धनबाद(DHANBAD) : धनबाद का निरसा विधानसभा क्षेत्र, लाल झंडा के गढ़ में भगवा 2019 में फहराया. फहराने का श्रेय गया अपर्णा सेन गुप्ता को. यह अलग बात है कि अपर्णा सेनगुप्ता भी लाल झंडा से ही भाजपा में शामिल हुई थी. यह भी अलग बात है कि लाल झंडा से वह 2005 में विधायक रह चुकी है. 2005 में वह फॉरवर्ड ब्लॉक से चुनाव जीती थी. पति सुशांतो सेनगुप्ता की हत्या के बाद वह राजनीति में आई. झारखंड में मंत्री भी बनी, फिलहाल निरसा से भाजपा की विधायक है. 2019 के चुनाव में उन्होंने मार्क्सिस्ट कोऑर्डिनेशन कमेटी के अरूप चटर्जी को पछाड़कर विधायक बनी. अपर्णा सेनगुप्ता को 89,082 वोट मिले तो अ रूप चटर्जी को 63,624 और झारखंड मुक्ति मोर्चा के अशोक मंडल को 47,168 वोट प्राप्त हुए थे. वैसे बंगाल से सटे होने के कारण निरसा विधानसभा क्षेत्र में बंगाली कल्चर का बोलबाला है. पहले यहां गुरुदास चटर्जी और कृपा शंकर चटर्जी के बीच चुनावी टकराहट होती थी. कृपा शंकर चटर्जी भी पहले लाल झंडा में थे, लेकिन वह कांग्रेस में चले आए थे. गुरुदास चटर्जी तो लाल झंडा में थे ही. गुरुदास चटर्जी की राजनीति थोड़ी अलग थी. लोगों के वह प्रिय थे. पहले वह ईसीएल केकर्मचारी थे लेकिन मारपीट और फायरिंग के मामले में उन्हें जेल जाना पड़ा. जेल से छूटने के बाद उन्होंने नौकरी त्याग दी और पूरी तरह से राजनीति में आ गए.
गुरुदास चटर्जी राजनीति में आये तो एके राय का मिला सपोर्ट
राजनीति में आए तो पूर्व सांसद एके राय का साथ मिला. फिर वह पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा. यह अलग बात है कि उनकी हत्या कर दी गई. वह धनबाद से निरसा लौट रहे थे कि देवली में उन्हें गोली मार दी गई. उनकी हत्या के बाद उनके पुत्र अरूप चटर्जी चुनावी अखाड़े में कूदें. वह राजनीति में आना नहीं चाहते थे लेकिन पूर्व सांसद एके राय के समझाने-बुझाने के बाद वह राजनीति में आए और पहली बार में ही विधायक बन गए. निरसा के इतिहास की बात की जाए तो कम से कम 2000 के बाद तो गुरुदास चटर्जी, अरूप चटर्जी,अपर्णा सेन गुप्ता के बीच यह सीट बंटती रही. यह अलग बात है किअशोक मंडल भी निरसा से विधायक बनने की लगातार कोशिश करते रहे, लेकिन अभी तक विधायक नहीं बन पाए है. 2014 के विधानसभा चुनाव में भी भाजपा के गणेश मिश्रा ने अरूप चटर्जी का बेजोड़ पीछा किया और मात्र कुछ ही वोटो से हार गए. 2014 में अ रूप चटर्जी को 51,581 वोट मिले थे, जबकि गणेश मिश्रा को 50, 546 वोट प्राप्त हुए थे. अशोक मंडल को 43,32 9 वोट मिले थे, जबकि अपर्णा सेनगुप्ता को 23,633 वोट मिले थे. अशोक मंडल झारखंड मुक्ति मोर्चा तो अपर्णा सेनगुप्ता फॉरवर्ड ब्लॉक से चुनाव लड़ रही थी. 2024 का चुनाव समीप है.
लोकसभा चुनाव में निरसा से भाजपा को मिलती रही है बढ़त
यह अलग बात है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी निरसा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा को बढ़त मिली थी तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को बढ़त मिली है. यह इलाका सेमी अर्बन इलाका होता है. ग्रामीण परिवेश के लोग भी हैं, तो शहरी भी यहां रहते है. बोलचाल और कल्चर बंगाल का यहां देखा जाता है. वैसे, कोयला चोरी और अवैध खनन को लेकर यह इलाका भी बदनाम रहा है. इस इलाके में कोल इंडिया की अनुषंगी ईकाई ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड काम करती है. इस इलाके की खासियत है कि बात-बात में यहां राजनीति होती है. राजनीतिक दल के लोग भी सक्रिय रहते है. कम से कम दो महत्वपूर्ण लोगों की हत्या से यह इलाका चर्चा में आ गया था. गुरुदास चटर्जी की भी हत्या हुई थी तो सुशांतो सेन गुप्ता की भी हत्या कर दी गई थी. 2019 में अपर्णा सेनगुप्ता को भाजपा ने टिकट दिया लेकिन उस समय लोगों को उम्मीद थी कि गणेश मिश्रा को टिकट मिलेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अपर्णा सेन गुप्ता चुनाव जीत गई.
2024 के विधानसभा चुनाव में क्या करेगा निरसा
2024 के विधानसभा चुनाव में निरसा विधानसभा क्या अंगड़ाई लेगी या 2019 के परिणाम को ही दोहराएगा, क्या अ रूप चटर्जी की किस्मत बदलेगी ,क्या अशोक मंडल विधायक बनेंगे या फिर अपर्णा सेनगुप्ता ही फिर चुनाव जीतेगी. यह सब ऐसे सवाल हैं, जिनकी चर्चा होनी शुरू हो गई है. यह बात तो तय है कि झारखंड में विधानसभा चुनाव गठबंधन में लड़ा जाएगा. ऐसे में निरसा विधानसभा झारखंड मुक्ति मोर्चा के खाते में जा सकता है. अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा के खाते में गया तो अशोक मंडल वहां से झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी हो सकते है. मार्कसिस्ट कोआर्डिनेशन कमेटी के प्रत्याशी अरूप चटर्जी रहेंगे. भाजपा भी अपर्णा सेनगुप्ता पर ही दांव खेल सकती है. निरसा में भी कोयले पर ही पर राजनीति निर्भर करती है. कोयले को लेकर यहां भी दबंगई चलती है. यह अलग बात है कि निरसा विधानसभा में समस्याओं की कोई कमी नहीं है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो