देवघर(DEOGHAR):राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ दिव्या गुप्ता इन दिनों झारखंड दौरे पर है. इससे पहले उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और बिहार का दौरा किया. जिसके बाद झारखंड के धनबाद, दुमका और देवघर के विभिन्न जगहों का दौरा और निरीक्षण करने के बाद आज देवघर परिसदन में आयोग की सदस्य दिव्या गुप्ता ने जानकारी दी. और कहा कि देश के प्रत्येक बच्चों तक पहुंच कर उनकी वस्तुस्थिति और उनके अधिकार से अवगत होना आयोग की प्राथमिकता है. लेकिन राज्य सरकार बाल संरक्षण अधिकार के प्रति थोड़ा भी संवेदनशील नहीं है.
बच्चे वोटर नहीं होते है, इसलिए सरकार उनपर ध्यान नहीं देती- डॉ दिव्या गुप्ता
राज्य सरकार ना तो इनके शिक्षा पर ध्यान दे रही है. और ना ही उनके अधिकार पर. राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की सदस्य ने कहा कि बच्चे वोटर नहीं होते है. इसलिए राज्य सरकार उनपर ध्यान नहीं देती. लेकिन अब राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की ओर से देश के सभी राज्यों में निरीक्षण कर वहां की कमियों को सुधारने का पत्राचार संबंधित राज्यों से करेगी. अगर राज्य सरकार की ओर से उसपर कोई संज्ञान नही लिया जाएगा. तो उनके खिलाफ सम्मन भी जारी किया जा सकता है. आयोग की सदस्या दिव्या गुप्ता ने बताया कि यूपी, एमपी, बिहार और झारखंड राज्यों में बाल संरक्षण के प्रति बिहार की स्थिति बहुत खराब है.
देश के सभी जिलों में बनना चाहिए को ऑब्जरवेशन सेंटर
देश भर में 16 से 18 वर्ष तक के उम्र वाले बच्चे बच्चियों के बीच हिंसा में दिन प्रतिदिन बढ़ोतरी हो रही है. राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की नजर में इसका कारण शिक्षा की कमी, सोशल मीडिया और आसपास का वातावरण माना जा रहा है. राज्यों के कई जिलों में ऑब्जर्वेशन सेंटर नहीं है. जिस जिला में है. वहां क्षमता से अधिक को रखा जाता है. अत्यधिक संख्या में रहने के कारण उनमें और अधिक हिंसा की प्रवृत्ति पनपने से इनकार नहीं किया जा सकता है. राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग देश के सभी राज्यों के सरकार से प्रत्येक जिला में ऑब्जरवेशन सेंटर खोलने की बात कही जा रही है.
झारखंड राज्य बाल संरक्षण आयोग और किशोर न्याय बोर्ड को जानकारी की कमी
बाल हिंसा की रोकथाम कैसे हो, इसके अलावा बच्चों को किस तरह अधिकार मिले, इसके लिए झारखंड बाल संरक्षण आयोग और किशोर न्याय बोर्ड काम कर रही है. लेकिन आयोग और बोर्ड में पदस्थापित लोगो को इसके कानून की जानकारी की काफी कमी है. जिसके कारण ऑब्जरवेशन सेंटर में रहने वाले बच्चे और बच्चियों के बीच समाज के मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास नहीं किया जा रहा है.यह गंभीर मामला को राज्य सरकार संज्ञान में लेकर प्रत्येक बच्चों को शिक्षा से समाज तक कैसे जोड़े इस पर सकारात्मक पहल शुरू करनी चाहिए.
एफआईआर दर्ज करने का है प्रावधान
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के आंकड़ों के हिसाब से एक अच्छी खासी संख्या बच्चे को मां या पिता को छोड़ने का मामला सामने आया है. ये वो बच्चे होते है. जिनके सर से मां या पिता का साया हट जाता है. माता या पिता जिसकी मृत्यु हो जाती है. उसके बाद दोनों में से कोई भी दूसरी शादी कर लेते हैं. तो फिर पहले पति या पत्नी से हुए बच्चों को अपने पास नहीं रखते है. इस तरह के बच्चे की परवरिश बहुत कठिन हो जाती है.
बच्चों को साथ नहीं रखनेवाले मां-बाप पर एफआईआर दर्ज करने का प्रावधान
राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की माने तो बच्चे के मां या पिताजी जो भी दूसरी शादी करते है. और अपने बच्चों को साथ नहीं रखते उनपर एफआईआर दर्ज करने का प्रावधान है. लेकिन जानकारी के अभाव में उनलोगों पर एफआईआर दर्ज हो पाता है. अब राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ऐसे मामलों पर सख्ती से पेश आने की बात कह रही है. राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग की नज़र में बिहार और झारखंड की सरकार बाल संरक्षण के प्रति गंभीर नही है।सबसे बुरा हाल बिहार का है. दोनो राज्यो में बाल संरक्षण अधिकार के प्रति सरकार की उदासीनता के खिलाफ राष्ट्रीय बाल संरक्षण क्या कदम उठाएगी यह आने वाला वक़्त बतायेगा.
रिपोर्ट: रितुराज सिन्हा
