दुमका(DUMKA): बीपी मंडल को पिछड़ा समाज का मसीहा कहा जाता है. रविवार को बीपी मंडल की जयंती के मौके पर दुमका में दो अलग-अलग जगहों पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया. दरअसल इंडोर स्टेडियम में पिछड़े वर्ग संघर्ष मोर्चा (संप) द्वारा पिछड़ा वर्ग सम्मलेन का आयोजन किया गया तो कन्वेंशन सेंटर में झारखंड पिछड़ा मोर्चा की जिला इकाई द्वारा पिछड़ा अधिकार महासम्मेलन का आयोजन हुआ. दोनों ही जगह मंच पर पिछड़ा समाज के गणमान्य चेहरा नजर आए.
अवसर एक, मांग एक लेकिन मंच अलग अलग
पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा (संप) का कार्यक्रम हो या फिर झारखंड पिछड़ा मोर्चा का कार्यक्रम, दोनों ही मंच से वक्ताओं ने जो बातें कही उसमें समरूपता थी. दोनों ही जगह पर वक्ताओं ने कहा कि जो पिछड़ों की बात करेगा, वही झारखंड में राज करेगा. जातिगत जनगणना, 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग, जिला स्तर पर दुमका सहित 7 जिलों में ओबीसी का आरक्षण शून्य किए जाने का विरोध, जिला में ओबीसी छात्रों के लिए छात्रावास निर्माण की मांग, तमाम राजनीतिक दलों पर ओबीसी समाज को ठगने का आरोप सहित इन मांगों को लेकर आंदोलन की बात दोनों ही मंचों से वक्ताओं ने कहा. इसके बाबजूद ओबीसी समाज की एकजुटता कहीं नजर नहीं आई.
समाज हित के बजाय चेहरा चमकने वालों को किया गया अलग: सुधीर
अवसर एक, मांगें एक तो फिर मंच दो क्यों, उस बाबत सवाल करने पर जो जबाब मिला वो कम रोचक नहीं. झारखंड पिछड़ा मोर्चा के मंच पर मौजूद जिला परिषद उपाध्यक्ष सुधीर मंडल ने कहा कि जो पिछड़ा वर्ग के लिए काम करने के बजाय अपना चेहरा चमकाए और पिछड़ा जाति को ठगने का काम करे तो वैसे लोगों को अलग करना चाहिए या नहीं. वहीं जब पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा (संप) के मंच पर मौजूद पूर्व जिला परिषद उपाध्यक्ष असीम मंडल ने कहा कि किसी भी महापुरुष की जयंती या पुण्यतिथि मनाने का अधिकार सभी को है. दो जगह क्यों और भी जगह मनाया जा सकता है. चेहरा चमकाने की बाबत उन्होंने कहा कि यह सब को पता है कि हम चेहरा चमकाना चाहते हैं या अपने अधिकार की मांग कर रहे हैं.
मंच पर बबाल होते ही संगठन बंट गए दो भागों में
आज दुमका जिला में दोनों ही संगठन ओबीसी समाज के हित मे आंदोलन की बातें कर रहा है. शुरुवाती दौर में पिछड़ा वर्ग संघर्ष मोर्चा (संप) के बैनर तले सभी एक जुट थे. एक वर्ष पूर्व इंडोर स्टेडियम में आयोजित एक कार्यक्रम में पूर्व सूरज मंडल, संजय यादव सरीखे नेता पहुंचे थे. संगठन का कार्यक्रम था, लेकिन मंच राजनीतिक हो गया था. जिसके कारण जमकर बबाल भी हुआ था. उसके बाद संगठन दो भागों में बंट गया. बेहतर होता अगर सभी एक मंच पर आकर अपनी मांगों को रखे तो सरकार को भी सोचने पर विवश होना पड़ेगा.
रिपोर्ट:पंचम झा