धनबाद(DHANBAD) | कांग्रेस और भाजपा के टारगेट में झारखंड कितना? यह सवाल आज के लिए महत्वपूर्ण हो गया है. महत्वपूर्ण इसलिए भी कि लोकसभा की बात की जाए तो भाजपा झारखंड की हारी हुई दो सीटों पर काम शुरू कर दिया है. विधानसभा में झारखंड की 28 आरक्षित सीटें ही किंग मेकर होती है. फिलहाल आदिवासी आरक्षित 28 सीटों में दो ही भाजपा के पास है. दो सीट पर भाजपा का कब्जा है. यही वह 26 सीटें हैं , जो झारखंड में सरकार बनाने और बिगाड़ने में भूमिका निभाती है. कांग्रेस ने प्रभारी के रूप में गुलाम अहमद मीर का चेहरा कांग्रेस ने सामने लाई है. देश भर में जहां भी अभी चुनाव हुए, वहां कांग्रेस को अल्पसंख्यकों का साथ मिला. झारखंड में चल रही गठबंधन की सरकार में शामिल झारखंड मुक्ति मोर्चा और राजद को भी अल्पसंख्यकों का सहयोग मिलता रहा है.
झामुमो और कांग्रेस की योजना तो नहीं
हो सकता है कि कांग्रेस यह मानकर चल रही होगी कि आदिवासी वोटरों में झारखंड मुक्ति मोर्चा की पकड़ है लेकिन कांग्रेस को भी समर्थन मिलता है. ऐसे में दोनों ही पार्टियों को अल्पसंख्यक वोटो का पूरा समर्थन मिल जाए तो भाजपा को लोकसभा चुनाव में कड़ी चुनौती दी जा सकती है. यह भी हो सकता है कि झामुमो और कांग्रेस का नेतृत्व मिल कर इस पर काम किया हो. यह अलग बात है कि मीर झारखंड में क्या कुछ कर पाते हैं, कांग्रेस को उसकी खोई जमीन को कितना दिला पाते हैं, यह सब तो भविष्य के गर्भ में है. लेकिन एक बात तो साफ दिख रही है कि कांग्रेस का सेवा दल बनाम भाजपा के लिए काम करने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अगर बात की जाए तो सेवा दल के लोग अब कहीं दिखते नहीं है.
सेवा दल बनाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
कांग्रेस के कार्यक्रमों में गांधी टोपी पहने लोग तो दिख जाते हैं लेकिन गांधी टोपी पहने सेवा दल के लोग अब कहीं सक्रिय दिखते नहीं है. बूथ लेवल पर कमजोरी का कांग्रेस के लिए यह एक मजबूत कारण हो सकता है. दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों की पैठ घर-घर तक होती है. इसलिए भी बूथ मैनेजमेंट के काम में भाजपा, कांग्रेस या अन्य दलों पर भारी पड़ती है. कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडे को उत्तर प्रदेश का जिम्मा दिया गया है और गुलाम अहमद मीर को झारखंड का प्रभारी बनाया गया है. झारखंड के कांग्रेसियों को एकजुट करना, उनको एक सूत्र में पिरोना बहुत आसान काम नहीं है. ऐसे में उनके सामने एक बड़ी चुनौती होगी. वैसे अगर भाजपा की बात की जाए तो जुलाई महीने में बाबूलाल मरांडी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया लेकिन दिसंबर बीतने को है, उन्हें उनका "कैबिनेट" नहीं मिला है. अभी पार्टी स्तर पर बाबूलाल अकेले ही सक्रिय है.
मकर संक्रांति के बाद भाजपा की बन सकती है "कैबिनेट"
हो सकता है कि मकर संक्रांति के बाद बाबूलाल मरांडी को कमेटी गठन करने का मौका मिले. उसके बाद भाजपा अपनी सक्रियता और अधिक बढ़ा सकती है. वैसे विधानसभा की बात की जाए तो किंग मेकिंग 28 सीट पर किसका कितना कब्जा होता है, इसी से यह निश्चित होगा कि झारखंड में किसकी सरकार बनेगी. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन घूम-घूम कर आदिवासियों की बात कर रहे है. वह खुद आदिवासी भी है. बाबूलाल मरांडी भी आदिवासियों की बात कर रहे है. ऐसे में कांग्रेस अविनाश पांडे के जाने के बाद कांग्रेस अल्पसंख्यक चेहरे पर दांव खेला है ,तो क्या यह सब झमुमो और कांग्रेस का मिलीजुली राजनीतिक गणित है. वैसे कहा जाता है कि मकर संक्रांति के बाद भाजपा की सक्रियता तेज होगी. आया राम, गया राम का सिलसिला शुरू होगा.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो