धनबाद(DHANBAD): धनबाद के बरवाअड्डा में शनिवार को भाजपा सांसद पशुपतिनाथ सिंह और टुंडी से झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक मथुरा महतो एक ही मंच पर थे. मौका था बरवाअड्डा किसान चौक के स्थापना दिवस का. सांसद मुख्य अतिथि थे तो विधायक विशिष्ट अतिथि, दोनों के बोलने की जब बारी आई तो किसानों को आड़ में लेकर सियासी तीर चलाये गए. सांसद पशुपतिनाथ सिंह ने कहा कि मोदी सरकार जहां किसानों को सम्मान दे रही है, वहीं हेमंत सरकार ने किसानों की सम्मान निधि बंद कर दी है. झारखंड सरकार कृषि बिल ला रही है, इससे महंगाई बढ़ेगी. विधायक को बोलने की जब बारी आई तो उन्होंने कहा कि जन वितरण दुकान से लोगों को फ्री चावल मिलने के कारण किसान खेती किसानी पर ध्यान नहीं दे रहे हैं. लोग खेत नहीं जा रहे हैं. सीएनटी एक्ट लग जाने से ही ग्रामीणों की जमीन बची है अन्यथा वह कब की बिक गई होती. बता दें कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी योजना है.
कोविड-19 संकट के दौरान शुरू हुई थी योजना
कोविड-19 संकट के दौरान मुश्किल समय में यह योजना शुरू हुई थी, जिससे गरीबों, जरूरतमंदों, गरीब परिवारों/लाभार्थियों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराई गई. ताकि इन लोगों को खाद्यान्नों की पर्याप्त उपलब्धता न होने से कोई परेशानी नहीं हो. दोनों नेताओं में सियासी तीर तो चले लेकिन धनबाद की जो मूलभूत समस्याएं हैं, उनपर किसी ने कोई चर्चा नहीं की. झारखंड की पहली 8 लेन सड़क विलंब से चल रही है. काम बहुत धीमी गति से चल रहा है. धनबाद जिला पानी संकट झेल रहा है, बिजली की भी समस्याएं हैं, बेरोजगारी भी मुंह बाए खड़ी है, इस पर कोई चर्चा नहीं हुई. सिर्फ अनाज देने और किसानों की सम्मान राशि बंद करने पर ही नेताओं ने अपने को सीमित रखा. अगर ग्रामीण क्षेत्रों की बात की जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी समस्याएं कम नहीं है. रोजगार के लिए लोग पलायन कर रहे हैं, सिंचाई की सुविधा नहीं है, यह बात तो सच है कि आमदनी नहीं होने के कारण लोग खेती की ओर से मुंह मोड़ रहे हैं. अपना घर, प्रदेश छोड़कर दूसरे राज्यों में जाकर मजदूरी कर रहे हैं लेकिन खेती की तरफ किसी का ध्यान नहीं है.
खेती-किसानी की ओर रुझान कैसे बढ़े, इस पर नहीं हुई चर्चा
किसानों का कहना है कि खेती में जितनी पूंजी लग रही है, उतना भी नहीं निकलता. नतीजा है कि करने से कोई फायदा नहीं है. वैसे भी सिंचाई के अभाव में झारखंड में भगवान की कृपा पर ही सही, धान की खेती की बहुतायत है. अगर बारिश सही हुई तो धान के फसल ठीक-ठाक हो जाते हैं और अगर बारिश नहीं हुई तो फसल सूख जाते हैं. लेकिन सिंचाई पर कोई चर्चा नहीं हुई. कोयलांचल में उद्योग-धंधे कैसे बढ़ेंगे, रोजगार के अवसर कैसे सृजित किए जाएंगे, इस पर चर्चा नहीं हुई. दरअसल कोयलांचल का यह दुर्भाग्य है कि क्षेत्र के विकास के प्रति यहां के जनप्रतिनिधि कभी एक मत हो ही नहीं पाते हैं. सबकी अपनी-अपनी डफली और अपनी-अपनी राग होती है. नतीजा होता है कि योजनाओं का चयन तो तेजी से किया जाता है लेकिन जब अमलीजामा पहनाने की बारी आती है तो उसमें शिथिलता बरती जाने लगती है. जिसका खामियाजा कोयलांचल लगातार भुगत रहा है.
रिपोर्ट: सत्यभूषण सिंह, धनबाद