टीएनपी डेस्क(TNP DESK): रायुपर में कांग्रेस के 85वें राष्ट्रीय अधिवेशन को संबोधित करते हुए झारखंड कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने देश में आदिवासी रेजिमेंट बनाने की मांग कर एक बड़ा आदिवासी कार्ड खेल दिया है.
आदिवासी समाज के नाम किसी भी रेजिमेंट का नहीं होना आदिवासियों को दर्द देता है
सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण से जुड़े एक प्रारूप समिति को संबोधित करते हुए बंधु तिर्की ने कहा है कि जब देश में विभिन्न जातियों-उपजातियों के नाम रेजिमेंट बना हुआ है, तब आदिवासी समाज के नाम किसी भी रेजिमेंट का नहीं होना आदिवासियों को दर्द देता है और यह स्थिति तब है, जबकि आदिवासी समाज ने ही हर विदेशी आक्रांता के खिलाफ सबसे पहले लड़ाई की शुरुआत की है.
आदिवासी समाज ने कभी भी विदेशी आक्रांताओं को अपना पैर जमाने नहीं दिया
बंधु तिर्की ने कहा कि हमने कभी भी अपनी जल, जंगल और जमीन पर किसी विदेशी आक्रांता का पैर स्थायी रुप से जमने नहीं दिया. इसके लिए आदिवासी समाज ने लंबी लड़ाई लड़ी और लाखों कुर्बानियां दी. बावजूद इसके आदिवासी समुदाय के नाम पर किसी रेजिमेंट का नहीं होना दुखद है. यह सम्पूर्ण आदिवासी समाज की मांग है, सरकार जल्द से जल्द इस पर विचार करें और हमारी मांग पूरी करें.
शब्दों की जादूगीरी से आरएसएस ने आदिवासी समाज को ठगा
इसके साथ ही भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) पर हमला करते हुए बंधु तिर्की ने कहा कि आरएसएस और भाजपा ने कभी भी आदिवासी समाज के लिए कोई काम नहीं किया, सिर्फ और सिर्फ अपने शब्दों के मायाजाल में आदिवासी समाज को फंसा कर रखा.
सिर्फ कांग्रेस ने समझा आदिवासियों का दर्द
आदिवासी समाज के लिए कांग्रेस के कामों को गिनाते हुए कहा कि बंधु तिर्की ने कहा कि पेसा कानून, जनजातियों के लिए उप योजना (ट्राइबल सब प्लान) या वनाधिकार कानून सब कुछ कांग्रेस की ही तो देन है. कांग्रेस के द्वारा ही संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के प्रावधान लाया गया, जिससे कि आदिवासी समाज को उसके जल, जंगल और जमीन पर उसका अधिकार मिला.
भोला भाला आदिवासी समाज उनके शब्द जाल में कई बार फंस जाता है
लेकिन भाजपा आदिवासियों के लिए काम नहीं कर उन्हे शब्दों में भरमाने का काम करती है. चूंकि आदिवासी समाज काफी भोला-भाला है, इसके कारण कई बार इनकी जाल में फंस जाता है, लेकिन अब उनमें भी अपने अधिकारों के प्रति जागरुकता आयी है, आरएसएस और भाजपा का यह भ्रमजाल टूटने रहा है.
झारखंड में 26 फीसदी है आदिवासियों की आबादी
यहां याद रहे रहे कि पूरे देश में आदिवासी समाज की आबादी 8 फीसदी, जबकि झारखंड में 26 फीसदी के उपर है. आदिवासी रेजिमेंट की मांग कर बंधु तिर्की ने बड़ा कार्ड खेलने की कोशिश की है, यदि यह कार्ड चल जाता है तो इसका सीधा नुकसान भाजपा को उठाना पड़ सकता है, कम से कम झारखंड में तो यह मांग जोर पकड़ सकता है.