धनबाद(DHANBAD): झारखंड और इससे सटे दो राज्यों में वाहनों के फर्जी इंश्योरेंस बनाने का गोरख धंधा परवान पर है. इस धंधे का मुखिया बंगाल का कोई सिंडिकेट संचालक बताया गया है. इंतजाम तो ऐसे किए गए हैं कि जब किसी भी वाहन के इंश्योरेंस की जांच करने की कोशिश होती है, तो सिर्फ इंश्योरेंस नंबर दिखता है. जांच अधिकारी पॉलिसी सर्टिफिकेट को पूरी तरह से खोल नहीं पाते. नतीजा होता है कि वाहनों के इंश्योरेंस पेपर की पूरी तरह से जाँच नहीं हो पाती. और झारखंड, बिहार और बंगाल में वाहन स्कूटर, स्कूटी, मोटरसाइकिल के इंश्योरेंस पेपर पर दौड़ रहे है. गिरिडीह के बराकर नदी में यात्री बस गिरने के मामले में भी कुछ ऐसा ही खुलासा हुआ है. जांच में इंश्योरेंस पेपर में फर्जीवाड़ा करने की बात सामने आई थी.
बस नहीं गिरती तो खुलासा भी नहीं होता
बस अनियंत्रित होकर नदी में गिर गई थी. जिसमें 4 लोगों की जानें गई और दर्जन भर लोग घायल हो गए. बात सिर्फ यात्री बसों की ही नहीं है, कई हैवी वाहन भी इसी तरह के पेपर पर दौड़ाये जा रहे है. सूत्र बताते हैं कि आउटसोर्सिंग कंपनियों मैं दौड़ रहे भारी वाहनों में भी ऐसे मामले है. दो पहिया वाहन के इंश्योरेंस पर हैवी वाहन दौड़ाये जा रहे है. निश्चित रूप से इसमें इंश्योरेंस कंपनी के कर्मचारियों की भी मिलीभगत होगी, तभी यह सब संभव हो पा रहा है. सूत्र बताते हैं कि धनबाद सहित हजारीबाग, रांची, देवघर, दुमका, गोड्डा , पाकुड़, साहिबगंज सहित अन्य जगहों से खुलने वाली यात्री बसों के इंश्योरेंस पेपर की अगर कड़ाई से जांच करा दी जाए तो पता चलेगा कि कई यात्री बसें दो पहिया वाहन के इंश्योरेंस पर चल रही है. झारखंड खनिज बहुल प्रदेश है, यहां कोयला से लेकर सोना तक का उत्पादन होता है. ऐसे में यहां भारी वाहन भी खूब दौड़ते है.
परिवहन विभाग भी शक के दायरे में
इस खेल कि अगर जांच हो तो झारखंड के परिवहन विभाग भी अपने को पाक साथ साबित नहीं कर सकता है. मतलब, जहां भी हाथ डालिए, वही गड्ढे मिल रहे है. अगर सम्राट बस गिरिडीह में नदी में नहीं गिरी होती तो इस गोरखधंधे का भी खुलासा नहीं हो पाटा. देखना है कि इसको आधार बनाकर सरकार मामले की जांच कराती है अथवा नहीं. बंगाल और बिहार सरकार को भी पत्र लिखकर जांच में सहयोग मांगती है अथवा नहीं. वैसे, झारखंड का सीधा संपर्क बिहार और बंगाल से बना हुआ है. बिहार से चलने वाली बसें झारखंड से गुजरते हुए बंगाल तक जाती है. इन बसों के संचालन में भारी पूंजी निवेश भी होता है लेकिन इंश्योरेंस के नाम पर इस गोरखधंधे की "चाबी" जब गिरिडीह प्रशासन को मिल गई है तो झारखंड , बिहार और बंगाल में लगे तालों को खोलने की प्रतीक्षा रहेगी.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो