बनाया था, लेकिन बीजेपी की लाख कोशिशों के बावजूद सीता सोरेन जेएमएम के गढ़ में सेंधमारी करने में नाकाम रही. संताल की जनता ने पूरी तरीके से सीता सोरेन को नकार दिया, और नलीन सोरेन को पूरा भर भरकर वोट मिला. जिससे वो जीत गये. वहीं बीजेपी ने सीता सोरेन को दोबारा विधानसभा चुनाव में भी मौका दिया और जामताड़ा विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी इरफान अंसारी के खिलाफ इन्हें टिकट दिया, लेकिन इरफान अंसारी के सामने भी सीता सोरेन टिक नहीं पाई और हार गई.

लोबिन हेंब्रम को मंहगा पड़ा जेएमएम से बगावत

वहीं बोरियो के पूर्व विधायक रहे लोबिन हेंब्रम को भी बीजेपी का साथ कुछ ज्यादा रास नहीं आया, और जेएमएम से बगावत ने उन्हें विधायक की कुर्सी से वंचित कर दिया. आपको बताये कि लोबिन दा झारखंड के ऐसे नेता और विधायक है जिनका अपना एक अलग अंदाज है, ये आज भी आदिवासी ट्रेडिसन को फॉलो करते है, और देसी परिधान जैसे लूंगी और पगड़ी बांधकर चलते है. वहीं इनके बेबाक अंदाज के लिए भी इन्हें जाना जाता है. ये पार्टी में रहकर पार्टी से बगावत करने की हिम्मत रखते हैं. लोबिन हेंब्रम ने विधानसभा चुनाव से पहले कई बार सीएम हेमंत सोरेन और पार्टी के विरोध में बयानबाजी की, जिसके बाद इन्हे पार्टी की ओर से निष्कासित कर दिया गया, इसके बाद लोबिन हेंब्रम ने बीजेपी का दामन थाम लिया. इनको भी बीजेपी का साथ रास नहीं आया और विधानसभा चुनाव में वह हार गए.

2014 में पीएम नरेंद्र मोदी के नाम से कई लोगों की पार लगी थी नैया

लोकसभा चुनाव 2014 सभी को याद होगा यह वो दौर था जब पूरे देश में मोदी की लहर थी नरेंद्र मोदी के नाम पर ऐसे लोगों ने भी चुनाव जीता था, जिनको लोग चुनाव से पहले लोग जानते तक नहीं थे, ना ही लोगों को उनका नाम तक पता था, लेकिन साल 2024 के आते-आते लोगों की सोच बदली और मोदी लहर का प्रभाव मंद पड़ गया, लेकिन इसी को ध्यान में रखकर बहुत सारे नेताओं ने झारखंड में लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थामा, लेकिन इनको हार का सामना करना पड़ा.

वापसी का रास्ता भी आसान नही है इन नेताओं के लिए

वहीं झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की बात करें तो उन्होने भी जेएमएम का साथ छोड़ कर विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी का दामन थामा, हालांकि ये विधायक का चुनाव जीत गये, लेकिन फिर भी उन्हें वो औधा नहीं मिल पाया जिसके ये हकदार है. आज चुनाव जितने के बाद भी चंपाई सोरेन एक विधायक के रूप में काम कर रहे है लेकिन अगर वह जेएमएम का साथ नहीं छोड़ते तो शायद उन्हें कोई ना कोई मंत्री पद जरूर मिलता, जेएमएम से बगावत ने इन्हें मंत्री पद से दूर कर दिया. जिस तरीके से इन नेताओं ने जेएमएम का साथ छोड़ा और उनके खिलाफ बयानबाजी की अब इनके सामने ना तो जेएमएम में वापसी रास्ता क्लियर है और ना ही बीजेपी को छोड़ने का कोई बहाना दिख रहा है.

Published at:26 Dec 2024 12:46 PM (IST)
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