धनबाद(DHANBAD): झारखंड में संथाल है या संताल. कहने के लिए तो कहा जा सकता है कि दोनों नाम एक ही जगह के है.लेकिन इसका खामियाजा कौन-कौन लोग किस प्रकार भुगतते है, कभी इसका आकलन नहीं किया गया. इस क्षेत्र से फिलहाल तीन सांसद हैं. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी इसी क्षेत्र से विधायक हैं. शिबू सोरेन इसी इलाके से सांसद रह चुके हैं. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भी इस इलाके से सांसद रह चुके हैं. लेकिन आज तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि यह इलाका संथाल है या संताल. आपको सुनकर आश्चर्य लग रहा होगा कि यह सवाल आज क्यों उठाया जा रहा है. बिहार में भी यही बात थी और झारखंड में भी यही बात है. सवाल क्यों उठ रहा है यह जानकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे.
एक ही स्थान का नाम केंद्र और राज्य सरकार की सूची में अलग-अलग
केंद्र की सूची में इस इलाके का नाम संथाल है जबकि राज्य सरकार अपनी सूची में इसे संताल के नाम से दर्ज कर रखा है. नतीजा हो रहा है कि इस इलाके के बच्चों को नौकरी में भारी परेशानी हो रही है. धनबाद के 14 आदिवासी युवकों ने रेलवे ग्रुप डी की परीक्षा में सफलता हासिल की है. सभी को धनबाद प्रशासन की ओर से जाति प्रमाण पत्र निर्गत किया गया है. इसमें जाति संताल लिखा गया है, क्योंकि झारखंड सरकार ने संताल शब्द को ही मान्यता दे रखी है. प्रमाण पत्र को लेकर अभ्यर्थी जब कोलकाता रेलवे ऑफिस गए तो प्रमाण पत्र में संताल उन्हें लिखा मिला. जबकि केंद्र सरकार की ओर से जारी जातियों की सूची में संथाल दर्ज किया गया है. इस पर रेलवे ने प्रमाण पत्र मानने से इनकार कर दिया. परेशान युवक धनबाद लौट आए और उपायुक्त से मुलाकात कर अपनी समस्या बताई. उपायुक्त ने उनकी समस्या पर उचित कार्रवाई का आदेश दिया. उन्होंने अधिकारियों को कहा कि शपथ पत्र के माध्यम से यह प्रमाणित किया जाए कि संताल तथा संथाल एक ही है. अब देखना है कि शपथ पत्र के बाद छात्रों को नियोजन मिलता है अथवा नहीं.
लोगों को हो रही परेशानी
यह दुर्भाग्य की बात है कि एक ही स्थान का नाम केंद्र और राज्य सरकार की सूची में अलग-अलग है. इस इलाके में सभी राजनीतिक दलों का इंटरेस्ट है. झारखंड बनने के बाद तो इलाका और भी सबकी नजर पर है. इलाके को एम्स मिल गया, एयरपोर्ट मिल गया, दावे के मुताबिक विकास की गंगा बहने लगी लेकिन सूची में एकता नहीं आई. दरअसल छोटी-छोटी बातों पर न सरकार का ध्यान होता है और न जनप्रतिनिधियों का. और ना इसके लिए कभी आवाज उठती है. नतीजा होता है कि फिलहाल ग्रुप डी में उत्तीर्ण बच्चों की तरह कितने नवयुवक परेशान होते रहते हैं. लेकिन यह सब जनप्रतिनिधियों को दिखता नहीं है. झारखंड में इसी इलाके को केंद्र में रखकर राजनीति चलती है फिर भी केंद्र की सूची में यह अलग है और राज्य सरकार की सूची में अलग है. है न हैरत की बात.
रिपोर्ट : धनबाद ब्यूरो