जामताड़ा (JAMTARA) : जामताड़ा विधानसभा चुनाव उतार-चढ़ाव से भरा पड़ा है. यहां महागठबंधन और एनडीए के बीच सीधी टक्कर है. जिस पर कैंची वार कर रहा है. यह भी सौहराई नृत्य के ताल पर. जहां कर्कस संगीत के बल पर एक समाज को भटकाने की रणनीति चल रहा है. कमोबेश भाजपा जामताड़ा में जहां चुनाव को लापरवाही में ले कर चल रही है. वहीं प्रतिष्ठा हाथ से निकलने का धमक महागठबंधन खेमे में दिखाई देने लगा है.
कल्पना सोरेन की सभा के बाद यह और मजबूत हुआ है. जिसमें उन्होंने जामताड़ा में एनडीए उम्मीदवार पर न तो कोई टिप्पणी की और न ही कोई व्यक्तिगत हमला. इससे मतदाताओं का यह भ्रम टुटा है. उन्हें लग रहा है कि झामुमो सुप्रीमो के परिवार के अंदर कोई झगड़ा नहीं है. यह परिवार का एक व्यवस्थित राजनीतिक पहलू जैसा ही दिखता है. जो प्रत्येक आम और खास परिवार में होते रहा है. परिवार बढ़ते ही विकेंद्रीकरण मानव स्वभाव है. इस परिवार ने भी स्वस्थ विकेंद्रीकरण को सहज स्वीकार ली है.
जब हम बीजेपी के जामताड़ा सीट फतह पर विचार करते हैं. तब ऐसा लगता है कि जामताड़ा सीट को पार्टी प्रयोगशाला बना लिया है. यहां के स्थापित लगभग सभी सक्षम कार्यकर्ताओं को पार्टी ने तरी पार कर दी है. हरिमोहन मिश्रा, सोमनाथ सिंह, बबीता झा जैसे सक्रिय लोग को जहां पार्टी तरी पार कर रखा है. वहीं बाटुल झा और वीरेंद्र मंडल के राजनीतिक भविष्य पर ग्रहण का ठप्पा मार दिया है. इनके बचे खुचे उम्मीद पर उम्मीदवार के निकट सक्रिय राज मंडल और देवा के चंडाल चौकड़ी ने मर्यादा की सीमाओं को तहस-नहस कर दी है. इससे सुंडी समाज विचलित है. जिसमें 25 हजार से अधिक मतदाता हैं. इस समाज को उम्मीदवार के चंडाल श्रेणी के लोग ललकार रहें हैं. जिनकी औकात जामताड़ा में टके जैसा है. ऐसे लोगो की औकात अपने स्वयं के घर में नियंत्रित है. उसी ने जामताड़ा में सुंडी बाहुल्य मतदाताओं को छेड़ने का दुस्साहस किया है. हार जीत तो 23 नवम्बर तय होगा. बावजूद इसके कि हार के भय से एक खेमा अपनी परेशानियों को तेजी से पाटते जा रही है. वहीं दूसरा खेमा अपने को अपमानित करने का कसम खाकर डकार रहा है. आवश्यकता इस बात की है कि बड़े मंच से ज्ञान बांटने के जगह बीजेपी के हनुमान समय रहते जमीन पर उतरे.