धनबाद(DHANBAD),: धनबाद जिले के झरिया और निरसा दो ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं, जहां विधायक बदले तो राजनीतिक टकराहट भी तेज हो गई है. यह राजनीतिक टकराहट आगे और बढ़ेगी, ऐसा लोग बता रहे है. दरअसल, झरिया और निरसा के समीकरण बदल गए है. कोयला बहुल इन दो विधानसभा क्षेत्रों में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई है. आगे यह जंग और बढ़ेगी, ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है. इसका अंदेशा निरसा में भाजपा और माले के बीच टकराहट और झरिया में रागिनी सिंह और पूर्णिमा नीरज सिंह के बीच बढ़ते टकराव से मिल रहे है. झरिया में पूर्णिमा नीरज सिंह की हार के बाद विधायक रागिनी सिंह के समर्थक उत्साह में है, तो निरसा में अपर्णा सेनगुप्ता की हार के बाद विधायक अरूप चटर्जी के समर्थकों का हौसला बुलंद है.
लोडिंग पॉइंट पर टकराहट के बड़े साफ़ है संकेत
मंगलवार को लोदना के कुजामा लोडिंग पॉइंट पर रागिनी सिंह और पूर्णिमा नीरज सिंह के समर्थक टकरा गए. यह टकराहट छोटी टकराहट नहीं थी. दोनों के समर्थक ट्रेड यूनियन की आड़ में आमने-सामने हुए. कई राउंड फायरिंग हुई. इससे साफ पता चलता है कि आने वाले दिनों में झरिया के आर्थिक स्रोतों पर लड़ाई बढ़ सकती है. 2019 में पूर्णिमा नीरज सिंह झरिया सीट से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीती थी. उस समय रागिनी सिंह चुनाव हार गई थी. यह रागिनी सिंह समर्थकों के लिए एक बड़ा झटका था. 5 वर्ष तक रागिनी सिंह के समर्थक किसी प्रकार समय काटे. लेकिन 2024 के विधानसभा चुनाव में रागिनी सिंह चुनाव जीत गई. इसके साथ ही झरिया सीट फिर से सिंह मेंशन के पास वापस चली आई.
झरिया की तरह निरसा में भी राजनीतिक बदलाव हुआ है
झरिया की तरह निरसा में भी राजनीतिक बदलाव हुआ और वनवास काटकर विधायक अरूप चटर्जी मुख्य धारा में लौट आये. तो अपर्णा सेनगुप्ता चुनाव हार गई. चुनाव के बाद गोपीनाथपुर को लेकर भाजपा और माले आमने-सामने है. यह अलग बात है कि अरूप चटर्जी और अपर्णा सेनगुप्ता की सीधी लड़ाई अब मुड़कर सांसद ढुल्लू महतो की ओर हो गई है. ढुल्लू महतो अब अपर्णा सेनगुप्ता के पक्ष में खुलकर खड़े हैं, तो अरूप चटर्जी ने भी सांसद ढुल्लू महतो के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.
निरसा विधानसभा क्षेत्र भी कोयले के लिए कुख्यात है
निरसा विधानसभा क्षेत्र भी कोयले के लिए कुख्यात है. यहां भी आर्थिक स्रोत की लड़ाई चलती रही है. 2019 में अरूप चटर्जी चुनाव हार गए थे और अपर्णा सेन गुप्ता भाजपा की टिकट पर चुनाव जीती थी. लेकिन 2024 में बाजी पलट गई. अब एक बार फिर निरसा में लाल झंडे का कब्जा हो गया है. इसके साथ ही टकराहट भी बढ़ गई है. देखना होगा कि आर्थिक स्रोतों पर कब्जा के लिए और क्या-क्या उपक्रम किए जाते है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि राजनीतिक पार्टियों को कोयले से "ऊर्जा" मिलती है. इस "ऊर्जा" के लिए काट - मार करने के लिए कोयलांचल बदनाम भी रहा है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो