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स्मृति शेष : केवल आंदोलन ही खड़ा नहीं किया बल्कि एक सशक्त-मजबूत पौध भी तैयार कर गए शिबू सोरेन

स्मृति शेष : केवल आंदोलन ही खड़ा नहीं किया बल्कि एक सशक्त-मजबूत पौध भी तैयार कर गए शिबू सोरेन

धनबाद (DHANBAD) : शिबू सोरेन कोई व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचार थे. उनके विचार आगे  भी नई पौध को प्रेरणा देती रहेगी. उन्होंने एक ऐसी नई पौध तैयार कर दी है, जो अब पीछे मुड़कर नहीं देखेगी. शिबू सोरेन का जीवन कोई आसान नहीं था. पिता की हत्या के बाद इतनी विचलित हुए कि जमींदारों के जुल्म के खिलाफ ही लड़ाई छेड़ दी. पूरा जीवन लड़ते रहे और अपनी हर जनसभा में लोगों से दारु-शराब से दूर रहने और पढ़ाई की ओर ध्यान लगाने की अपील करते रहे. 4 फरवरी को धनबाद में झारखंड मुक्ति मोर्चा का स्थापना दिवस मनता है. दुमका में भी मनता है. जब-जब वह धनबाद की सभा में आए, लोगों को संयमित  जीवन जीने का संदेश दिया.  

शिबू सोरेन का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा रहा 

अगर शिबू सोरेन के जीवन का अवलोकन किया जाए, तो कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन अपनी सोच और विचार से नहीं डिगे. 1972 में ही एके राय, विनोद बाबू के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा का धनबाद में गठन किया. मतलब आज से 50 साल पहले ही उन्होंने अलग राज्य की कल्पना कर ली थी. यह अलग बात है कि समय के साथ सबकी राह अलग हो गई लेकिन शिबू सोरेन ने जिस लकीर को पकड़ा, उस पर अंत-अंत तक चलते रहे. उनका सपना 2000 में पूरा हुआ, जब झारखंड बिहार से अलग हो गया.  शिबू सोरेन की अगुवाई में कई बड़े आंदोलन हुए, तब जाकर वर्ष 2000 में अलग राज्य का सपना पूरा हुआ.   

उनका सफर केवल आंदोलन तक ही नहीं रहा 

उनका सफर सिर्फ आंदोलन तक ही सीमित नहीं रहा, वह केंद्रीय कोयला मंत्री भी बने थे. तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री भी रहे. लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि उनका संघर्ष उनके साथ बना रहा. 1994 में शिबू सोरेन को जेल भी जाना पड़ा, हालांकि बाद में वह जिस मामले में जेल गए थे, उसमें बरी  हो गए. शिबू सोरेन ने सिर्फ एक आंदोलन ही नहीं खड़ा किया, बल्कि एक मजबूत नई पौध भी तैयार कर दी. उनके पुत्र हेमंत सोरेन आज झारखंड के मुख्यमंत्री हैं और वह भी पिता के रास्ते चलने की कोशिश कर रहे है. आज जब शिबू सोरेन हमारे बीच नहीं है, झारखंड की मिट्टी, आदिवासी समाज और हर वह इंसान जो हक और सम्मान के लिए लड़ता है.  दिशोम  गुरु शिबू सोरेन को सलाम कर रहा है. 

शिबू सोरेन जरूर आज नहीं है लेकिन उनकी सोच प्रेरणा देती रहेगी 

शिबू सोरेन जरूर आज नहीं है, लेकिन उनकी सोच, उनका संघर्ष आने वाली पीढ़ियों  को रास्ता दिखाता रहेगा.  महाजनों के खिलाफ उनकी लड़ाई को आज भी याद किया जा रहा है और आगे भी याद किया जाता रहेगा. पिता की हत्या के बाद जब वह पढ़ाई छोड़कर महाजनों के खिलाफ बिगुल फूंका, धान कटनी आंदोलन शुरू किया, जिसमें वह और उनके साथी  जबरन महाजनों की धान काटकर ले जाते थे. लोग बताते हैं कि उस समय जिस खेत में धान काटना होता था, उसके चारों ओर आदिवासी युवा तीर धनुष लेकर खड़े हो जाते थे. धीरे-धीरे शिबू सोरेन का प्रभाव बढ़ने लगा. आदिवासी समाज को उनका नेता  मिल गया था.  उन्हें भरोसा हो गया था कि यही वह युवक, उन्हें सूदखोरों से मुक्ति दिला सकता है. आज जब शिबू सोरेन हम लोगों के बीच नहीं है, लेकिन उनकी संघर्ष की गाथा प्रेरणा देती रहेगी.
 
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो 

Published at:04 Aug 2025 07:02 AM (IST)
Tags:DhanbadjharkhandShibu SorenSangharshAndolan
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